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लोकप्रियता हासिल करने के लिए बदलाव का नजरिया बेहतर

By संतोष सिंह 
Updated Date

शाश्वत तिवारी

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मोदी सरकार को सत्ता में जब 07 साल हो गए हैं, देश महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा है। कमजोर विपक्ष भले चुनौती नहीं बन पाया है, लेकिन प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की लोकप्रियता में कमी संघ के लिए चिंता का कारण है। महामारी की दूसरी लहर के प्रबंधन में सरकारों (केंद्र और राज्यों) ने टीकाकरण को एकमात्र रामबाण मान लिया है। और वैक्सीन खरीद के प्रबंधन ने लाखों लोगों को कतार में खड़े होने को विवश कर दिया है। निसंदेह पूरे भारत में लोगों के दुख और गुस्से में इसकी प्रतिक्रिया दिखाई है।

सी-वोटर के साप्ताहिक सर्वेक्षण के अनुसार मोदी की लोकप्रियता 63 प्रतिशत से घट कर 38 प्रतिशत तक आ गई है। एक बहुविकल्पीय प्रश्न के माध्यम से जनमत सर्वेक्षण के जरिए भारत के राजनीतिक परिदृश्य के बारे में एक दिलचस्प खाका तैयार करना दुर्लभ है। और सर्वेक्षक यशवंत देशमुख ने अपने सर्वेक्षण के माध्यम से जिसमें 10,000 लोगों से सवाल पूछे गए, बस यही किया है।

सी-वोटर सर्वेक्षणकर्ता ने पूछा, ‘आपको क्या लगता है कि भारत के प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार कौन है ?’ प्रतिक्रियाओं का बारीक विवरण ये कहानी बता रहा है जिसमें नरेंद्र मोदी की वरीयता 63 प्रतिशत से घटकर 38 फीसदी तक आ गई है। इससे ज्यादा जरूरी बात यह है कि उत्तरदाताओं की दूसरी पसंद लगभग 18 प्रतिशत, बता नहीं सकते/ कह नहीं सकते हैं।

सभी उम्मीदवारों की कुल लोकप्रियता मोदी की तुलना में काफी कम है। राहुल गांधी 11.6 प्रतिशत के साथ विपक्षी नेताओं की सूची में सबसे ऊपर है। गौरतलब बात ये भी है कि महागठबंधन बनने का भी कुछ खास नहीं हो पाएगा, ऐसा कहने वालों का अनुपात 08 से 18 फीसदी तक बढ़ गया है। महामारी के आगमन के साथ शुरु होने वाली गिरावट तेज हो रही है और मतदाताओं की सबसे बड़ी चिंता दोहरी चुनौतियों का प्रबंध है। महामारी और आर्थिक गिरावट विशेष रुप से रोजगार और छोटे व्यवसायों का पतन। सर्वेक्षण से पता चलता है कि उत्तरदाता अपने जीवन और देश की स्थिति के बारे में निराशाजनक होते जा रहे हैं। फिर से लोकप्रियता हासिल करने के लिए बदलाव का नजरिया बेहतर है। यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि टीकाकरण अभियान को कैसे नया रुप दिया जाता है और अर्थव्यवस्था को कैसे पुनर्जीवित किया जाता है।

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