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राम मंदिर को बड़ा मुद्दा बनाकर लोकसभा चुनाव 2024 फतह करने की पुरजोर कोशिश में जुटी बीजेपी

By संतोष सिंह 
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नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार (Modi Government) व प्रदेश की योगी सरकार (Yogi Government) अयोध्या में आगामी 22 जनवरी को होने वाले रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह (Ramlala Pran Pratistha Ceremony) की तैयारों में जोर शोर से लगी हुई है। देश के सभी मुख्यधारा के न्यूज़ चैनल और अखबार भी सिर्फ राम मंदिर (Ram Mandir) के प्राण प्रतिष्ठा समारोह (Pran Pratistha Ceremony) को प्रचारित और प्रसारित कर रहे हैं। इसी बीच देश के विपक्षी दल कह रहे हैं कि ये विशुद्ध रूप से राजनीतिक है। तो वहीं केंद्र व प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी (BJP) इसे देश का सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर आगामी लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Elections 2024) फतह करने की पुरजोर कोशिश करती नजर आ रही है। यही आरोप सभी मुख्य विपक्षी दल भी लगा रहे हैं।

आज से करीब 10 साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) देश में चुनाव प्रचार के दौरान सत्ता में आने पर युवाओं को बड़ी संख्या में रोज़गार देने का वादा किया था, लेकिन आज देश में लगातार बढ़ रही बेरोज़गारी (Unemployment )देखकर यह बात साफ हो जाती है कि वो बात भी एक जुमला ही थी। ये बात हम नहीं जून 2019 में खुद केंद्र सरकार के श्रम विभाग (Labour Department) ने ये माना कि साल 2017-18 में देश में बेरोज़गारी दर (Unemployment Rate) 45 सालों में सबसे ज़्यादा थी।

देश में सत्तारूढ़ दल का मुख्य काम रोज़गार, मंहगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य व जनता के लिए जीने के बेहतर हालात पैदा करना होता है, लेकिन जब राजनीति का इस्तेमाल एक धर्म या जाति के लोगों को दूसरे धर्म या जाति के लोगों के खिलाफ खड़ा करने के लिए इस्तेमाल होता है। तो अक्सर वो जनता के असली मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास होता है। जैसे आज देश में धर्म के नाम पर राजनीति कर बेरोज़गारी जैसे बड़े मुद्दे पर सरकार भटका रही है।

इसकी कलई जेएनयू (JNU) में प्रोफेसर रहे अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने 21 अप्रैल 2019 को ‘Unemployment, Poverty and the Modi Years’ शीर्षक से लेख प्रकाशित कर किया था। इसमें उन्होंने लिखा था कि “मोदी के सत्ता में आने से पहले की तुलना में बेरोज़गारी दर (Unemployment Rate) बढ़ी है। जब हम 2014 को अपना आधार वर्ष मानते हैं, तो हम पाते हैं कि प्रत्येक अगले वर्ष में, जिसके लिए हमारे पास पूरा डेटा है, न केवल कामकाजी आबादी के लिए, बल्कि पूरी आबादी के लिए प्रति व्यक्ति अनाज की उपलब्धता, 2014 की तुलना में कम थी। जिसका अर्थ है कि प्रत्येक अगले वर्ष में आय रोज़गार की स्थिति स्पष्ट रूप से बदतर होती रही है।

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इसी तरह अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी (Azim Premji University) के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट (Centre For Sustainable Employment ) की स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2023 रिपोर्ट के अनुसार 2021-22 में देश के 25 साल से कम उम्र के 42 फीसदी से ज़्यादा ग्रेजुएट युवा बेरोज़गार थे। ये रिपोर्ट केंद्र सरकार के उन दावों की हवा निकाल देती है जो कहते हैँ कि सिर्फ जीडीपी (GDP) में वृद्धि से बेरोज़गारी की समस्या दूर हो जाएगी।

अक्टूबर 2023 में Centre for Monitoring Indian Economy (CMIE) के प्रकाशित आंकड़े बताते हैं कि देश में बेरोज़गारी दर 10.05 फीसदी थी, ग्रामीण बेरोज़गारी दर 10.82 फीसदी थी जबकि शहरी बेरोजगारी दर 8.44 फीसदी थी। यह बेरोज़गारी दर मई 2021 के बाद से सबसे अधिक थी। (CMIE) की एक अन्य रिपोर्ट ये है कि 2022-23 में युवाओं के बीच बेरोज़गारी दर 45.4 फीसदी रही। यह भारत की बेरोज़गारी दर 7.5 प्रतिशत से छह गुना अधिक है। इसके अलावा, हाल के दिनों में इसमें भयंकर बढ़ोतरी हुई है और 2017-18 के बाद इसमें 23 फीसदी से अधिक अंक की वृद्धि दर्ज की गई है। ये आंकड़े आज की बढ़ती बेरोज़गारी का भयानक मंज़र की गवाही दे रहे हैं।

अगस्त 2023 में लोकनीति- CSDS में छपी रिपोर्ट में 15 से 34 साल के 36 फीसदी युवाओं के हिसाब से बेरोज़गारी देश की सबसे बड़ी समस्या माना है । इन युवाओं में से 16 फीसदी ने गरीबी और 13 फीसदी युवाओं ने बढ़ती महंगाई को देश की सबसे बड़ी समस्या बताया। लोकनीति- CSDS के मुताबिक 2016 में उन्होंने इसी तरह का सर्वे कराया था। तब के मुकाबले अब 18 फीसदी ज़्यादा युवा बेरोज़गारी को सबसे बड़ा मुद्दा बता रहे हैं। ये सर्वे 18 राज्यों में किया गया और इन युवाओं में ग्रेजुएट और उससे ज़्यादा पढे 40 फीसदी युवाओं ने बेरोज़गारी के मुद्दे को ही सबसे बड़ा मुद्दा बताया था। शिक्षित युवाओं में इस मुद्दे के असर को ये रिपोर्ट चिन्हित करती है।

केन्द्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह (Union Minister Jitendra Singh) ने मार्च 2023 में संसद में एक जवाब देते खुद माना कि केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों में करीब 10 लाख पद खाली हैं। रोज़गारों के अवसरों में बढ़ोत्तरी न होने के मुद्दे पर अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक 12 नवंबर 2023 को छपे अपने लेख में “रोज़गार के अवसरों में पूर्ण ठहराव का कारण यह है कि पिछले कुछ वर्षों में विकास की प्रकृति पहले की तुलना में बदल गई है, जिससे विकास कम रोजगार पैदा करने वाला हो गया है। इसके अलावा मोदी सरकार (Modi Government)  के नोटबंदी (Demonetization) और GST टैक्स लागू करने के फैसले से इसकी मुसीबतें और बढ़ा दी थीं।

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