Shravan Singh Operation Sindoor: भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5-18 साल की उम्र के बच्चों को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया। जो हर साल बहादुरी, कला और संस्कृति, पर्यावरण, इनोवेशन, विज्ञान और टेक्नोलॉजी, समाज सेवा और खेल के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धियों के लिए दिया जाता है। सम्मानित होने वाले बच्चों में एक नाम पंजाब के 10 साल के श्रवण सिंह का भी शामिल रहा है, जिन्होंने भारत-पाकिस्तान सीमा पर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सैनिकों की निस्वार्थ मदद पहुंचायी थी।
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श्रवण सिंह पंजाब के साहिबजादा अजीत सिंह नगर (मोहाली) ज़िले के रहने वाले हैं और एक साधारण परिवार से आते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान उनके योगदान के लिए बहादुरी कैटेगरी में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया गया है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, श्रवण ने अपनी कम उम्र के बावजूद ज़बरदस्त हिम्मत और हमदर्दी दिखाते हुए, अपने गाँव के पास तैनात सैनिकों की मदद के लिए खुद आगे आया। इस योगदान के बाद, भारतीय सेना की गोल्डन डिवीजन ने घोषणा की कि वह श्रवण की पढ़ाई में मदद करेगी, जिससे उनके असाधारण योगदान को और भी सराहा गया।
श्रवण को इस ऑपरेशन में सबसे कम उम्र के नागरिक योगदानकर्ता के तौर पर पहचाना गया है, और उन्हें मुश्किल और जोखिम भरी परिस्थितियों में तैनात भारतीय सैनिकों को मानवीय सहायता देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली है। अधिकारियों ने बताया कि उसके कामों से खराब मौसम और लंबे ड्यूटी घंटों का सामना कर रहे सैनिकों को शारीरिक राहत और भावनात्मक हौसला दोनों मिला।
A 10 years old, Shravan Singh from Chak Taran Wali village, Ferozepur, showed extraordinary courage and compassion.
During Operation Sindoor, while danger loomed at high-risk border posts, Shravan selflessly served water, milk and tea to Indian Army personnel stationed at… pic.twitter.com/wAD2o5ngpd
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— Raghav Chadha (@raghav_chadha) December 26, 2025
आप सांसद राघव चड्ढा ने श्रवण को सम्मानित किए जाने पर खुशी जताई और उन्होंने एक्स पोस्ट में लिखा, “फिरोजपुर के चक तरन वाली गांव के 10 साल के श्रवण सिंह ने असाधारण हिम्मत और दया दिखाई। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, जब हाई-रिस्क बॉर्डर पोस्ट पर खतरा मंडरा रहा था, तब श्रवण ने निस्वार्थ भाव से आगे की चौकियों पर तैनात भारतीय सेना के जवानों को पानी, दूध और चाय पिलाई। ऐसी जगह पर डटे रहे जहां कई बड़े लोग भी हिचकिचाते। उनकी बहादुरी और सेवा की भावना हमें याद दिलाती है कि देशभक्ति उम्र से नहीं, बल्कि कामों से तय होती है।”