देहरादून। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कोरोना महामारी की तैयारियों को लेकर दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई राज्य तीरथ सिंह रावत सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। प्रदेश में जब कोविड-19 की तीसरी लहर और वायरस के डेल्टा प्लस वैरिएंट को लेकर उत्तराखंड सरकार की तैयारियों के बारे में बहस चल रही थी। सरकार के जवाबों से नाराज़ होकर हाईकोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि सरकार आंख में धूल झोंकने का काम न करें।
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कोर्ट ने कहा कि आप बच्चों को मरने देने के लिए नहीं छोड़ सकते, आपके इंतज़ाम पर्याप्त नहीं हैं। देश भर में एक महीने में डेल्टा प्लस वैरिएंट फैल चुका है। यहां फैलने में डेल्टा वैरिएंट तीन महीने का वक्त नहीं लगाएगा। आप बच्चों को बचाने के लिए क्या कर रहे हैं?
हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस आरएस चौहान और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की डिविजन बेंच ने एक जनहित याचिका की शुक्रवार को सुनवाई की। इस दौरान उत्तराखंड सरकार द्वारा कोरोना वायरस महामारी संबंधी स्थितियों के मद्देनज़र राज्य के स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी की दलीलों पर खासी फटकार लगाई है। अदालत ने साफ तौर पर कहा कि आप ज़रूर यही सोच रहे हैं कि डेल्टा प्लस वैरिएंट उत्तराखंड सरकार से आकर कहेगा कि पहले आप पूरी तैयारी कर लें, फिर मैं हमला करूंगा?
सरकार के रवैये को कड़े शब्दों में आड़े हाथों लेते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि हमें मूर्ख मत बनाइए, हम सच जानते हैं। और आप चीफ जस्टिस को यह मत बताइए कि उत्तराखंड में राम राज्य है और लोग स्वर्ग में रहते हैं। यही नहीं, कोर्ट ने एंबुलेंसों की पर्याप्त संख्या को लेकर भी सरकार के दावों पर सवाल उठाए हैं।
आपके पास एंबुलेंस पर्याप्त हैं। यह आपका दावा गलत है। आपके दावे के उलट, लगातार इस तरह की रिपोर्ट्स आई हैं कि पहाड़ी इलाकों में गर्भवती महिलाओं को एंबुलेंस नहीं मिल सकी। इसलिए उन्हें खाटों या पालकियों में अस्पताल तक ले जाया गया। इसके साथ ही, कोर्ट ने राज्य की ब्यूरोक्रेसी की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए हैं।
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कोर्ट ने कहा कि महामारी के समय में जब युद्धस्तर पर काम किए जाने की ज़रूरत है। तब नौकरशाही प्रक्रियाओं में लेटलतीफी कर रही है। कोर्ट ने इस सुनवाई को 7 जुलाई तक के लिए मुल्तवी करते हुए निर्देश दिए कि इस समय के भीतर स्वास्थ्य सचिव और मुख्य सचिव पूरे ब्योरे के साथ हलफनामा दाखिल करें।