लखनऊ। मोदी सरकार (Modi Government) की महत्वाकांक्षी जल जीवन मिशन योजना में बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितता हुई हैं। इसका खुलासा होने के बाद केंद्र सरकार ने 15 राज्यों के 596 अधिकारी, 822 ठेकेदार और 152 तृतीय पक्ष निरीक्षण एजेंसियां (TPIA) जांच के घेरे में हैं। यूपी में आठ सालों से जल जीवन मिशन (Jal Jeevan Mission) में अपर मुख्य सचिव की कुर्सी पर अनुराग श्रीवास्तव (Anurag Shrivastava) जमे हुए हैं। इन्होंने पूरे देश में जल जीवन मिशन योजना घोटाले (Jal Jeevan Mission Scheme Scam) में यूपी को नंबर वन बना दिया है।
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सूत्रों ने बताया कि सीबीआई (CBI) , लोकायुक्त (Lokayukta) और अन्य भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियां भी कुछ मामलों में जांच कर रही हैं। इन 15 राज्यों में जल जीवन मिशन को लेकर 16,634 शिकायतें दर्ज की गई हैं, जिनमें से 16,278 मामलों में जांच रिपोर्ट तैयार की जा चुकी हैं। सबसे ज़्यादा शिकायतें उत्तर प्रदेश से आई हैं, इसके बाद असम में 1,236 और त्रिपुरा में 376 शिकायतें प्राप्त हुई।
एक ओर जहां इतनी बड़ी संख्या में शिकायतें सामने आई हैं, वहीं दूसरी ओर अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी की गई है। उत्तर प्रदेश में 171, राजस्थान में 170 और मध्य प्रदेश में 151 अधिकारी कार्रवाई के दायरे में आए हैं। इसी तरह कई ठेकेदारों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है। त्रिपुरा में 376, उत्तर प्रदेश में 143 और पश्चिम बंगाल में 142 ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई की गई है।
जिन राज्यों से कार्रवाई या अनियमितताओं की रिपोर्ट मिली है, उनमें छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, लद्दाख, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और उत्तराखंड शामिल हैं। जानकारी के अनुसार, अक्टूबर 2024 में पेयजल एवं स्वच्छता विभाग (DDWS) ने एक आदेश जारी किया था, जिसमें जल जीवन मिशन के तहत सभी परियोजनाओं का स्थलीय निरीक्षण करने का निर्देश दिया गया था। इससे पहले, केंद्र सरकार ने नोडल अधिकारियों की एक टीम भी बनाई थी, जो इस मिशन की प्रगति पर नज़र रख रही है।
21 मई को, द इंडियन एक्सप्रेस ने JJM डैशबोर्ड पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अपलोड किए गए आंकड़ों की अपनी जाँच के निष्कर्ष प्रकाशित किए, जिसमें दिखाया गया कि कैसे तीन साल पहले मिशन के दिशानिर्देशों में बदलावों ने व्यय पर एक महत्वपूर्ण नियंत्रण हटा दिया और लागत में वृद्धि हुई। जाँच में पाया गया कि इसके परिणामस्वरूप 14,586 योजनाओं पर कुल 16,839 करोड़ रुपये की अतिरिक्त लागत आई – जो उनकी अनुमानित लागत से 14.58 प्रतिशत अधिक है।
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केंद्र ने 2019 में जल जीवन मिशन (जेजेएम) की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नल कनेक्शन प्रदान करना था। हालांकि यह मिशन 2024 में समाप्त हो गया, लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी, 2025 को अपने बजट भाषण में 2028 तक बढ़ी हुई वित्तीय सहायता के साथ इसे जारी रखने की घोषणा की। हालांकि, इस कदम को अभी केंद्रीय मंत्रिमंडल के तरफ से अनुमोदित किया जाना बाकी है।
सूत्रों के अनुसार, छह अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों – अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, लक्षद्वीप और सिक्किम ने भी केंद्र के आह्वान पर प्रतिक्रिया दी, लेकिन प्राप्त शिकायतों और की गई कार्रवाई का विवरण साझा नहीं किया। सूत्रों ने बताया कि दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, नागालैंड, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब और तमिलनाडु से कोई जानकारी नहीं मिली।
बिहार और तेलंगाना ने भी प्राप्त शिकायतों का विवरण साझा नहीं किया, लेकिन दोनों राज्यों ने अपनी योजनाओं के माध्यम से नल कनेक्शन प्रदान किए थे। सूत्रों ने बताया कि डीडीडब्ल्यूएस के अधिकारियों ने पिछले सप्ताह 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से प्राप्त प्रतिक्रियाओं की समीक्षा की और अन्य राज्यों के साथ इस मामले को आगे बढ़ा रहे हैं।
पिछले महीने, डीडीडब्ल्यूएस ने राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र भेजकर उनसे 20 अक्टूबर तक लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) के उन अधिकारियों के बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था जिनके विरुद्ध जल जीवन मिशन परियोजनाओं में काम की खराब गुणवत्ता या वित्तीय अनियमितताओं से संबंधित शिकायतों के संबंध में अनुशासनात्मक कार्रवाई, निलंबन, निष्कासन या एफआईआर शुरू की गई है।
विभाग ने राज्यों से ठेकेदारों और टीपीआईए के खिलाफ की गई कार्रवाई पर एक स्थिति रिपोर्ट साझा करने को भी कहा था। इसने ठेकेदारों पर लगाए गए जुर्माने, काली सूची में डाले गए ठेकेदारों की संख्या, जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है और वसूली की कार्रवाई शुरू की गई है, इसके बारे में भी जानकारी मांगी थी। विभाग ने यह कदम अक्टूबर के पहले सप्ताह में एक शीर्ष-स्तरीय समीक्षा बैठक के बाद उठाया है।