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Independence day Madan Mohan Malviya 2021: पं मदन मोहन मालवीय को किया गया महामना की उपाधि  से विभूषित 

By अनूप कुमार 
Updated Date

Independence day Madan Mohan Malviya 2021: देश 2021 में स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ (75th anniversary of independence day) मना रहा है। 200 साल की लम्बी लड़ाई के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत को ब्रिटिश हुकूमत से पूर्ण रूप से आजादी(Independence) मिली। 15 अगस्त को हर साल स्वतंत्रता दिवस (Independence day) के रूप में मनाया जाता है। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू (Pandit jawaharlal nehru) ने 14 अगस्त मध्यरात्रि को ‘ट्रिस्ट वीद डेस्टिनी’ (‘Tryst with Destiny’) भाषण के साथ भारत की आजादी की घोषणा की। भारत की आजादी के लिए मंगल पांडे(Mangal Pandey), महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi), शहीद भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh) , सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose),महामना पं मदन मोहन मालवीय (Mahamana Pt. Madan Mohan Malviya), चन्द्र शेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) और सरदार वल्लभभाई पटेल(Sardar Vallabhbhai Patel) समेत सैंकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों ने बलिदान देकर भारत को अंग्रेजों से आजाद करवाया। 15 अगस्त 2021, रविवार को भारत में 75वां स्वतंत्रता दिवस 2020 मनाया जा रहा है, इस साल 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस की थीम 2021 में ‘फर्स्ट नेशन ऑलवेज फर्स्ट’ रखी गई है।

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आईये जानते हैं देश को आजादी दिलाने वाले महानायकों में एक ऐसे नायक के बारे में जिन्हें महत्मा गांधी ने महामना (Mahamana ) की उपाधि दी।मदनमोहन मालवीय (Mahamana Pt. Madan Mohan Malviya) भारत के पहले और अंतिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना (शाब्दिक अर्थ सबसे अधिक सम्मानित) की उपाधि से विभूषित किया गया। इस माननीय खिताब को खिताब को सर्वप्रथम महात्मा गांधी द्वारा इस्तेमाल और लोकप्रिय किया गया।इस युग के आदर्श पुरुष महामना मदन मोहन मालवीय (Mahamana Pt. Madan Mohan Malviya) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता थे।

मालवीय जी को सम्मानित करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 25 दिसम्बर, 2014 को उनके 153वे जन्मदिन पर भारत रत्न से नवाजा गया। राष्ट्र इस महान नेता को हमेशा याद रखेगा।

पिता जी संस्कृत के विख्यात विद्वान् थे
पंडित मदन मोहन मालवीय (Mahamana Pt. Madan Mohan Malviya) का जन्म 25 दिसंबर 1861 को इलाहाबाद में हुआ था। पंडित जी के पिता का नाम पण्डित ब्रजनाथ और माता का नाम श्रीमती भूनादेवी था। इनके पिता जी संस्कृत के विख्यात विद्वान् थे। मूल रूप से इनके पूर्वज मालवा प्रान्त के निवासी थे, इसीलिए इन्हें मालवीय कहा जाता था ।

कलकत्ता विश्वविद्यालय की बी० ए० की उपाधि ली
पाँच वर्ष की आयु में उन्हें उनके माँ-बाप ने संस्कृत भाषा में प्रारम्भिक शिक्षा लेने हेतु पण्डित हरदेव धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में भर्ती करा दिया जहाँ से उन्होंने प्राइमरी परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके पश्चात वे एक अन्य विद्यालय में भेज दिये गये जिसे प्रयाग की विद्यावर्धिनी सभा संचालित करती थी। यहाँ से शिक्षा पूर्ण कर वे इलाहाबाद के जिला स्कूल पढने गये। इस बीच अखाड़े में व्यायाम और सितार पर शास्त्रीय संगीत की शिक्षा वे बराबर देते रहे। उनका व्यायाम करने का नियम इतना अद्भुत था कि साठ वर्ष की अवस्था तक वे नियमित व्यायाम करते ही रहे।

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कविताएँ ‘मकरंद’ नाम से प्रकाशित होती थीं
मालवीय जी ने कलकत्ता (कोलकाता) विश्वविद्यालय से बी. ए. किया। निर्धन पारिवारिक स्थिति के कारण राजकीय उच्च विद्यालय, इलाहाबाद (अभी उसका नाम प्रयागराज हुआ) में एक शिक्षक के रूप उन्होंने नौकरी कर ली। इन्होंने पत्रकार के रूप में अपनी जीवनवृत्ति की शुरुआत 1887 ई. में की। पंडित जी हिंदी दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ के संपादक बने। फिर वर्ष 1889 में वे ‘इंडियन ओपिनियन’ के संपादक बने। इनकी कविताएँ ‘मकरंद’ नाम से प्रकाशित होती थीं।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय’ (बी. एच. यू.) स्थापना
वर्ष 1891 में उन्होंने बी. एल. का पाठ्यक्रम इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरा किया और इलाहाबाद जिला न्यायालय में वकालत शुरू की। परंतु, उन्होंने स्वतंत्रता-संग्राम में हिस्सा लेने के उद्देश्य से अपनी वकालत को छोड़ दिया। मालवीय जी सन् वर्ष 1909 और 1918 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। अप्रैल 1911 में एनी बेसेन्ट मालवीय जी से मिलीं और उन लोगों ने वाराणसी में एक हिंदू विश्वविद्यालय के लिए काम करने का निर्णय लिया। इस प्रकार ‘बनारस हिंदू विश्वविद्यालय’ (बी. एच. यू.) 1916 में स्थापित हुआ। आज इस विश्वविद्यालय गिनती महत्त्वपूर्ण भारतीय विश्वविद्यालयों में की जाती है।

मालवीयजी स्वतन्त्रता-संग्राम के पथ-प्रदर्शक बने
मालवीय जी (Madan Mohan Malviya ) एक महान् सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने अस्पृश्यता को मिटाने का काम किया। भारत में स्काउटिंग कार्यक्रम के संस्थापकों में से वे एक थे। उन्होंने ‘सत्यमेव जयते’ का नारा दिया। उन्होंने हरिद्वार में ‘हर की पौड़ी’ में आरती की परंपरा शुरू की। मालवीय जी ने काँग्रेस में अपनी एक खास जगह बना ली और स्वतन्त्रता-संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई । महामना चार बार काँग्रेस के अध्यक्ष क्रमशः वर्ष 1909, 1918, 1932 तथा 1933 में रहे। मालवीयजी स्वतन्त्रता-संग्राम के पथ-प्रदर्शक बने ।

भारतीय पत्रकारिता को नया आयाम प्रदान किया
मालवीयजी ने बाद में ‘इंडियन ओपिनियन’, ‘लीडर’, ‘मर्यादा’, ‘सनातन धर्म’, ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ तथा ‘अभ्युदय’ का सम्पादन भी किया । इस प्रकार, उन्होंने भारतीय पत्रकारिता को नया आयाम प्रदान करते हुए अपना अविस्मरणीय योगदान दिया। 12 नवम्बर, 1946 को महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी हमें छोड़कर चले गए। मालवीय जी का देहावसान १२ नवंबर १९४६ को वाराणसी में हुआ।

महान पंडित मदन मोहन मालवीय जी का जीवन करोड़ों भारतीयों के लिए प्रेरणादायक है।

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