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JNU VC प्रो. शांतिश्री धुलीपुड़ी का विवादास्पद बयान, कहा-देवता ऊंची जाति के नहीं होते, भगवान शिव हो सकते हैं SC या ST

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU ) की कुलपति प्रो. शांतिश्री धूलिपुडी पंडित (JNU VC Prof. Shantisree Dhulipudi Pandit) ने सोमवार को कहा कि मानवशास्त्रीय रूप से देवता ऊंची जाति के नहीं होते। उन्होंने कहा कि भगवान शिव (Lord Shiva) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति (SC or ST)  के हो सकते हैं। उन्होंने मनुस्मृति (Manusmriti) का हवाला देकर उन्होंने महिलाओं के लिए भी कुछ विवादास्पद बातें कही हैं।

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जानें मामला क्या है?
बता दें कि सोमवार को डॉ. बी आर अंबेडकर के विचार जेंडर जस्टिस रू डिकोडिंग द यूनिफॉर्म सिविल कोड विषय पर व्याख्यान था। इसी में जेएनयू की कुलपति प्रो. शांतिश्री धुलीपुड़ी शामिल हुईं थीं। इसी दौरान उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं को लेकर टिप्पणी की। उन्होंने देवी देवताओं की जाति तक का जिक्र किया है। उन्होंने कहा कि आप में से अधिकांश को हमारे देवताओं की उत्पत्ति को मानवशास्त्र या वैज्ञानिक लिहाज से समझना चाहिए। कोई भी देवता ब्राह्मण नहीं है। सबसे ऊंचा क्षत्रिय है । भगवान शिव एससी या एसटी समुदाय के होंगे, क्योंकि वे श्मशान में गले में सांप डालकर बैठते हैं । उनके पास पहनने के लिए कपड़े भी बहुत कम हैं । मुझे नहीं लगता कि ब्राह्मण श्मशान में बैठ सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि लक्ष्मी, शक्ति या यहां तक कि भगवान जगन्नाथ भी मानवविज्ञान के लिहाज से अगड़ी जाति के नहीं हैं । भगवान जगन्नाथ आदिवासी समुदाय के हैं।

मनुस्मृति के अनुसार सभी महिलाएं शूद्र हैं, इसलिए कोई भी महिला ये दावा नहीं कर सकतीं कि वे ब्राह्मण या कुछ और हैं

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि महिलाओं की जाति शादी के बाद मिलती है। जेएनयू की कुलपति के बयान पर अब विवाद शुरू हो गया है। प्रो. शांतिश्री पर कार्रवाई की मांग हो रही है। महिलाओं के बारे में उन्होंने कहा कि मैं सभी महिलाओं को बता दूं कि मनुस्मृति के अनुसार सभी महिलाएं शूद्र हैं, इसलिए कोई भी महिला ये दावा नहीं कर सकतीं कि वे ब्राह्मण या कुछ और हैं। आपको जाति केवल पिता या विवाह के ज़रिए पति से मिलती है। मुझे लगता है कि ये पीछे ले जाने वाला विचार है। महिलाओं के लिए आरक्षण की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए उन्होंने कहा कि अधिकतर लोग इसके पक्ष में होंगे। उनके अनुसार, आज भी देश के 54 विश्वविद्यालयों मे से केवल 6 में महिला कुलपति हैं।

समान नागरिक संहिता की भी की वकालत

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कार्यक्रम के दौरान उन्होंने समान नागरिक संहिता लागू करने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि डॉक्टर आंबेडकर समान नागरिक संहिता लागू करना चाहते थे। गोवा का जिक्र करते हुए प्रोफेसर शांतिश्री ने कहा कि वहां समान नागरिक संहिता है जो पुर्तगालियों ने लागू  की थी।  इसकी वजह से गोवा में हिंदू, ईसाई और बौद्ध सभी इसे स्वीकार करते हैं। अगर ये गोवा में हो सकता है तो बाकी राज्यों में ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता है।  लैंगिक समानता की बात करते हुए प्रोफेसर शांतिश्री ने कहा कि आज भी 54 विश्वविद्यालयों में से केवल छह में महिला कुलपति हैं, जबकि केवल एक आरक्षित वर्ग से है।

विश्वविद्यालयों के कुलपति के लिए कुलगुरु शब्द का इस्तेमाल होना चाहिए

जेंडर तटस्थता पर ज़ोर देते हुए जेएनयू की वीसी ने कहा है कि विश्वविद्यालयों के कुलपति के लिए कुलगुरु शब्द का इस्तेमाल होना चाहिए।उन्होंने कहा कि 14 सितंबर को वर्किंग काउंसिल की बैठक में जब इस पर चर्चा होगी, तो मैं कुलपति को कुलगुरु करने का प्रस्ताव रखूंगी।आलोचना से न डरने की सलाह देते हुए उन्होंने कहा है कि जब हम हिंदू धर्म को जीवन जीने का तरीक़ा बताते हैं तो आलोचना से डरने की ज़रूरत नहीं है। राजस्थान में नौ साल के एक दलित बच्चे की पिटाई के बाद हुई मौत के मामले का ज़िक्र करते हुए उन्होंने इसकी निंदा की है।

जानें  कौन हैं शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित ? 
प्रो. शांतिश्री धुलिपुड़ी पंडित जेएनयू की पहली महिला कुलपति हैं। प्रोफेसर शांतिश्री जेएनयू की वीसी बनने से पहले सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय में थीं। शांतिश्री धुलिपुडी राजनीतिक और लोक प्रशासन विभाग की प्रोफेसर हैं। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से एमफिल और पीएचडी की है। 1998 में गोवा विश्वविद्यालय से अपने शैक्षणिक करिअर की शुरुआत की। 1993 में पुणे विश्वविद्यालय चली गईं। हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, तमिल जैसी छह भाषाओं में दक्ष प्रोफेसर धुलिपुडी कन्नड़, मलयालम और कोंकणी भी समझ लेती हैं।

शांतिश्री का जन्म 15 जुलाई 1962 को रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में हुआ था। पिता डॉ. धुलिपुड़ी अंजानेयूलु आईएएस अफसर थे। बाद में उन्होंने पत्रकार और लेखक के रूप में अपनी पहचान बनाई। मां प्रो. मुलामूदी आदिलक्ष्मी तमिल और तेलुगु भाषा की प्रोफेसर रहीं हैं।  प्रोफेसर धुलिपुडी की शुरुआती पढ़ाई मद्रास (अब चेन्नई) में हुई। इसके बाद जेएनयू से एम.फिल में टॉप किया। फिर यहीं से पीएचडी भी की। 1996 में उन्होंने स्वीडन की उप्पसला यूनविर्सिटी से डॉक्टोरल डिप्लोमा हासिल किया।

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