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Terror funding case : यासीन मलिक के आतंक की पढ़ें हर करतूत, गृह मंत्री की बेटी का अपहरण सहित …

By संतोष सिंह 
Updated Date

Terror funding case : कश्‍मीरी अलगाववादी नेता (Kashmir Separatist Leader) यासीन मलिक (Yasin Malik) की सजा पर बुधवार को पटियाला हाउस कोर्ट (Patiala House Court) में एनआईए (NIA) की विशेष अदालत में बहस पूरी हो गई है। टेरर फंडिंग के मामले में यासीन मलिक (Yasin Malik)  को एनआईए (NIA)  ने कोर्ट से फांसी की सजा दिए जाने की मांग की है। 56 साल का यासीन मलिक (Yasin Malik)  लंबे समय से कश्मीर को भारत के खिलाफ साजिश रचता रहा है।

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जानें कब-कब गिरफ्तार हुआ यासीन मलिक?

अगस्त 1990 में यासीन मलिक (Yasin Malik) दूसरी बार गिरफ्तार हुआ था। तब वह घायल था। उसकी गिरफ्तारी के बाद सुरक्षाबल के जवानों ने जेकेएलएफ (JKLF) के कई आतंकियों को मार गिराया। मई 1994 में उसे रिहा कर दिया गया।

1999 में यासीन मलिक (Yasin Malik)  को फिर से पब्लिक सेफ्टी एक्ट (public safety act) के तहत गिरफ्तार किया गया। इसके बाद वह जेल से अंदर-बाहर होता रहा। इस दौरान वह देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से भी मिलता रहा। 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Prime Minister Manmohan Singh) से भी मुलाकात की थी।

2017 में यासीन मलिक के खिलाफ टेरर फंडिंग मामले (Terror funding case)  में एनआईए (NIA) ने केस दर्ज किया। 2019 में यासीन मलिक को गिरफ्तार कर लिया गया। 19 मई 2022 को कोर्ट ने यासीन मलिक को टेरर फंडिंग  मामले (Terror funding case) में दोषी ठहराया।

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यासीन मलिक ने घाटी में फैलाया दहशत

यासीन मलिक के पिता गुलाम कादिर मलिक एक सरकारी बस ड्राइवर थे। यासीन ने श्री प्रताप कॉलेज से ही स्नातक किया है। एक इंटरव्यू में यासीन मलिक ने एक आम छात्र से प्रतिबंधित संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का मुखिया बनने तक की कहानी बताई थी। उनसे दावा किया था कि कश्मीर में सेना का जुल्म देखकर उसने हथियार उठाया। इसके बाद 80 के दशक में ‘ताला पार्टी ‘ का गठन किया था, जिसके चलते उसने घाटी में कई बार आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया था।

क्रिकेट मैच के बीच में पिच खराब करने चला गया
ये बात 13 अक्तूबर 1983 की है। कश्मीर के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में भारत और वेस्ट इंडीज का क्रिकेट मैच चल रहा था। लंच ब्रेक में अचानक 10-12 लड़के बीच मैदान में पहुंच गए और पिच खराब करने लगे। इस वारदात को ताला पार्टी के कार्यकर्ताओं ने ही अंजाम दिया था।

13 जुलाई 1985 को कश्मीर के ख्वाजा बाजार में नेशनल कॉन्फ्रेंस की रैली हो रही थी। इस दौरान सैकड़ों की संख्या में लोग मौजूद थे। इस दौरान 60 से 70 लड़के पहुंचे और बीच में ही पटाखा फोड़ दिया। उस वक्त सबको लगा कि बमबारी शुरू हो गई है। हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल बन गया। तब पहली बार यासीन मलिक पकड़ा गया।

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मलिक ने 1986 में ‘ताला पार्टी’ का नाम बदलकर ‘इस्लामिक स्टूडेंट्स लीग यानी आईएसएल’ कर दिया। इसमें वह केवल कश्मीर के युवाओं को शामिल करता था। इसका मकसद कश्मीर को भारत से अलग करना था। आईएसएल में अशफाक मजीद वानी, जावेद मीर और अब्दुल हमीद शेख जैसे आतंकी शामिल थे, जिन्होंने कश्मीर में कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया।

मकबूल भट्ट की फांसी का विरोध

11 फरवरी 1984 को आतंकवादी मकबूल भट्ट को देश विरोधी गतिविधियों और आतंकी घटनाओं में शामिल होने के आरोप में फांसी पर चढ़ा दिया गया। तब यासीन मलिक और उसकी ताला पार्टी ने इसका जमकर विरोध किया। जगह-जगह मकबूल भट्ट के समर्थन में पोस्टर लगाए। इस मामले में यासीन को पुलिस ने गिरफ्तार किया और वह चार महीने तक जेल में रहा।

फिर राजनीति में भी रख दिया कदम

1980 दशक से ही कश्मीर में हिंदुओं पर हमले होने लगे थे। इसमें यासीन मलिक और उसके साथियों का नाम आता था। बढ़ती हिंसात्मक घटनाओं को देखते हुए सात मार्च 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जम्मू कश्मीर की गुलाम मोहम्मद शेख सरकार को बर्खास्त कर दिया। राज्य में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया। इसके बाद कांग्रेस ने फारूख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ हाथ मिला लिया।

1987 में विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में अलगाववादी नेताओं ने मिलकर एक नया गठबंधन किया। इसमें जमात-ए-इस्लामी और इत्तेहादुल-उल-मुसलमीन जैसी पार्टियां साथ आईं और मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (एमयूएफ) बनाया। यासीन मलिक ने इस गठबंधन के प्रत्याशी मोहम्मद युसुफ शाह के लिए प्रचार किया। बाद में इसी युसुफ शाह ने आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन का गठन किया। आज युसुफ शाह को सैयद सलाहुद्दीन के नाम से जाना जाता है।

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चुनाव हारा तो हिंसात्मक घटनाएं बढ़ गईं
1987 में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस से मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (एमयूएफ) चुनाव हार गई। इसके बाद पूरे कश्मीर में हिंसात्मक घटनाएं बढ़ गईं। कहा जाता है कि यासीन मलिक ने पूरे कश्मीर में अलगाववादी और आतंकवाद को बढ़ावा दिया। 1988 में यासीन मलिक जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी जेकेएलएफ से जुड़ गया। वह एरिया कमांडर था। इसके जरिए यासीन मलिक ने कश्मीरी युवाओं को देश के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया।

गृहमंत्री की बेटी का अपहण किया
1988 में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी जेकेएलएफ से जुड़ने के कुछ दिनों बाद ही वह पाकिस्तान चला गया। यहां ट्रेनिंग लेने के बाद 1989 में वह वापस भारत आया। इसके बाद उसने गैर मुसलमानों को मारना शुरू कर दिया। आठ दिसंबर 1989 को देश के तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद का अपहरण हो गया।

उस वक्त मुफ्ती मोहम्मद सईद दिल्ली में अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे थे। इस अपहरण कांड का मास्टरमाइंड अशफाक वानी था। कहा जाता था कि ये यासीन मलिक के इशारे पर ही हुआ था। इसमें शामिल सारे आतंकवादी जेकेएलएफ से ही जुड़े थे। टाडा कोर्ट ने इस मामले में यासीन मलिक, अशफाक वानी, जावेद मीर, मोहम्मद सलीम, याकूब पंडित और अमानतुल्लाह खान को आरोपी बनाया है। 1990 में सुरक्षाबल के जवानों ने अशफाक वानी को मार गिराया था।

जब पूरा हिल गया देश
1990 में कश्मीर में वायुसेना के चार जवानों की सरेराह गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस मामले में भी यासीन मलिक ही आरोपी बनाया गया।

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