Exploitation of Indian youth in Russia: रोजगार की उम्मीद लेकर भारत से कई युवक रूस पहुंचे थे, लेकिन उन्हें रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच काफी कुछ सहना पड़ा। जिसमें वापस भारत लौटे युवकों ने आपबीती सुनाई है। जिसे जानकर किसी की भी रूह कांप जाये। दरअसल, तेलंगाना के नारायणपेट के एक युवक मोहम्मद सूफियान भी रूस में फंस गए थे, जिन्होंने भारत लौटने के बाद पीएम मोदी का आभार व्यक्त किया है और वहां उनके साथ हुए दुर्व्यवहार के बारे में बताया है।
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एक इंटरव्यू में युवक मोहम्मद सूफियान ने पिछले दिसंबर में मॉस्को पहुंचने के बाद वहां के भयानक मंजर के बारे में साझा किया है। सूफियान ने बताया कि एक रोजगार एजेंट ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि वह उनके लिए मॉस्को में रूसी सरकार के कार्यालय में सुरक्षा गार्ड या सरकारी कार्यालय में सहायक के रूप में नौकरी के लिए आवेदन कर रहा है। तेलंगाना के नारायणपेट के एक युवक कहा कि जैसे ही वह वहां पहुंचे उन्हें हस्ताक्षर करने के लिए रूसी भाषा में एक दस्तावेज दिया गया। उन्हें बताया गया कि यह रूसी सरकार के साथ एक साल के लिए 1 लाख रुपये प्रति माह के वेतन पर काम करने का कॉन्ट्रैक्ट है।
सूफियान ने आगे कहा कि हालांकि, एक दिन बाद उन्हें एक आर्मी कैंप में ले जाया गया और शारीरिक ट्रेनिंग शुरू करने और राइफल चलाना सीखने के लिए कहा गया। फिर उन्हें दो सप्ताह की स्नाइपर राइफल ट्रेनिंग दी गई। अगर कोई विरोध करने की हिम्मत करता तो अधिकारी उनके पैरों के दाएं और बाएं हिस्से में गोलियां चलाते। लगभग 25 दिनों के ट्रेनिंग के बाद उन्हें यूक्रेन के साथ रूसी सीमा पर ले जाया गया।
ठंड के तापमान में रात बिताने के लिए किया गया मजबूर
रूस में बिताए दिनों को याद करते हुए सूफियान ने बताया कि हर दिन उन्हें जिंदा रहने के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ता था। गुजरात के एक युवक हेमिल मंगुकिया के फरवरी में 23 रूसी सैनिकों के साथ ड्रोन हमले में मौत हो गया थी। जिसके बाद कुछ युवकों ने हिम्मत करके जब फ्रंटलाइन पर काम करने से इनकार कर दिया तो सजा के तौर पर वहां के प्रभारी अधिकारी ने उन्हें एक खाई खोदने और फिर उन्हें बिना भोजन और केवल दो बोतल पानी के साथ ठंड के तापमान में रात बिताने के लिए मजबूर किया गया।
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सूफियान ने बताया कि जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ा वह और गुलबर्गा के तीन युवा रोजाना विरोध करते थे। सैनिकों और अधिकारियों से कहते थे कि उन्होंने उनके युद्ध के मोर्चे पर मरने के लिए हस्ताक्षर नहीं किए हैं। वो खाइयां खोद रहे थे और वे बंदूकें फिर से लोड कर रहे थे और ग्रेनेड फेंक रहे थे।
वेतन भी सही से नहीं मिला
रूस-यूक्रेन युद्ध में फंसे सूफियान ने कहा कि उसे प्रति माह 1 लाख रुपये का वेतन देने का वादा किया गया था। लेकिन पैसे उसे किस्तों में मिले। भोजन, गर्मी के लिए जनरेटर और सोने के लिए खाइयों में जगह किराए पर लेने में पैसे खर्च हो गए। उन्होंने कहा कि वह यूक्रेन के 60 किलोमीटर अंदर रूसी सैनिकों के साथ एक शिविर में था। 6 सितंबर को एक स्थानीय सेना कमांडर आया और उन्हें बताया कि उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है और उनका कॉन्ट्रैक्ट अब वैध नहीं है। वह भारत लौट सकते हैं।
नारायणपेट के युवक ने कहा कि रूसी अधिकारियों ने उसे गुलबर्गा के तीन युवकों और रूसियों के साथ लड़ने वाले अन्य विदेशी नागरिकों को एक सेना की बस उपलब्ध कराई और उन्हें दो दिन बाद मॉस्को पहुंच गए। जब वह भारत वापसी के लिए मॉस्को लौटे तो सेना के अधिकारियों ने भारत के बैंक खाते के नंबर लिए और उन्हें अभी भी बकाया वेतन जमा करने का वादा किया। देखते हैं कि वे ऐसा करते हैं या नहीं।
बता दें कि गुलबर्गा के मोहम्मद इलियास सईद हुसैनी, मोहम्मद समीर अहमद और नईम अहमद भी शुक्रवार दोपहर को सूफियान के साथ हैदराबाद एयरपोर्ट पर पहुंचे, जहां पर पहले से मौजूद उनके परिवारों ने उनका स्वागत किया। घर लौटने वाले दो अन्य भारतीयों में कश्मीर का एक युवक और कोलकाता का एक युवक भी शामिल है।