नई दिल्ली: महाभारत की कहानी कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध पर आधारित है। महाभारत में द्रौपदी के साथ जितना अन्याय होता दिखता है, उतना अन्याय इस महाकथा में किसी अन्य स्त्री के साथ नहीं हुआ। द्रौपदी संपूर्ण नारी थी।और शायद द्रौपदी भारतीय पौराणिक इतिहास की प्रथम और अंतिम महिला थी जिसके पांच पति थे और जो पांच पुरुषों के साथ रमण करती थी? लेकिन पाठकों क्या कभी आपने सोचा है की पांच पुरुषों से विवाह करने के बाद उसने सभी पांडवों के साथ सुहागरात कैसे मनाई होगी या वह पांचों पांडव को कन्या रूप में कैसे मिली।
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द्रोपदी महाभारत की वो पात्र है जिसके अपमान के कारण ही इतिहास का सबसे भयंकर रक्तरंजित युद्ध हुआ। महाभारत में द्रोपदी का चरित्र जितना अनोखा है उसके जन्म की कथा भी उतनी ही चमत्कारिक है। दौपदी राजा द्रुपद की पुत्री थी जिसका जन्म यज्ञ की अग्नि से हुआ था। इससे जुडी कथा भी बड़ी ही रोचक है। कथा के अनुसार राजा द्रुपद और कौरव-पांडव के गुरु द्रोणाचार्य एक समय में बहुत ही अच्छा मित्र हुआ करते थे। बचपन में द्रुपद ने द्रोणाचार्य को यह वचन दे रखा था की जब वह राजा बनेंगे तो अपना आधा राज्य अपने मित्र द्रोण को दे देंगे,परन्तु राजा बनने के बाद द्रुपद ने द्रोणाचार्य को आधा राज्य देने से मना कर दिया और अपने राजसभा से अपमानित कर निकाल दिया। द्रुपद के हाथों अपमानित होने के बाद द्रोण भटकते भटकते हस्तिनापुर पहुंचे जहाँ भीष्म पितामह ने द्रोणाचार्य को हस्तिनापुर के राजकुमारों को शिक्षा देने का कार्य सौपा।
तत्पश्चात द्रोण कौरवों और पांडवों को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देने लगे। यूँही समय बीतता गया और जब कौरवों और पांडवों की शिक्षा पूर्ण हो गयी तब गुरु द्रोणाचार्य ने उनसे गुरु दक्षिणा के रूप में पांचाल देश माँगा। गुरु के आदेश पाते ही पहले कौरवों ने पांचाल देश पर आक्रमण किया लेकिन उन्हें द्रुपद के हाथों पराजित होना पड़ा। फिर पांडवों ने पांचाल देश पर आक्रमण कर राजा द्रुपद को बंदी बना अपने गुरु के समक्ष ले आये। तब गुरु द्रोणाचार्य ने जीते हुए पांचाल देश का आधा भाग राजा द्रुपद को दे दिया तथा शेष आधे राज्य का राजा अपने पुत्र अश्व्थामा को बनाया।
इधर द्रोणाचार्य से अपमानित होने के बाद राजा द्रुपद प्रतिशोध की अग्नि में जलने लगे और एक ऐसा पुत्र प्राप्त करने की कामना करने लगे। जो उनके शत्रु द्रोण का वध कर सके। इसके लिए उन्होंने एक ऋषि के कहने पर पुत्र प्राप्ति यज्ञ शुरू कर दिया और इसी यज्ञ की अग्नि से पुत्र धृष्टधुम्न के साथ साथ एक पुत्री द्रौपदी भी प्रकट हुई। यही कारण था की द्रौपदी को याग्यसेनी के नाम से भी जाना जाता है।दिव्य द्रोपदी एक युवती के रूप में हवन कुंड से प्रकट हुई थी इसलिए कुछ समय पश्चात् राजा द्रुपद ने अपनी पुत्री के लिए स्वंयवर का आयोजन किया।
अपनी पुत्री के स्वंयवर के लिए राजा द्रुपद ने सभी राज्यों के राजाओं को आमंत्रित किया। उधर जब द्रौपदी के स्वंयवर की घोषणा हुई तब माता कुंती सहित पांचों पांडव लाक्षागृह काण्ड के बाद ब्राह्मण के वेश में वन में रहते थे। जब इस बात की उन्हें सूचना मिली की द्रौपदी का स्वंयवर हो रहा है और वहां श्रीकृष्ण भी आएंगे तो पांचों पांडव उनकी दर्शन की अभिलाषा लिए पांचाल देश की ओर निकल पड़े और स्वंयवर के दिन पांचाल जा पहुंचे । उधर स्वंयवर शर्त के रूप में राजा द्रुपद ने एक यंत्र में बड़ी-सी मछली को रखा जो घूम रही थी। शर्त के अनुसार उस घूमती हुई मछली की आंख में निचे तैलपात्र में उसकी परछाई देखकर तीर मारना था।
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स्वंयवर के दिन एक के बाद एक सभी राजा-महाराजा एवं राजकुमारों ने ऊपर घूमती हुई मछली की आंख पर उसके प्रतिबिम्ब को नीचे जल में देखकर निशाना साधने का प्रयास किया किंतु सफलता हाथ न लगी और वे सभी एक एक कर सभी एक एक कर rअपने स्थान पर लौट आए। इन असफल लोगों में जरासंध, शल्य, शिशुपाल तथा दुर्योधन, दुःशासन आदि कौरव भी सम्मिलित थे।
कौरवों के असफल होने पर ब्राह्मण के वेश में स्वयंवर सभा में उपस्थित अर्जुन ने तैलपात्र में मछली की परछाई को देखते हुए एक ही बाण से मछली की आँख भेद डाली। इसके तुरंत बाद द्रौपदी ने आगे बढ़कर अर्जुन के गले में वरमाला डाल दी। उधर राजा द्रुपद को यह चिंता सता रही थी कि आज बेटी का स्वयंवर उनकी इच्छा के अनुरूप नहीं हो पाया। राजा द्रुपद की इच्छा थी कि उनकी पुत्री का विवाह एक पराक्रमी राजकुमार के साथ हो लेकिन वे यह नहीं जानते थे कि ब्राह्मण वेश में यह पाण्डु पुत्र अर्जुन ही है।
स्वंयवर के बाद पांचो पांडव द्रोपदी के साथ माता कुंती के पास जाने के लिए वन की ओर निकल पड़े। कुछ समय बाद पांचों पांडव द्रोपदी सहित वन में स्थित अपने कुटिया के द्वार पर पहुंचे वहां पहुंचकर अर्जुन ने बाहर से ही माता कुंती को आवाज लगाई और कहा की माता देखो आज हमलोग भिक्षा में क्या लाये हैं।
चुकीं उस समय उनकी माता कुंती कुटिया के अंदर भोजन बना रही थी इसलिए उन्होंने बिना देखे ही यह कह दिया की भिक्षा में जो कुछ भी लाये हो उसे आपस में बराबर बाँट लो। सभी भाई माता की हर बात को आदेश की तरह मानते थे इसलिए वे सभी उनकी बात सुनकर चुप हो गए। बाद में जब कुंती ने बाहर आकर द्रौपदी को देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गई। फिर उसने युधिष्ठिर से बोला तुम ऐसा करो कि मेरा वचन भी रह जाए और कुछ गलत भी ना हो। लेकिन धर्मराज युधिष्ठिर भी कोई रास्ता न निकाल सके अंत में यह फैसला किया गया की पांचों भाई द्रौपदी से शादी करेंगे।
इधर जब इस घटना का पता राजा द्रुपद को लगा तो वो भी परेशान हो गए और उन्होंने अपनी सभा में बैठे भगवान श्रीकृष्ण और महर्षिव्यास जी से कहा कि धर्म के अनुसार किसी स्त्री का पांच पति की कैसे हो सकता है? तब महर्षिव्यास ने राजा द्रुपद को बताया की द्रौपदी को उसके पूर्वजन्म में भगवान शिव ने ऐसा ही वरदान दिया था।
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भगवान शिव के उसी वरदान के कारण यह समस्या उत्पन्न हुई है और भगवान शिव की बात अन्यथा कैसे हो सकती है। इस तरह महर्षिव्यास के समझाने पर राजा द्रुपद अपनी बेटी द्रौपदी का पांचो पांडवो के साथ विवाह करने को राजी हो गए| इसके बाद सबसे पहले द्रौपदी का विवाह पांडवो में ज्येष्ठ युधिष्ठिर के साथ हुआ और उस रात द्रौपदी ने युधिष्ठिर के साथ अपना पत्नी धर्म निभाया।
फिर अगले दिन द्रौपदी का विवाह भीम के साथ हुआ और उस रात द्रौपदी ने भीम के साथ अपना पत्नी धर्म निभाया। इसी प्रकार अर्जुन नकुल और सहदेव के साथ द्रौपदी का विवाह हुआ और इन तीनों के साथ भी द्रौपदी ने अपना पत्नी धर्म निभाया। यहाँ सोचने की बात यह है कि एक पति के साथ पत्नी धर्म निभाने के बाद द्रौपदी ने अपने दूसरे पतियों के साथ अपना पत्नी धर्म कैसे निभाया होगा।
तो आपको बता दें की इसके पीछे भी भगवान शिव का ही वरदान था क्योंकि जब भगवान शिव ने द्रौपदी को पांच पति प्राप्त होने का वरदान दिया था तब उन्होंने द्रौपदी को साथ में ये वरदान भी दिया थाकि वह प्रतिदिन कन्या भाव को प्राप्त हो जाया करेगी । इसलिए द्रौपदी अपने 5 पतियों को कन्या भाव में ही प्राप्त हुई थी। परंतु संतान प्राप्ति हेतु भगवान श्रीकृष्ण ने यह सुझाव दिया की प्रतिवर्ष द्रौपदी एक ही पांडव के साथ अपना समय व्यतीत करेगी और जिस समय द्रौपदी अपने कक्ष में किसी एक पांडव के साथ अपना समय व्यतीत कर रही होगी तब उनके कक्ष में कोई दूसरा पांडव प्रवेश नहीं करेगा।