पीलीभीत। दर्द है…पीड़ा है…अपने तहसील और जिला मुख्यालय तक पहुंचने के लिए 100 किमी के अतिरिक्त चक्कर लगाने का। एक नहीं दो नहीं कई वर्षों से ये आलम यूं ही चला आ रहा है। तहसील पहुंचने के लिए 35 किमी. की जगह 100 किमी. का अतिरिक्त चक्कर लगाना पड़ता है। एक दर्जन से ज्यादा गांव के लोग इस पीड़ा से व्यथित हैं लेकिन उनकी कोई सुनता कहां हैं? सांसद और विधायक सिर्फ आश्वासन देते हैं लेकिन सरकार के आगे इन गांववासियों की पीड़ा को कोई उठाता नहीं। लिहाजा, वर्षों की तरह एक बार फिर 6 महीने के लिए इन ग्रामीणों को अपने तहसील और जिला मुख्यालय तक पहुंचने के लिए 100 किमी का अतिरिक्त चक्कर लगाना पड़ेगा। इसके लिए समय और पैसे भी अधिक खर्च करना पड़ेगा। देखना ये है कि कौन सरकार इनकी इस पीड़ा को देखता और सुनता है?
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हर साल की तरह एक बार फिर से पीलीभीत जिले की ट्रांस शारदा इलाक़े में रहने वाली आबादी जिला मुख्यालय से अलग-थलग हो जाएगी। इलाके को जिला मुख्यालय से जोड़ने का एकमात्र साधन पैंटून पुल को 15 जून से बंद कर दिया जाएगा। ऐसे में इलाके की एक लाख से भी अधिक आबादी प्रभावित होगी।
पीलीभीत जिले की आबादी का एक बड़ा हिस्सा शारदा नदी के किनारे बसा है। शारदा नदी के पार भी तकरीबन 1 लाख से अधिक आबादी बसी है। इस इलाके की आबादी के पास जिला मुख्यालय पहुंचने के लिए दो विकल्प होते हैं। पहला शारदा नदी पर बने पुल से आवागमन या फिर खीरी जिले के पलिया कस्बे के रास्ते सड़क मार्ग से, लेकिन सड़क मार्ग पुल की अपेक्षा अधिक लंबा पड़ता है। ऐसे में अधिकांश लोग पैंटून पुल से आवागमन का विकल्प चुनते हैं।
हर साल बाढ़ का दंश झेलता है पीलीभीत
पहाड़ों पर बारिश के चलते शारदा नदी का जलस्तर उफान पर रहता है। लगभग हर साल नदी से सटे इलाकों में बाढ़ का दंश देखने को मिलता है। इसी को देखते हुए पैंटून पुल को हटा दिया जाता है। हर साल की तरह इस बार भी 15 जून को यह पुल पूरी तरह से हटा दिया जाएगा।
विधायक के ऐलान के बाद भी नहीं बना स्थायी पुल
कहने को तो इस इलाक़े के वोट बैंक को साधने के लिए जनप्रतिनिधि हर साल स्थाई पुल के निर्माण की बात कहते हैं। हाल ही में पूरनपुर विधानसभा से विधायक बाबूराम पासवान ने स्थायी पुल बनाए जाने का ऐलान किया था, लेकिन स्थानीय लोगों को निराशा के सिवा कुछ भी हाथ नहीं लग सका है।
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