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ट्रंप के नए फैसले ने भारतीय इंजीनियरों के लिए खड़ी की बड़ी मुसीबत, H-1B वीजा पर हर साल देने होंगे करीब 90 लाख रुपये

By Abhimanyu 
Updated Date

WASHINGTON, DC - JANUARY 20: President Donald Trump signs executive orders in the Oval Office on January 20, 2025 in Washington, DC. Trump takes office for his second term as the 47th president of the United States. (Photo by Anna Moneymaker/Getty Images)

US H-1B Visa Fees Hike: मनमाने टैरिफ थोपने के बाद अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा (H-1B Visa) के लिए नई शर्तें लागू कर दी हैं। जिसके तहत इस वीजा को हासिल करने के लिए कंपनियों को हर साल 1 लाख डॉलर ( करीब 90 लाख रुपये) चुकाने होंगे। यह फैसला भारतीय इंजीनियरों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि हजारों की संख्या में भारतीय इसी वीजा की मदद से अमेरिका जाते हैं, जिसका खर्च अमेरिकी कंपनियां खासकर आईटी सेक्टर की कंपनियां उठाती हैं।

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राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि नए नियमों के तहत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अमेरिका में अच्छी स्किल्स वाले लोग ही आएं, जिससे अमेरिका के नागरिकों की नौकरी सुरक्षित रहेगी। उन्होंने कहा, ‘अमेरिका को अच्छे कर्मचारियों की जरूरत है। नए नियमों से यह सुनिश्चित होगा कि अमेरिका में बेहतरीन कर्मचारी ही आ सकें।” ट्रंप ने कहा, ‘मुझे लगता है टेक इंडस्ट्री इस फैसले से खुश होगी।’ व्हाइट हाउस के स्टाफ सेक्रेटरी विल शार्फ ने इसे एच-1बी सिस्टम के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए अहम कदम बताया है। शार्फ कहना है कि यह प्रोग्राम सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए होना चाहिए जो अमेरिका में दुर्लभ और हाई-स्किल्ड काम करते हैं, न कि ऐसे काम के लिए जिन्हें अमेरिकी प्रोफेशनल्स भी कर सकते हैं।

बता दें कि अमेरिका में एच-1बी वीजा की शुरुआत 1990 में हुई थी, जिससे देश के कम कर्मचारी वाले क्षेत्रों में उच्च-शिक्षित और विशेषज्ञ विदेशी पेशेवरों को काम पर रख सके। लेकिन आलोचकों का मानना है कि समय के साथ कंपनियों ने एच-1बी वीजा गलत फायदा उठाना शुरू कर दिया। H-1B वीजा को कोई विदेशी नागरिक हासिल खुद हासिल नहीं कर सकता। अमेरिकी कंपनियां खुद अपनी सरकार को आवेदन भेजकर कहती हैं कि उन्हें स्किल वाले कर्मचारियों की जरूरत है।

अमेरिकी कंपनियां खुद सारे कागज भरती है और सरकार को फीस देती है। अब तक H-1B वीजा की फीस बहुत कम थी, इसलिए कई बड़ी आईटी कंपनियां और कंसल्टेंसी फर्म हजारों-लाखों आवेदन भेजती थीं और अमेरिका में एंट्री-लेवल नौकरियां विदेशी इंजीनियरों से भर जाती थीं। लेकिन, ट्रंप प्रशासन की ओर से इसकी फीस को बढ़ाए जाने के बाद भारत समेत अन्य देशों के इंजीनियरों की उम्मीदों को बड़ा झटका लग सकता है।

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