नई दिल्ली: जब से ऐतिहासिक फिल्म पद्मावती बनी है तब से राजस्थान के इतिहास को लेकर लोगो में काफी दिलचस्पी जाग उठी है |ये तो हम सभी जानते हैं की राजस्थान के बहुत से पुराने किले ऐसे हैं जिनका इतिहास आज भी लोगों के जहन में खई सारे सवाल खड़ा कर देते हैं आज हम आपको राजस्थान के एक ऐसे ही किले के बारे में बताने वाले हैं , जिसके इतिहास को जानने के बाद लोग लोग इसे शायद सदियों तक भुला नहीं पाएंगे। हम बात कर रहे हैं राजस्थान के ‘चित्तौड़गढ़ किले’ की जिसे देखने के लिए पूरे वर्ष दूर दूर से लोग आते हैं क्योंकि इसकी बनावटी इतनी ख़ूबसूरत है की विदेशों तक इस किले की बनावट एवं खूबसूरती का जिक्र होता है।
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इस किले के एक-एक भाग को बारीकी से देखने व समझने के लिए हमेशा ही पर्यटकों की भीड़ यहाँ पर लगी रहती है। लेकिन आपको बता दे की इसी किले का एक हिस्सा एक ऐसा रहस्य है जिसके वजह से उस हिस्से में जाने की हिम्मत आज तक कोई नहीं कर पाया है जी हाँ और यह हिस्सा है चित्तौड़गढ़ किले का ‘जौहर कुंड’, जहाँ जाना तो दूर, कोई ख्याल में भी इस जगह के पास जाने के बारे में नहीं सोचता और यदि कोई बहुत हिम्मत करके इस कुंड के पास जाने की कोशिश भी करता है तो वो असफल हो जाता है |
इतिहासकारों के मुताबिक इस जौहर कुंड को ‘हॉंटेड’ यानी कि भूतिया, नकारात्मक शक्तियों से युक्त माना गया है, जिसके पीछे एक बड़ी कहानी है जो की प्यार, दुश्मनी और एक बड़े बलिदान को बयां करती है
चित्तौड़गढ़ का किला जो अपनी खूबसूरती और भव्यता के लिए तो जाना ही जाता है साथ ही यह शहर रानी पद्मिनी के बलिदान से भी जाना जाता है। रानी पद्मिनी जो की खूबसूरती की मल्लिका थी और शायद ही सम्पूर्ण इतिहास में इतनी खूबसूरत कोई और होगी। लेकिन इनकी यही खूबसूरती इनके लिए एक त्याग का कारण बन जायेगा ये किसी को कहाँ पता था और यही वजह थी की रानी पद्मिनी की खूबसूरती उनकी दुश्मन बनी और तब चित्तौड़गढ़ के इतिहास के पन्नों में जुड़ा एक ‘काला’ पन्ना।
राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी रानी पद्मिनी, जो की चित्तौड़ की रानी थीं। वे थीं। बचपन से ही उनके माथे के तेज और खूबसूरती के चर्चे हर तरफ होते थे। बड़े होने पर जब विवाह का समय आया तो, अपनी सुंदर-सुशील पुत्री के लिए राजा ने स्वयंवर का प्रबंध किया। जिसके बाद पद्ममिनी का विवाह राजा रत्न सिंह के साथ हो गया। राजा रत्न सिंह काफी शूरवीर योद्धा थे उनकी पहले से ही 14 रानियां थी।
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दोनों राजा रानी खुशीयों के साथ अपनी जिंदगी बिता रहे थे तभी कुछ समय बीतने के पश्चात् अलाउद्दीन खिलजी की रानी पद्मिनी पर बुरी नजर पड़ गयी और वो रानी पद्मिनी से विवाह करना चाहता था और इसके लिए उसने राजा के साथ युद्ध करने का फैसला लिया और इस युद्ध में उसकी जीत हुई और राजा रत्न सिंह की इस युद्ध में पराजित हुए और वीरगति को प्राप्त हो गये और जब ये खबर रानी पद्मिनी को मिली तो उन्होंने ने फैसला किया की वो आत्महत्या कर लेंगी लेकिन अलाउद्दीन खिलजी से विवाह नहीं करेंगी इसीलिए राजा के शहीद होने की ख़बर सुनने के बाद राजा की सभी रानियां एवं अन्य सैनिकों की पत्नियां भी रानी पद्मिनी की अगुवाई में जौहर कुंड की ओर बढ़ीं।
वहां स्नान किया और जौहर कुंड की अग्नि में कूद पड़ी। इतिहासकारों के अनुसार इस कुंड में छलांग लगाने वाली सबसे पहली रानी पद्मिनी ही थीं। उनके बाद एक-एक करके राजा की सभी रानियों एवं शहीद सैनिकों की पत्नियों ने भी जौहर कुंड में कूदकर अपनी अपनी जान दे दी। जैसे ही सभी रानियाँ इस कुंड में कूद गयी। उसके बाद किले का दुर्ग तोड़ जब तक शत्रु सैनिक भीतर आए, उन्हें जौहर कुंड से चीखने की आवाजें आईं लेकिन वे उस कुंड के पास भी जाने में असमर्थ थे, क्योंकि उस कुंड में से बहुत तेजी से अग्नि की लपटें निकल रही थी
रानी पद्मिनी के इस बलिदान के बाद से ही राजस्थान में ‘जौहर प्रथा’ काफी प्रचलित हुई जो की ठीक सती प्रथा की तरह ही थी। लेकिन इसका प्रयोग तब किया जाता था जब कोई राजा अपने शत्रु से युद्ध में शहीद हो जाए और अपनी आन-बान एवं सम्मान को बचाने के लिए महल की स्त्रियां कुंड की अग्नि में खुद को न्योछावर कर देती थीं।
आज भी इस कुंड के पास कोई नहीं जाता है क्योंकि चित्तौड़गढ़ के किले के जिस जौहर कुंड में रानी पद्मिनी ने छलांग लगाई थी, आज उस कुंड की ओर जाने वाला रास्ता बेहद अंधेरे वाला है और यहाँ तक की इस कुंड के रास्ते की दीवारों में से आज भी कुंड की अग्नि की वो गर्माहट महसूस की जा सकती है। इसीलिए इस स्थान को नकारात्मक शक्तियों से पूरित माना गया है| और जो कोई इस कुंड के करीब जाने की कोशिश की है, उसे बेहद डरावने अहसास का सामना करना पड़ा है|