गोरखपुर। उत्तर प्रदेश त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए हुई आरक्षण व्यवस्था पर हाईकोर्ट की रोक के बाद कहीं मायूसी तो कहीं खुशी का माहौल बन गया है। आलम यह है कि आरक्षण की वजह से चुनाव से बाहर हुए संभावित उम्मीदवारों ने मिठाइयां तक बांटी, खुशियां मनाईं और खुद के उम्मीदवार होने की संभावनाओं को जताने की कोशिश भी की।
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हाईकोर्ट ने 2015 की आरक्षण व्यवस्था के आधार इस बार भी सरकार से आरक्षण निर्धारित करने को आदेश दिया है। हालांकि, इस आदेश से पहले आरक्षण के आधार पर पोस्टर-बैनर छपवाकर प्रचार-प्रसार कर रहे उम्मीदवारों को झटका लगा है। इनकी मायूसी यह साफ बता रही है कि अब आरक्षण व्यवस्था बदली तो उनकी दावेदारी चली जायेगी। हालांकि यह उनके मन की केवल शंका है फिर भी वे न जाने क्यों सकारात्मक पहलू को सोच नहीं पा रहे हैं। संभावना तो यह भी है कि कहीं उनकी पहले वाली आरक्षण व्यवस्था ही कायम रह जाए।
इधर, पहले वाली आरक्षण व्यवस्था से जिन प्रत्याशियों के हाथ मायूसी लगी थी, वे अब इस उम्मीद में हैं कि शायद नई व्यवस्था से कुछ बदलाव होगा और वे चुनाव मैदान में जोर-आजमाइश कर सकेंगे। कुशीनगर के कसया ब्लाक के माधोपुर गांव से उम्मीदवारी ठोक रहे लालचन्द प्रसाद का कहना है कि सीटों का उलटफेर हुआ तो शायद उन्हें अपनी मनमाफिक सीट से चुनावी मैदान में उतरने का मौका मिल जाए। अनुसूचित जाति की सीट होने की संभावना ज्यादा बढ़ गई है। फिलहाल अभी सामान्य सीट होने से उम्मीदवारी का कोई खतरा तो नहीं था, लेकिन लड़ाई कांटे की होती। अब रास्ता आसानी से साफ होने की उम्मीद जग गई है।
बता दें कि यूपी के होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में इस बार सरकार ने नई आरक्षण व्यवस्था लागू की थी। इस व्यवस्था से अंतिम आरक्षण सूची जारी होने से कई दावेदार मैदान से बाहर हो गए थे। उन्होंने सूची पर आपत्तियां की थीं। आपत्तियों का निस्तारण कर अब जिला प्रशासन को फाइनल लिस्ट जारी करनी थी। इसी बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने आधार वर्ष का मुद्दा उठाने वाली एक याचिका पर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में सीटों के आरक्षण और आवंटन को अंतिम रूप देने की कार्रवाई पर 15 मार्च तक के लिए रोक लगा दी थी। आज सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सरकार वर्ष 2015 के आधार पर आरक्षण व्यवस्था को लागू करे।