UP Budget 2023: योगी सरकार 2.0 ने बुधवार को अपनी सरकार का दूसरा बजट पेश किया। बजट का आकार छह लाख 90 हजार दो सौ 42 करोड़ 43 लाख रुपये है। योगी सरकार के इस बजट का विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि, दिशाहीन बजट जिसमें न वर्तमान की समस्याओं का सुलझाव है न भविष्य का रास्ता, न रोज़गार है न उसका विचार…ऐसे कैसे बनेगी 1 ट्रिलियन की इकॉनमी?
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वहीं, मायावती ने इस बजट पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि, ‘यूपी सरकार द्वारा सदन में आज पेश बजट जनहित व जनकल्याण का कम एवं लोकसभा चुनाव स्वार्थ को लेकर पुनः वादों का पिटारा। क्या इस अवास्तविक बजट से यहां की जनता का हित व कल्याण तथा भारत का ग्रोथ इंजन बनने का दावा पूरा होगा? कर्ज में डूबी यूपी को भ्रमकारी नहीं रोजगार-युक्त बजट चाहिए।‘
दिशाहीन बजट जिसमें न वर्तमान की समस्याओं का सुलझाव है न भविष्य का रास्ता, न रोज़गार है न उसका विचार… ऐसे कैसे बनेगी 1 ट्रिलियन की इकॉनमी? pic.twitter.com/ywk2z8op7A
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) February 22, 2023
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इसके साथ ही कहा है कि, ‘यूपी भाजपा सरकार अपनी बहुप्रचारित घोषणाओं, वादों व दावों को ध्यान में रखकर यहां महंगाई से त्रस्त लगभग 24 करोड़ जनता की गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, पिछड़ेपन एवं अराजकता आदि से उत्पन्न बदहाली को दूर करने हेतु अपनी कथनी एवं करनी में अन्तर से जनता के साथ विश्वासघात क्यों?
मायावती ने कहा कि, ‘यूपी सरकार द्वारा लोकसभा आमचुनाव के मद्देनजर नए भ्रमकारी वादे व दावे करने से पहले पिछले बजट का ईमानदार रिपोर्ट कार्ड लोगों के सामने नहीं रखने से स्पष्ट है कि भाजपा की डबल इंजन सरकार में प्रति व्यक्ति आय व विकास की जमीनी हकीकत मिथ्या प्रचार व जुमलेबाजी। बजट ऊँट के मुँह में जीरा।‘
1. यूपी सरकार द्वारा सदन में आज पेश बजट जनहित व जनकल्याण का कम एवं लोकसभा चुनाव स्वार्थ को लेकर पुनः वादों का पिटारा। क्या इस अवास्तविक बजट से यहाँ की जनता का हित व कल्याण तथा भारत का ग्रोथ इंजन बनने का दावा पूरा होगा? कर्ज में डूबी यूपी को भ्रमकारी नहीं रोजगार-युक्त बजट चाहिए।
— Mayawati (@Mayawati) February 22, 2023
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साथ ही कहा कि, लोगों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु प्रति व्यक्ति आय में अपेक्षित वृद्धि, रोजगार व सरकारी भर्ती आदि तो दूर, उन पर कर्ज का बढ़ता बोझ सरकार की गलत नीतियों व प्राथमिकताओं का प्रमाण। कर्ज के बढ़ते बोझ से स्पष्ट है कि सरकार, दावों एवं प्रचारों के विपरीत, हर मोर्चे पर विफल हो रही है।