नई दिल्ली। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक महिला के द्वारा डाली गई याचिका पर सुनवाई की गई। ये याचिका पहली बार में किसी के ऊपर हो रहे एफआईआर के वक्त उस पर गैंगेस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई करने की प्रक्रिया के खिलाफ डाली गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई के दौरान कहा कि पहली बार में भी अगर किसी पर एफआईआर होती है तो उस पर गैंगेस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
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भले ही अधिनियम की धारा 2 (बी) सूचीबद्ध किसी भी असामाजिक गतिविधि के लिए केवल एक अपराध, प्राथमिकी, आरोप पत्र दायर किया गया हो। जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने इस सम्बन्ध में एक महिला द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है। पहली बार किसी आपराधिक मामले में उसका नाम आया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि केवल एक प्राथमिकी या चार्जशीट के आधार पर उसे ‘गैगस्टर’ या गैंग का सदस्य नहीं माना जा सकता है। पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम 1999 और गुजराज आतंकवाद और संगठित अपराध अधिनियम, 2015 की तरह गैंगस्टर अधिनियम 1986 में ऐसा कोई विशेष प्रावधान नहीं है कि किसी आरोपी पर मुकदमा चलाते समय, एक से अधिक अपराध या एफआईआर/ चार्जशीट होना चाहिए।