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Param Sundari Review: ट्रेलर तक ही ठीक थी ‘परम सुंदरी’, फीकी कहानी और सिद्धार्थ के फेक एक्सप्रेशन देंगे तकलीफ

By Aakansha Upadhyay 
Updated Date

बॉलीवुड एक्टर सिद्धार्थ मल्होत्रा और  जान्हवी कपूर की फिल्म ‘परम सुंदरी’ आज सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। परम सुंदरी’ का टीजर जब रिलीज हुआ था तब पहली झलक में यह फिल्म बेहद प्रॉमिसिंग लगी थी जिस तरह से फिल्म का हाइप बना था उसके हिसाब ऐसा लग रहा है की फिल्म कुछ खास कमाल नहीं कर पाएगी। गाने  रिलीज होने के दो महीने बाद फिल्म का ट्रेलर आया जिसे देखकर  लोगों की उम्मीद और बढ़ गयी।

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ट्रेलर रिलीज होते ही फिल्म को ‘चेन्नई एक्सप्रेस ‘ से  कमपेयर  किया जाने लगा। बता दें ये बिलकुल चेन्नई एक्सप्रेस के तरह नहीं है । उस फिल्म में काफी एलिमेंट थे और यहां मेकर्स ने उतनी ज्यादा मेहनत की नहीं। बड़ी हैरानी होती है यह जानकार कि इसकी कहानी तीन लोगों ने मिलकर लिखी है। तीन लोग मिलकर भी इसमें वो सब एलिमेंट नहीं डाल पाए जो इस फिल्म को उससे बेहतर बना सकती थी जैसी यह है। कहानी भले ही इसकी प्रेडिक्टेबल थी पर ट्रीटमेंट और बेहतर किया जा सकता था। कुछ मिलाकर हल्की-फुल्की कॉमेडी और रोमांस फिल्में पसंद करने वाले इसे एक बार देख सकते हैं।

कहानी

कहानी बेहद सिंपल है। दिल्ली का रहने वाला लड़का परम सचदेव (सिद्धार्थ मल्होत्रा) अपने पिता से मदद मांगता है। मदद के बदले उसके पिता (संजय कपूर) उसे एक चैलेंज दे देते हैं। इसी चैलेंज को पूरा करने के लिए परम अपने दोस्त जग्गी (मनजोत सिंह) के साथ केरल निकल पड़ता है। यहां उसकी मुलाकात सुंदरी (जान्हवी कपूर) से होती है। इसके बाद कई तरह की सिचुएशन बनती हैं जिनमें परम और सुंदरी फंसते हैं। अंत में क्या ही होगा, यह तो अब आप अनुमान लगा ही सकते हैं।

निर्देशन

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दो लोग मिलेंगे, प्यार होगा, अब या तो शादी के बाद कोई ट्विस्ट आएगा या पहले…। यह फॉर्मूला तो बॉलीवुड की रोमांटिक फिल्मों में हमेशा से ही अपनाया जाता है। अब एक निर्देशक और साथ ही साथ लेखक होने के चलते आपकी जिम्मेदारी होती है कि आप उसे मजेदार बनाएं। लोगों को एंगेज करें.. और यहीं तुषार जलोटा चूक गए।

फर्स्ट हाफ में फिल्म डेवलप होते तक आप बोर हो चुके हैं। सेकंड हाफ में मेकर्स इसे थोड़ा सा मजेदार बनाते हैं पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। फिल्म में शुरू से लेकर अंत तक तुषार ने कुछ ऐसा किया ही नहीं कि यह कहा जा सके कि क्या मस्त डायरेक्शन है। उनसे ज्यादा क्रेडिट तो सिनेमैटोग्राफर को दे देना चाहिए, जिन्होंने केरल की खूबसूरत लोकेशंस को शूट करके फिल्म की नाक बचाई है।

वहीं एक चीज बहुत खटकती है जो कई साल से बॉलीवुड में चली आ रही हैं। किरदार अगर दक्षिण भारत से है तो वो हिंदी की जगह ‘इंदी’ बोलेगा ऐसा जरूरी नहीं है। जान्हवी की अच्छी एक्टिंग भी मेकर्स के इस सुझाव या स्क्रिप्ट की मांग के चलते ओवरएक्टिंग में तब्दील हो गई।
एक्टिंग
जान्हवी कपूर का काम अच्छा है। कुछ सीन में उन्होंने ओवरएक्टिंग की है पर फिल्म कॉमेडी है इसलिए उसे दरकिनार कर सकते हैं। सिद्धार्थ मल्होत्रा को काश कोई थोड़ी एक्टिंग और एक्सप्रेशन बेहतर करना सिखा था। वो पूरी फिल्म में एक जैसे ही दिखते हैं। या सच कहूं तो हर फिल्म में ही एक जैसे दिखते हैं। उनसे बेहतर काम मनजोत ने किया है। संजय कपूर इस फिल्म में संजय नहीं, बल्कि अपने भाई अनिल कपूर की तरह ही लगते हैं। कई सीन में उनकी एनर्जी और साइड लुक आपको ऐसा महसूस कराता है कि अनिल कपूर ही खड़े हैं। उनका काम कम है पर अच्छा है। बाकी कलाकाराें ने अपना काम ठीक-ठाक किया। चाइल्ड आर्टिस्ट इनायत वर्मा की रेंज काफी ज्यादा है, उन्हें यहां निर्देशक ने वेस्ट किया।
कमजोरी
फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी इसकी फ्लैट कहानी है। कहानी में कुछ था नहीं और स्क्रीनप्ले पर काम हुआ नहीं। इसी कहानी में अगर थोड़े और मजेदार एलिमेंट डाले जाते तो यह काफी बेहतर हो सकती थी। फिल्म हर सिचुएशन में फीकी सी लगती है। डायलॉग भी कुछ खास नहीं है। सिद्धार्थ और जान्हवी की केमिस्ट्री अच्छी है पर जब दोनों दो मिनट से ज्यादा लंबा सीन करते हैं तो ऐसा लगता है जैसे उन्हें कोई संवाद दिए ही नहीं गए, वो बस हर सीन को खुद ही डेवलप कर रहे हैं। दूसरी बड़ी कमजोरी हैं सिद्धार्थ मल्होत्रा उन्हें एक ही जैसी एक्टिंग करते देख ऊब चुके हैं।

ताकत 

फिल्म की ताकत है इसक म्यूजिक, जिसे फिल्म का टीजर रिलीज होने के बाद से ही लोगों ने खूब पसंद किया है। यह शायद पहली ऐसी फिल्म है जहां कैसा भी सीन हो.. गाना आने पर तसल्ली होती है। परदेसिया गाने को तो दिनभर सुना जा सकता है। साथ ही इस गाने के विजुअल्स भी कमाल हैं। पूरी फिल्म में ही मेकर्स ने केरल को बड़ी खूबसूरती के साथ पेश किया है। कुछ एक कॉमेडी सीन भी बेहतर बने हैं।
देखें या नहीं 

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सिद्धार्थ-जान्हवी की केमिस्ट्री, हल्की-फुल्की काॅमेडी और बेहतरीन गानाें के दम पर एक बार देखी जा सकती है। बाकी ‘सैयारा’, ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ और ‘टू स्टेट्स’ जैसी उम्मीदें लेकर न जाएं। फिल्म वैसी नहीं है, अलग है। कहानी छोड़कर, केरल की खूबसूरती देख सकते हैं।

 

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