Three New Criminal Laws: आज यानी 1 जुलाई 2024 से देश में तीन नए आपराधिक कानून (New Criminal Laws) लागू हो गए हैं, जो भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में व्यापक बदलाव लाएंगे और औपनिवेशिक युग के कानूनों को समाप्त करेंगे। नए कानून की यह संहिताएं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), भारतीय न्याय संहिता (BNS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) हैं। नए कानूनों में कुछ धाराएं हटा दी गई हैं तो कुछ नई धाराएं जोड़ी भी गई हैं। जिससे पुलिस, वकील और कोर्ट के साथ-साथ आम लोगों के कामकाज में भी काफी बदलाव आ जाएगा।
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दरअसल, देश भर में तीन नए आपराधिक कानून लागू (New Criminal Laws) होने के बाद भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम क्रमशः ब्रिटिश युग के भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे। इन नए आपराधिक कानूनों का उद्देश्य न्यायिक देरी को रोकना और सूचना प्रौद्योगिकी के मजबूत उपयोग की शुरुआत करना है। हालांकि, एक जुलाई से पहले दर्ज हुए मामलों की जांच और ट्रायल पर नए कानून का कोई असर नहीं होगा। दूसरी तरफ, नए कानून के खिलाफ सियासत भी गरमाती हुई नजर आ रही है। विपक्ष के नेताओं ने नए कानून को लेकर सवाल खड़े किए हैं।
नए कानूनों का विरोध जताते हुए कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी (Congress MP Manish Tiwari) ने एक्स पोस्ट में लिखा, ‘1 जुलाई 2024 – (आज) रात 12 बजे से लागू हुए नए आपराधिक कानून भारत को एक पुलिस राज्य में बदलने की नींव रखते हैं। इनका क्रियान्वयन तत्काल रोका जाना चाहिए और संसद को इनकी दोबारा जांच करनी चाहिए।’ इसी के साथ उन्होंने अपने एक न्यूज वेबसाइट के लिए लिखे लेख का लिंक भी शेयर किया है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री पी. चिदंबरम (Former Union Finance Minister P. Chidambaram) ने भी नए कानूनों विरोध पर जताया है। उन्होंने एक्स पोस्ट में लिखा, ‘आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले तीन आपराधिक कानून आज से लागू हो गए हैं। 90-99 प्रतिशत तथाकथित नए कानून कट, कॉपी और पेस्ट का काम हैं। जो कार्य मौजूदा तीन कानूनों में कुछ संशोधनों के साथ पूरा किया जा सकता था, उसे एक बेकार प्रक्रिया में बदल दिया गया है। हां, नए कानूनों में कुछ सुधार हुए हैं और हमने उनका स्वागत किया है। इन्हें संशोधन के रूप में पेश किया जा सकता था। दूसरी ओर, कई प्रतिगामी प्रावधान भी हैं। कुछ बदलाव प्रथम दृष्टया असंवैधानिक हैं। जो सांसद स्थायी समिति के सदस्य थे, उन्होंने प्रावधानों पर विचार किया और तीनों विधेयकों पर विस्तृत असहमति नोट लिखे। सरकार ने असहमति नोट में किसी भी आलोचना का खंडन या उत्तर नहीं दिया। संसद में कोई सार्थक बहस नहीं हुई।’
चिदंबरम ने आगे लिखा, ‘ कानून के विद्वानों, बार एसोसिएशनों, न्यायाधीशों और वकीलों ने कई लेखों और सेमिनारों में तीन नए कानूनों में गंभीर कमियों की ओर इशारा किया है। सरकार में किसी ने भी सवालों का जवाब देने की परवाह नहीं की। यह तीन मौजूदा कानूनों को खत्म करने और उनके स्थान पर बिना पर्याप्त चर्चा और बहस के तीन नए विधेयक लाने का एक और मामला है। प्रारंभिक प्रभाव आपराधिक न्याय प्रशासन को अस्त-व्यस्त कर देने वाला होगा। मध्यम अवधि में, विभिन्न न्यायालयों में कानूनों के लिए कई चुनौतियाँ स्थापित की जाएंगी। दीर्घावधि में, तीनों कानूनों को संविधान और आपराधिक न्यायशास्त्र के आधुनिक सिद्धांतों के अनुरूप लाने के लिए उनमें और बदलाव किए जाने चाहिए।’