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भारतीय किसान संघ ने केंद्र सरकार से मांग, कहा- राष्ट्रीय जीएम नीति बनाने में किसानों की राय शामिल हो

By आराधना शर्मा 
Updated Date

नई दिल्ली: भारतीय किसान संघ (Indian Farmers Union) ने केंद्र सरकार से मांग की है कि जैविक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों पर राष्ट्रीय नीति बनाने से पहले किसानों की राय को शामिल किया जाए। इस मुद्दे पर किसानों को जागरूक करने के लिए संघ ने पूरे देश में जनजागरण अभियान शुरू किया है। किसान संघ (Farmers Union) ने देशभर में 600 से अधिक जिलों में लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों को ज्ञापन सौंपना शुरू (Submission of memorandum to Rajya Sabha MPs begins) किया है।

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उनका कहना है कि शीतकालीन सत्र में जीएम नीति पर चर्चा होनी चाहिए, ताकि सभी पक्षों को ध्यान में रखकर एक समग्र नीति बनाई जा सके। संघ के अखिल भारतीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र (All India General Secretary Mohini Mohan Mishra) ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2024 में केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह किसानों, कृषि वैज्ञानिकों, राज्य सरकारों और उपभोक्ता संगठनों से विचार-विमर्श के बाद जीएम फसलों पर नीति बनाए।

अदालत ने नीति में पर्यावरण, स्वास्थ्य, आयात-निर्यात, लेबलिंग और सार्वजनिक जागरूकता जैसे पहलुओं पर चर्चा करने को कहा था। लेकिन अब तक सरकार ने किसानों या अन्य हितधारकों से राय नहीं ली है। भारतीय किसान संघ का मानना है कि जीएम फसलें देश के लिए जरूरी नहीं हैं और ये पर्यावरण, जैव विविधता और किसानों के लिए हानिकारक हो सकती हैं।

बीटी कपास का उदाहरण देते हुए संघ ने कहा कि यह कई किसानों के लिए नुकसानदायक साबित हुआ है और इससे प्रेरित आत्महत्याओं के मामले भी सामने आए हैं। संघ का कहना है कि भारत को कम यंत्रीकरण वाली खेती प्रणाली चाहिए, न कि जीएम आधारित खेती। संघ ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार बिना पर्याप्त अध्ययन के जीएम फसलों को अनुमति देने की योजना बना रही है, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती है।

उन्होंने कहा कि यह नीति किसानों और आम जनता के हितों के खिलाफ होगी। भारतीय किसान संघ के प्रचार प्रमुख राघवेंद्र सिंह पटेल ने बताया कि ज्ञापन के जरिए सांसदों से आग्रह किया गया है कि वे शीतकालीन सत्र में जीएम नीति पर चर्चा करें और इसे सुरक्षित और किसानों के हित में बनाया जाए। किसान संघ ने सरकार को आगाह करते हुए कहा है कि बिना विचार-विमर्श के बनाई गई कोई भी नीति किसानों के भविष्य और पर्यावरण के लिए घातक साबित हो सकती है। अब यह देखना होगा कि सरकार इस पर क्या कदम उठाती है।

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