नई दिल्ली। योग गुरु रामदेव (Yog Guru Ramdev) और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड (Patanjali Ayurveda Limited) के एमडी आचार्य बालकृष्ण (MD Acharya Balkrishna) की कंपनी द्वारा जारी विज्ञापनों पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से माफी मांगी है। इस पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने जमकर फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि हम अंधे नहीं हैं। हम माफीनामा स्वीकार करने से इनकार करते हैं। पतंजलि के विवादित विज्ञापन केस (Patanjali Misleading Advertisement Case) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को बाबा रामदेव और बालकृष्ण के दूसरे माफीनामे को भी खारिज कर दिया। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अमानतुल्लाह की बेंच ने पतंजलि के वकील विपिन सांघी और मुकुल रोहतगी से कहा कि आपने कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया है, कार्रवाई के लिए तैयार रहें।
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पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन मामले (Patanjali Misleading Advertisement Case) में वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की पीठ के समक्ष योग गुरु बाबा रामदेव (Yog Guru Baba Ramdev) का हलफनामा पढ़ा, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह विज्ञापन के मुद्दे पर बिना शर्त माफी मांगते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इसे जानबूझकर आदेश की अवहेलना मानते हैं। समाज को यह संदेश जाना चाहिए कि न्यायालय के आदेश का उल्लंघन न हो।
कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि पतंजलि के विज्ञापनों के खिलाफ ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम 1954 के तहत क्या कार्रवाई की गई है। केंद्र की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) ने कहा कि इस बारे में डेटा इकट्ठा किया जा रहा है। कोर्ट ने इस जवाब पर नाराजगी जताई और कंपनी के विज्ञापनों पर नजर रखने का निर्देश दिया था।
कोर्ट के आदेश के बाद भी पतंजलि ने जारी किए थे विज्ञापन
इससे पहले हुई सुनवाई में आईएमए (IMA) ने दिसंबर 2023 और जनवरी 2024 में प्रिंट मीडिया में जारी किए गए विज्ञापनों को कोर्ट के सामने पेश किया। इसके अलावा 22 नवंबर 2023 को पतंजलि के CEO बालकृष्ण के साथ योग गुरु रामदेव (Yog Guru Baba Ramdev) की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के बारे में भी बताया। पतंजलि ने इन विज्ञापनों में मधुमेह और अस्थमा को ‘पूरी तरह से ठीक’ करने का दावा किया था।
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क्या है पूरा मामला
10 जुलाई 2022 को पतंजलि ने एक विज्ञापन जारी किया। एडवर्टाइजमेंट में एलोपैथी पर गलतफहमियां फैलाने का आरोप लगाया गया था। इसके खिलाफ 17 अगस्त 2022 को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन (Patanjali Misleading Advertisement) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।
21 नवंबर 2023 को हुई सुनवाई में जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा था- पतंजलि को सभी भ्रामक दावों वाले विज्ञापनों को तुरंत बंद करना होगा। कोर्ट ऐसे किसी भी उल्लंघन को बहुत गंभीरता से लेगा और हर एक प्रोडक्ट के झूठे दावे पर 1 करोड़ रुपए तक जुर्माना लगा सकता है।
कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 क्या है?
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इस कानून के तहत यदि कोई कंपनी झूठा या भ्रामक प्रचार करती है जो कंज्यूमर के हित के खिलाफ है तो उसे 2 साल की सजा और उस पर 10 लाख रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है। अगर कंपनी ऐसा अपराध दोबारा करती है तो जुर्माना बढ़कर 50 लाख रुपए और पांच साल की सजा मिलती है।
ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट 1954 क्या है
ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट अधिनियम, 1954 – यह कानून फर्जी इलाज और दवाओं के प्रचार और उनके मार्केटिंग पर रोक लगाता है। इसके अलावा जो किसी बीमारी को बिना साइंटिफिक प्रूफ के पूरी तरह से ठीक करने का दावा करता है, उन्हें इस कानून के उल्लंघन का दोषी माना जाता है। ये कानून ऐसे दावों को संज्ञेय अपराध की कैटेगरी में मानता है।
पतंजलि के भ्रामक ऐड पर SC में बोली केंद्र सरकार, कहा कि हमने तो मना किया था
पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन मामले (Patanjali Misleading Advertisement Case) में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से भी तीखे सवाल पूछ लिए थे और कहा था कि हम हैरान हैं कि आखिर वह कैसे आंखें बंद किए रही? इस पर केंद्र सरकार ने जवाब दिया था कि यदि जादुई उपचार की बात किसी विज्ञापन में की जाती है तो उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए राज्यों के पास पर्याप्त अधिकार हैं। हालांकि हमने कानून के मुताबिक फैसला लिया। केंद्र सरकार ने कहा कि पतंजलि ने कोरोना से निपटने के लिए कोरोनिल दवा तैयार की थी। इसे लेकर जब विज्ञापन की बारी आई तो पतंजलि से कहा भी गया था कि वह तब तक ऐसे विज्ञापन न निकाले, जब तक मामले का परीक्षण आयुष मिनिस्ट्री कर रही है।
यही नहीं केंद्र सरकार ने पूरी प्रक्रिया की जानकारी देते हुए कहा कि लाइसेंसिंग अथॉरिटी को बताया गया था कि कोरोनिल दवा संक्रमण से निपटने में एक सहायक औषधि के तौर पर है। इसके अलावा सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार ने कोरोना खत्म करने के गलत दावों को लेकर भी चेतावनी दी थी। इसके अलावा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा गया था कि वे ऐसे विज्ञापनों पर रोक लगाएं। केंद्र सरकार ने कहा कि हमारी नीति है कि देश में चिकित्सा की आयुष और एलोपैथी की पद्धति एक साथ चलें। केंद्र सरकार ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से आयुष या फिर एलोपैथी की चिकित्सा ले सकता है। दोनों सिस्टम में लगे लोगों की ओर से एक-दूसरे पर आरोप लगाना और नीचा दिखाना ठीक नहीं है।