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UP Assembly Election 2022: यूपी की राजनीति में ब्राम्हण जब याद आए तो बहुत याद आए

By अनूप कुमार 
Updated Date

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस समय सत्ता तक पहुंचने के लिए जतिगत दूरी नापी जा रही है। कहने का मतलब ये है कि यूपी में सत्ता की कुर्सी पर बैठने के लिए राजनीतिक दलों के द्वारा की जा रही सोशल इंजीनियरिंग की गुणा गणित ने यह उत्तर दे दिया है कि जिस जाति का वोटर दल में नहीं है उसे दल में जोड़ा जाय। आज का दिन यूपी विधान सभा चुनाव 2022 के लिए वह दिन है जब बसपा ने ब्राम्हण खीचों के फार्मूले की शुरूआत कर दी है। इसीलिए यूपी की राजनीति में ब्राम्हण जब याद आए तो बहुत याद आए।

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इस बार 2022 विधान सभा चुनाव में सपा, बसपा, भाजपा, कांग्रेस ब्राम्हण खीचों की रणनीति पर काम कर रही हैं। ब्राम्हणों के लिए भगवान परशुराम प्रतीक पुरूष् हैं। भगवान परशुराम को ले कर यूपी के सभी बड़े राजनीतिक दल बहुत ही पवित्र भाव में है। ब्राम्हणों को रिझाने के लिए भगवान परशुराम को सम्मान देने की बात ये बड़े राजनीतिक दल करते हैं। कोई भगवान परसुराम की सैकड़ों फिट बड़ी प्रतिमा लगाने की बात कर रहा है, तो कोई ब्राम्हण सम्मेलन करते हुए ब्राम्हणों का स्वाभिमान वापस दिलाने की बात रहा है। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटरों को डिसाइडिंग शिफ्टिंग’ वोट माना जाता है हैं, जो किसी भी राजनीतिक पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने का दम रखते हैं। बीएसपी सुप्रीमो मायावती को 2007 में ब्राह्मण वोट बैंक ने सत्ता तक पहुंचाया था।

‘ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा’
पिछले 9 साल से बीएसपी सत्ता के लिए संघर्ष ही कर रही है।’ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा’ 14 साल पुराना ये नारा गरमाने के जुगाड़ में बसपा ब्राह्मण सम्मेलन के जरिए बसपा ब्राहमण वोटर्स को पार्टी से जोड़ेगी। अयोध्या में आज यानी 23 जुलाई से शुरू हुआ ये अभियान पूरे प्रदेश के अलग अलग हिस्सो में 14 अगस्त तक चलेगा।

भगवान परशुराम की 108 फीट ऊंची प्रतिमा
2022 के विधानसभा चुनावों से ब्राह्मणों को लुभाने के लिए समाजवादी पार्टी ने राजधानी लखनऊ में भगवान परशुराम की 108 फीट ऊंची प्रतिमा लगाने का वादा किया है।

भगवान परशुराम का मंदिर
भारतीय जनता पार्टी की महिला विधायक प्रतिभा शुक्ला भगवान परशुराम का मंदिर बनवाने के लिए आगे आई हैं। उन्होंने अपनी पांच करोड़ की जमीन मंदिर के लिए दान में दी है।

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‘डिसाइडिंग शिफ्टिंग’ वोट
यूपी में ब्राह्मण पूर्वांचल में ज्यादा प्रभावी हैं। करीब 30 जिलों में उनकी अहम भूमिका होती है। ये ‘डिसाइडिंग शिफ्टिंग’ वोट माना जाता है।

कांग्रेस ने ब्राह्मणों को आठ बार यूपी का सीएम बनवाया। जिनमें से तीन बार नारायण दत्त तिवारी और पांच बार अन्य नेताओं को कुर्सी दी गई। यानी यूपी के 21 मुख्यमंत्रियों में से 6 ब्राह्मण रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार,सीएसडीएस के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो यूपी में सिर्फ 6 फीसदी ब्राह्मणों ने कांग्रेस को वोट दिया था। जबकि बीजेपी को 82 फीसदी का समर्थन हासिल हुआ था।

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