आज 22 मार्च शुक्रवार को फाल्गुन माह का दूसरा प्रदोष व्रत है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन शाम के समय महादेव को एक लोटा जल चढ़ाने से वह प्रसन्न होते है।
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पौराणिक कथा के अनुसार जब देवताओं और असुरो में समुद्र मंथन किया गया था, तब मंथन के दौरान 14 बहुमूल्य रत्न निकले थे। इस दौरान हलाहल विष भी निकला था। हलाहल विष का शिव ने पान किया था, ताकि सृष्टि की रक्षा हो सके। इस कारण उनका कंठ नीला पड़ गया था और शरीर में जलन बढ़ने लगी।
भोलेनाथ के शरीर के तापमान को कम करने के लिए उन्हे लगातार जल और अन्य कई पदार्थ चढ़ाए गए थे। इससे विष का असर खत्म होने लगा और भोलेनाथ की पीड़ा कम होने लगी। तब से शिव जी को जल बहुत प्रिय है। भगवान शिव को एक लोटा जल चढ़ाने मात्र से ही वह प्रसन्न होते है और सभी मनोकामनाएं पूरी करते है।
शिवपुराण के अनुसार शिवलिंग की पूजा करना हो तो सबसे पहले तांबे के लोटे में जल लेकर जलहरी के दाईं ओर चढ़ाएं, जिसे भगवान गणेश जी का स्थान माना गया है। इसके बाद बाईं ओर कार्तिकेय के स्थान पर जल चढ़ाएं।
अब जलाधारी के बीचों बीच जल अर्पित करें, ये भोलेनाथ की पुत्री अशोक सुंदरी का स्थान है। अब लिंग के निकट जल चढ़ाएं, यहां पार्वती जी वास करती है। इसके बाद शिवलिंग धीमे-धीमे जल चढ़ाएं। जल कभी खड़े होकर न चढ़ाएं. तेज धारा से जल नहीं चढ़ाना चाहिए। शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय ‘श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः। स्नानीयं जलं समर्पयामि’ मंत्र पढ़ें। भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते है।