नई दिल्ली: दादी नानी की कई कहानियों में आपने श्राप के बारे में सुना होगा लेकिन आपको क्या लगता है ये आज के टाइम पर भी काम करता होगा। क्या आपको लगता है कि ग़ुस्से में या बहुत दुखी होकर किसी को बोले हुए कड़वे वचन सच हो सकते हैं? ये बस थोड़ी क़िस्से-कहानियों की बातें लगती हैं ये, है ना?
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लेकिन हम कहें ये बात 100 टका सच है। ऐसा सच में होता है और हुआ भी है। कहीं और नहीं, हमारे ही देश में, राजस्थान के जैसलमेर से सिर्फ़ 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कुलधरा गांव में और इस रहस्य को पिछले 170 सालों से लेकर आज तक कोई नहीं सुलझा पाया। ये गाव बसाया था बहुत ही पढ़े लिखे, मेहनती और अमीर ब्राह्मणों ने सन 1290 में।
बड़ी ख़ुशहाल ज़िन्दगी थी यहां के लोगों की जहां पालीवाल ब्राह्मण रहा करते थे। उनके समुदाय में क़रीब 84 गांव आते थे और ये भी उन्हीं का एक हिस्सा था।
किस्से ने खड़े कर दिये रौंगटे
लेकिन फिर इस गाव को नज़र लग गयी वहीं के दीवान सालम सिंह की। अय्याशी में चूर इस दीवान की गन्दी नज़र एक ब्राह्मण की बेटी पर जा पड़ी। ऐसी पड़ी की उसे दिन-रात उस लड़की के अलावा ना कुछ दिखता था, ना कुछ सूझता था। हवस की आग ऐसी सर चढ़ी उसके कि उसने उस लड़की का रिश्ता उसके पिता से मांग लिया और साथ में शर्त रख डाली कि या तो रिश्ता मंज़ूर करो वरना सुबह-सुबह हमला करके बेटी उठा ले जाऊंगा।
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ब्राह्मण भले ही बलपूर्वक दीवान का मुक़ाबला करने में असमर्थ रहे हों लेकिन अपनी घर की बहू-बेटियों की इज़्ज़त बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी उन्होंने। रातों रात सभी गांव की बैठक बुलाई गयी, फ़ैसला किया गया की गांव छोड़ देंगे पर बेटी नहीं देंगे। वो एक रात थी जब उस गांव में कोई रहा था और उसके अगली सुबह उस गांव में वीराने का सन्नाटा था। जाते-जाते ब्राह्मण श्राप दे गए कि वो तो जा रहे हैं, उस गांव में कोई और भी कभी नहीं रह पायेगा।
यकीन मानिए दोस्तों, वो दिन है और आज का दिन है, चाह कर भी कोई उस गांव में बस नहीं पाया। अब तो वो पर्यटकों के देखने लायक एक जगह बन गयी है लेकिन जो भी वहाँ जाता है, उसे एहसास होता है कि उसके आस-पास कोई चल रहा है, कोई उन्हें देख रहा है, कोई उनके आस-पास ही है, पर दिखता कुछ नहीं है। बसा-बसाया गांव एक ही रात में खँडहर हो गया और इस राज़ पर पर्दाफ़ाश आज तक कोई नहीं कर पाया कि वहां आख़िर होता क्या है।