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आ​खिर आरिफ मोहम्मद खान को क्यूं बनाया गया बिहार का राज्यपाल, जानें इसके सियासी मायने

By संतोष सिंह 
Updated Date

पटना। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान (Arif Mohammad Khan) को बिहार का नया राज्यपाल बनाया गया, वहीं बिहार के वर्तमान राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को केरल भेजा गया है। बता दें कि आरिफ मोहम्मद खान को मुस्लिम समाज का प्रगतिशील चेहरा कहा जाता है। वह खुलकर राष्ट्रवाद का समर्थन करते हैं और हिंदुत्व को इस देश का मूल आधार बताते रहे हैं। ऐसे में आरिफ मोहम्मद खान को केरल से बिहार लाये जाने पर सियासत तेज हो गई है। जेडीयू और बीजेपी ने स्वागत किया है तो आरजेडी ने सवाल उठाए हैं।

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मूल रूप से आरिफ मोहम्मद खान  (Arif Mohammad Khan) उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के निवासी हैं। राजनीति में वह अपने बयानों को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहते आए हैं। बयानों से इतर बिहार में एक मुस्लिम राज्यपाल का मिलना सियासत का सबब है और इसको सियासी लेकर सवाल-जवाब किये जा रहे हैं। दरअसल, आरिफ मोहम्मद खान (Arif Mohammad Khan) के रूप में बिहार को 26 साल बाद मुस्लिम राज्यपाल मिला है। बता दें कि इससे पहले मुस्लिम समुदाय से आने वाले एआर किदवई 1998 तक राज्यपाल थे। अब आरिफ मोहम्मद खान आए हैं। एक तो मुस्लिम चेहरा और दूसरा उनकी राष्ट्रवादी छवि उनको सियासत के सवालों में ले आता है।

इसी वर्ष जब फरवरी में दरभंगा आए थे तो आरिफ मोहम्मद खान को मखाने की माला, पाग और मधुबनी पेंटिंग से सम्मानित किया गया था। यह वह समय था जब 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान श्री राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी थी। इसके बाद जब वह बिहार दौरे पर आए तब उन्होंने कहा था- पूरे राष्ट्र में उत्सव और खुशी का माहौल है। अयोध्या में राम प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या की कल्पना मिथिला के बगैर नहीं की जा सकती है। भारत की पहचान ही ज्ञान है। एक तरह से देखें तो मिथिला और भारत की पहचान ही ज्ञान है।

योगी आदित्यनाथ के बयान के रहे साथ

हाल में ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Elections) और यूपी विधानसभा उपचुनाव (UP Assembly by-election) के दौरान जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath) के ‘बंटोगे तो कटोगे’ बयान दिया था तो आरिफ मोहम्मद खान (Arif Mohammad Khan)  ने इसका समर्थन किया था। तब उन्होंने कहा, एकता का भाव सभी में होना ही चाहिए और इसमें कोई खास बात नहीं हैं। यह गलत भी नहीं है। इसके पहले वह शाहबानो प्रकरण से लेकर तमाम प्रगतिशील सोच वाली बातों को लेकर अक्सर अपनी बात खुलकर रखते रहे हैं। इसको लेकर कई बार वह विपक्ष के निशाने पर रहे हैं और उन्हें आरएसएस (RSS) की सोच वाला व्यक्ति होने का आरोप लगता रहा है।

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