CAA Rules Notified : लोकसभा चुनाव 2024 से पहले केंद्र की मोदी सरकार (Modi government) ने देशभर में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लागू कर दिया है। सोमवार यानी 11 मार्च की शाम को इससे जुड़े नियम भी अधिसूचित कर दिए गए हैं। इस कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए बिना दस्तावेज वाले गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने का प्रावधान है। हालांकि, कई राज्य ऐसे भी हैं जो सीएए के दायरे से बाहर रहेंगे।
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जानकारी के मुताबिक, भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में सीएए (CAA) लागू नहीं किया जाएगा, जिनमें संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष दर्जा प्राप्त क्षेत्र भी शामिल हैं। कानून के मुताबिक, सीएए उन सभी पूर्वोत्तर राज्यों में लागू नहीं किया जाएगा, जहां देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले लोगों को यात्रा के लिए ‘इनर लाइन परमिट’ (आईएलपी) की जरूरत होती है। अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम और मणिपुर उन राज्यों में शामिल हैं, जहां पर आईएलपी (ILP) लागू है।
नियमों के हवाले से अधिकारियों का कहना है कि जिन जनजातीय क्षेत्रों में संविधान की छठी अनुसूची के तहत स्वायत्त परिषदें बनाई गई हैं, उन्हें भी सीएए के दायरे से बाहर रखा गया है। असम, मेघालय और त्रिपुरा में ऐसी स्वायत्त परिषदें हैं। यानी अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम और मणिपुर, असम, मेघालय और त्रिपुरा राज्य सीएए के दायरे से बाहर रहेंगे।
पश्चिम बंगाल और केरल सरकार का विरोध
सोमवार को सीएए की अधिसूचना जारी होते ही इसका विरोध शुरू हो गया। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) और केरल के सीएम पिनराई विजयन (Pinarayi Vijayan) समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने इसका विरोध किया है। ममता बनर्जी का कहना है कि अगर सीएए के नियमों के ज़रिए लोगों को उनके अधिकारों से वंचित किया गया, तो वह इसके ख़िलाफ़ लड़ेंगी। उन्होंने कहा कि सीएए लागू करना चुनाव के लिए भाजपा का प्रचार है और कुछ नहीं। हालांकि, ममता बनर्जी ने लोगों से शांत रहने और अफ़वाहों से बचने की अपील की है।
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दूसरी तरफ, केरल के सीएम पिनराई विजयन का कहना है कि उनकी सरकार पहले ही कह चुकी है कि वह इस कानून को अपने राज्य में लागू नहीं होने देगी। विजयन ने इसे सांप्रदायिक कानून करार देते हुए कहा कि इसके विरोध में पूरा केरल एकजुट है। उन्होंने कहा कि केरल पहला राज्य था, जिसने सीएए के विरोध में साल 2019 में विधानसभा में प्रस्ताव पास कर इस कानून को रद्द करने की मांग की थी।