नई दिल्ली। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख अर्थशास्त्री प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस (Muhammad Yunus) के माइक्रोक्रेडिट (सूक्ष्मऋण) बैंकिंग मॉडल (Microcredit Banking Model) ने 1970 के दशक में शुरू किया था और उनकी संस्था ग्रामीण बैंक ने इसे विश्व प्रसिद्ध बनाया। इसके लिए यूनुस और ग्रामीण बैंक को 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार भी मिला था।
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अब निर्वासन में रह रहे पूर्व खुफिया अधिकारी ‘अमीनुल हक पोलाश’ (Aminul Haque Polash) के तरफ से पेश किए गए 50 साल पुराने दस्तावेज़ों ने बांग्लादेश की सबसे चर्चित कहानी की बुनियाद हिलाकर रख दी है। अमीनुल हक पोलाश ने 1976 से 1983 के आंतरिक कागज़ात जारी किए हैं और उनका दावा है कि ये फाइलें माइक्रोक्रेडिट (Microcredit) की असली कहानी को हमेशा के लिए बदल सकती हैं।
पोलाश के अनुसार, इन दस्तावेज़ों में साफ दिखता है कि माइक्रोक्रेडिट मॉडल (Microcredit Model) की शुरुआत चिटगांव यूनिवर्सिटी (Chittagong University) की एक रिसर्च परियोजना से हुई थी, लेकिन बाद में मुहम्मद यूनुस ने इस पूरी पहल को धीरे-धीरे अपने नाम कर लिया और उसे दुनिया में अपनी व्यक्तिगत “खोज” के रूप में पेश किया। पोलाश का आरोप है कि वर्षों से दुनिया जिस मॉडल को यूनुस की अनोखी सोच मानती आई। वह दरअसल एक विश्वविद्यालय का शोध था, जिसे उन्होंने व्यवस्थित तरीके से हाइजैक कर लिया था।
पोलाश, जो नेशनल सिक्योरिटी इंटेलिजेंस (NSI) के पूर्व अधिकारी हैं और यूनुस की कथित भ्रष्टाचार जांच के कारण देश छोड़ने पर मजबूर हुए। उनका कहना है कि इन दस्तावेज़ों से साफ पता चलता है कि माइक्रोक्रेडिट की असली शुरुआत यूनुस से नहीं, बल्कि एक विश्वविद्यालयी शोध परियोजना से हुई थी। पोलाश ने कहा कि इन पर यूनुस के अपने हस्ताक्षर हैं। उनका दावा है कि ये कागज़ात साबित करते हैं कि माइक्रोक्रेडिट (Microcredit) कोई व्यक्तिगत खोज नहीं थी, बल्कि कई शोधकर्ताओं की सामूहिक अकादमिक मेहनत का परिणाम था।
माइक्रोक्रेडिट की शुरुआत चिटगांव विश्वविद्यालय के शोध कार्यक्रम से हुई, यूनुस से नहीं
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पोलाश का आरोप है कि 1976 में चिटगांव यूनिवर्सिटी (Chittagong University) में रूरल इकोनॉमिक्स प्रोग्राम (REP) फोर्ड फाउंडेशन के अनुदान से शुरू किया गया था। जोबरा गांव में पहला माइक्रो-लेंडिंग प्रयोग एक ऐक्शन-रिसर्च प्रोजेक्ट था, जिसे तीन शोधकर्ताओं स्वपन अदनान, नसीरुद्दीन और एच.आई. लतीफ़ी (Swapan Adnan, Naseeruddin, H.I. Latifi) ने मिलकर चलाया। दस्तावेज़ों के अनुसार, यूनुस को इस रिसर्च में सिर्फ कोऑपरेटिव मैनेजमेंट का काम सौंपा गया था, न कि माइक्रोक्रेडिट मॉडल विकसित करने या चलाने का।
यूनुस के शामिल होने से पहले ही बांग्लादेश बैंक ने मॉडल को अपनाया
पोलाश के आरोपों के अनुसार, 1978 में केंद्रीय बैंक के गवर्नर की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस ग्रामीण ऋण मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने का फैसला हो चुका था। इसके लिए 100 करोड़ टका राज्य बैंकों के ज़रिये जारी करने का निर्णय भी लिया गया और यही आगे चलकर “ग्रामीन बैंक प्रोजेक्ट” कहलाया।
फोर्ड फाउंडेशन ने अनुदान यूनिवर्सिटी को दिया था, यूनुस को नहीं
पोलाश द्वारा प्रस्तुत एक 1983 का पत्र, जो फोर्ड फाउंडेशन ने चिटगांव यूनिवर्सिटी (Chittagong University) के वाइस-चांसलर को भेजा था, के अनुसार अनुदान विश्वविद्यालय को दिया गया था। यूनुस को व्यक्तिगत तौर पर नहीं। पोलाश का कहना है कि ये सभी दस्तावेज़ मिलकर एक ही बात साबित करते हैं: माइक्रोक्रेडिट एक सामूहिक विश्वविद्यालयी रिसर्च था, जिसे बाद में यूनुस ने अपने नाम पर कब्ज़ा कर लिया।
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पोलाश का आरोप है कि 1970 के दशक में जिस पैटर्न की शुरुआत हुई थी, वही अब बांग्लादेश के शासन में फिर दोहराया जा रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार यूनुस पूरे देश की सत्ता अपने हाथ में लिये हुए हैं। पोलाश के मुताबिक अगस्त 2024 में “ग़ैर-क़ानूनी तरीके से” सत्ता में आने के बाद यूनुस ने राज्य मशीनरी का उपयोग अपने सभी कानूनी संकट मिटाने, भ्रष्टाचार और श्रम मामलों को खत्म कराने, टैक्स माफ़ कराने, सरकारी हिस्सेदारी घटवाने और ग्रामीण समूहों को विशेष लाभ दिलवाने के लिए किया। इसी दौरान, उनके भतीजे और करीबी सहयोगियों को ऊँचे पदों पर बैठाकर खुली भाई-भतीजावाद की नीति अपनाई गई।
पोलाश का कहना है कि ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने एक विश्वविद्यालय की ग्रामीण शोध परियोजना को अपने नाम कर वैश्विक साम्राज्य खड़ा किया था, आज वे पूरे बांग्लादेश के शासन ढांचे को अपने नियंत्रण में ले रहे हैं। उनके शब्दों में “जो आदमी जॉबरा में एक शोध परियोजना हथिया सकता है, वही आज पूरे देश को उसी तरीके से कब्ज़ा रहा है।