भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जयंती: भारतेंदु हरिश्चंद्र भारतीय आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक कहे जाते है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी भारतेंदु जी ने साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में मौलिक एवं युगान्तकारी परिवर्तन किए तथा हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी। वे हिन्दी साहित्य में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम हरिश्चंद्र था बाद में इन्हें ‘भारतेंदु’ की उपाधि दी गई थी भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी का जन्म 9 सितम्बर 1850 ई. में काशी में हुआ था। इनके पिता बाबू गोपालचन्द्र जी थे, जो वे ‘गिरधरदास’ उपनाम से कविता करते थे।
पढ़ें :- Health And Fitness : फिट रहने के लिए अपनाएं अच्छी आदतें , थकान महसूस नहीं होगी
स्वभाव से अति उदार थे
भारतेन्दु जी ने पॉंच वर्ष की अल्पायु में ही काब्य-रचना कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। बाल्यावस्था में ही माता-पिता की छत्रछाया उनके सिर से उठ जाने के कारण उन्हें उनके वात्सलय से वंचित रहना पड़ा। भारतेन्दु जी की स्कूली शिक्षा में व्यवधान पड़ गया। आपने घर पर ही स्वाध्याय से हिन्दी, उन्होंने अँग्रेजी, संस्कृत, फारसी, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं का उच्च ज्ञान प्राप्त कर लिया। 13 वर्ष की अल्पायु में ही उनका विवाह हो गया। वे स्वभाव से अति उदार थे।
स्त्री शिक्षा के लिए ‘बाला बोधिनी’ नामक पत्रिकाएँ निकालीं
पंद्रह वर्ष की अवस्था से ही भारतेन्दु ने साहित्य सेवा प्रारम्भ कर दी थी। अठारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने ‘कविवचनसुधा’ नामक पत्रिका निकाली, जिसमें उस समय के बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाएं छपती थीं। वे बीस वर्ष की अवस्था में ऑनरेरी मैजिस्ट्रेट बनाए गए और आधुनिक हिन्दी साहित्य के जनक के रूप मे प्रतिष्ठित हुए। उन्होंने 1868 में ‘कविवचनसुधा’, 1873 में ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ और 1874 में स्त्री शिक्षा के लिए ‘बाला बोधिनी’ नामक पत्रिकाएँ निकालीं।
पढ़ें :- Summer Health Care Tips : छाछ का सेवन शरीर को ठंडा रखता है , गर्मी के मौसम में खाएं दही
भारतेन्द्र हरिश्चन्द्र काव्य-प्रतिभा (Bhartendu Harishchandra Poems) अपने पिता से विरासत में मिली थीॉ। उन्होंने पांच वर्ष की अवस्था में दोहा बनाकर अपने पिता को सुनाया और सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया-
लै ब्योढ़ा ठाढ़े भए श्री अनिरुद्ध सुजान।
बाणासुर की सेन को हनन लगे भगवान॥
विलक्षण प्रतिभा के धनी हरिश्चन्द्र की स्मरण शक्ति तीव्र थी और ग्रहण क्षमता अद्भुत। बताते हैं कि बनारस में उन दिनों अंग्रेजी पढ़े-लिखे और प्रसिद्ध लेखक राजा शिवप्रसाद ‘सितारेहिन्द’ थे, हरिश्चन्द्र उनके यहां जाते थे। उन्हीं से हरिश्चन्द्र ने अंग्रेजी सीखी। स्वाध्याय से ही संस्कृत, मराठी, बंगला, गुजराती, पंजाबी, उर्दू भाषाएं भी सीख लीं। आधुनिक हिंदी के पितामह कहे जाने वाले महान साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पर चरितार्थ होती है। महज 34 वर्ष की अल्पआयु में इतना लिख दिया और इतना काम कर गए कि उनके समय को ‘भारतेन्दु’ युग कहा जाता है। आज जो हिंदी हम लिखते-बोलते हैं, वह भारतेंदु की ही देन है। उन्हें आधुनिक हिंदी का जनक माना जाता है।
भारतेंदु जी ने न केवल नई विधाओं का सृजन किया बल्कि वे साहित्य की विषय-वस्तु में भी नयापन लेकर आए।
कहानी
अद्भुत अपूर्व स्वप्न
पढ़ें :- Mahindra XUV 3XO : आ गई एक्सयूवी 3एक्सओ , स्पोर्टी लुक आपको दीवाना बना देगा
यात्रा वृत्तान्त
सरयूपार की यात्रा
लखनऊ
आत्मकथा
एक कहानी- कुछ आपबीती, कुछ जगबीती
निबंध संग्रह
नाटक
कालचक्र (जर्नल)
लेवी प्राण लेवी
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?
कश्मीर कुसुम
जातीय संगीत
संगीत सार
हिंदी भाषा
स्वर्ग में विचार सभा
हिंदी साहित्य को एक से बढ़कर एक अद्भुत रचनाएं, नई दिशाएं देने वाले बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी भारतेन्दु हरिश्चचन्द्र अल्प आयु में ही 6 जनवरी, 1885 को सिर्फ 34 साल चार महीने की छोटी सी आयु में गोलोकवासी हो गए।