नई दिल्ली। सभी धर्मों में बाल विवाह की स्वीकार्यता और सामाजिक धारणाओं में महत्वपूर्ण बदलाव लाने की दिशा में एक कदम उठाते हुए नौ धर्मों के धार्मिक नेताओं ने बाल विवाह मुक्त भारत बनाने का संकल्प लिया। ये धार्मिक नेता बाल विवाह मुक्त भारत के गठबंधन सहयोगी इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन की ओर से बाल विवाह के खिलाफ अंतर धार्मिक संवाद में इकट्ठा हुए थे। कार्यक्रम में उपस्थित धार्मिक नेताओं ने एक स्वर से कहा कि कोई भी धर्म बाल विवाह का समर्थन नहीं करता और इसलिए किसी भी धर्मगुरु या पुरोहित को बाल विवाह संपन्न नहीं कराना चाहिए। इस बात पर सहमति जताते हुए कि सभी धर्मस्थलों को अपने परिसर में बाल विवाह के खिलाफ संदेश देने वाले पोस्टर-बैनर लगाने चाहिए, इन धर्मगुरुओं ने अपने समुदाय के बीच बाल विवाह की कुप्रथा के खात्मे के लिए काम करने पर सहमति जताई। हिंदू, इस्लाम, सिख, ईसाई, बौद्ध, बहाई, जैन, यहूदी और पारसी धर्म के इन धर्मगुरुओं ने इस साझा लक्ष्य की प्राप्ति में एकता के महत्व पर जोर दिया। संवाद का आयोजन बाल विवाह मुक्त भारत (सीएमएफआई) के गठबंधन सहयोगी इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन ने किया। बाल विवाह मुक्त भारत के 200 से अधिक सहयोगी गैरसरकारी संगठन 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करने के लक्ष्य के साथ देश भर में काम कर रहे हैं।
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इस बात पर जोर देते हुए कि सभी बच्चों की सुरक्षा, शिक्षा और विकास तक पहुंच होनी चाहिए, इन धर्मगुरुओं ने यह भी कहा कि जो भी बाल विवाह संपन्न करा रहा है या इसे प्रोत्साहित करता है, उसके खिलाफ कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। यह संवाद इस तथ्य की पृष्ठभूमि में था कि भारत जैसे अत्यधिक धार्मिक प्रकृति के देश में सामाजिक मानदंडों और प्रथाओं को आकार देने और उन्हें कायम रखने में धार्मिक नेताओं की खासी बड़ी भूमिका है। वे अक्सर सामाजिक और नैतिक दोनों स्तरों पर सामुदायिक गतिविधियों का नेतृत्व करते हैं। बाल विवाह के कानूनन अपराध होने के बावजूद विभिन्न समुदाय अक्सर इस कुप्रथा को जारी रखने के लिए धर्म की आड़ लेते हैं जो बाल विवाह को समाप्त करने के रास्ते में एक बड़ी चुनौती है।
इस संवाद के महत्व पर बोलते हुए, चाइल्ड मैरिज फ्री इंडिया के संस्थापक और व्हेन चिल्ड्रन हैव चिल्ड्रेन: टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरिज के लेखक भुवन ऋभु ने कहा, “बाल विवाह जैसे सामाजिक रूप से स्वीकृत अपराध को तभी खत्म किया जा सकता है जब सभी समुदाय इसके खिलाफ लड़ाई में साथ आएं। आस्था, धर्म और कानून सभ्यता की आधारशिला हैं और बाल विवाह को जड़मूल से खत्म करने के लिए इन्हें मिलकर काम करने की जरूरत है। ईश्वर की नजर में सभी बच्चे समान हैं तो कानून और न्याय की नज़र में भी समान होने चाहिए। धार्मिक रीतिरिवाजों की आड़ में बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ अस्वीकार्य है।”
बाल विवाह के खात्मे के लिए बाल विवाह मुक्त भारत देश का सबसे जनजागरूकता अभियान चला रहा है। इसके तहत गांवों में लोगों को बाल विवाह के खिलाफ शपथ दिलाने और कानूनी हस्तक्षेपों के अलावा अपने मतावलंबियों के बीच असर रखने वाले धर्मगुरुओं को भी इससे जोड़ा जा रहा है। पूरे देश में मंदिरों, मस्जिदों और गिरिजाघरों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं और सभी धर्मों के पुरोहितों जैसे पुजारियों, मौलवियों को शपथ दिलाई जा रही है कि वे बाल विवाह नहीं कराएंगे।
इस्लाम में बाल विवाह के बारे में प्रचलित धारणाओं का खंडन करते हुए जमात-ए-इस्लामी हिंद के डॉ. एम. इकबाल सिद्दीकी ने संवाद में कहा, “इस्लाम में विवाह की किसी उम्र का प्रावधान नहीं है लेकिन इस्लाम निश्चित रूप से कहता है कि दूल्हे और दुल्हन दोनों को विवाह पर सहमति देनी होगी और यह एक खास उम्र और परिपक्वता के बाद ही आ सकती है। इसके अलावा इस्लाम कहता है कि ज्ञान हर मुस्लिम के लिए जरूरी है लेकिन दुर्भाग्य से कुछ मजहबी नेताओं ने ज्ञान को दीनी तालीम तक सीमित कर दिया है। यह पूरी तरह से गुमराह करने वाली बात है क्योंकि एक दुआ में कहा गया है ‘मुझे वो ज्ञान दो जिससे मुझे लाभ हो’। मजहबी नेताओं को इन शिक्षाओं पर तार्किक अमल के बारे में सोचना चाहिए और उन्हें यह समझना होगा कि मानवता को नुकसान पहुंचाने वाला कोई भी कानून शरिया के खिलाफ है।”
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उनकी बात से इत्तेफाक जताते हुए वर्ल्ड पीस आर्गेनाइजेशन के महासचिव मौलाना मोहम्मद एजाजुर रहमान शाहीन कासमी ने कहा कि इस्लाम बाल विवाह की इजाजत नहीं देता है।
बाल विवाह के खात्मे के लक्ष्य के प्रति समर्थन जताते हुए भारतीय सर्व धर्म संसद के राष्ट्रीय संयोजक गोस्वामी सुशील जी महाराज ने कहा, “बाल विवाह की समस्या सभी धर्मों और समुदायों में है और हम सभी धार्मिक नेता साथ मिलकर इस समस्या के समाधान की कोशिश में हैं।”
यह अनूठा और ऐतिहासिक संवाद बाल विवाह मुक्त भारत के सपने को पूरा करने के लिए विभिन्न धर्मों के प्रभावशाली धर्मगुरुओं के बीच एकजुटता का साक्षी बना।