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सावन 2021: बदरिया बरसे रे हारी,कजरी में मिलता है जीवन के रंगों का उल्लेख

By अनूप कुमार 
Updated Date

सावन 2021: सावन की फुहारों में जीवन के वह रसरंग छिपे हैं जिसे पूर्वांचल की मिट्टी के कण-कण में महसूस किया जा सकता है। वैसे तो यह सर्वमान्य है कि सावन मनभावन होता है। 12 महीनों की इस श्रृंखला में सावन उमंग उल्लास उत्साह और सपनों का संसार लेकर आता है। एक तरफ शिवालयों में हर हर बम बम जय भोलेनाथ की गूंज होती है तो दूसरी तरफ पेड़ों पर झूले पड़ जाते हैं। चूल्हे में पकवानों की झड़ी लग जाती है और दरवाजे पर बारिश की फुहारें पूरे सावन को अलौकिक बना देती है।सावन भोलेनाथ का प्रिय महीना है। पूरे एक मास तक सावन रहता है। रिमझिम बारिश की फुहारें और शिवालयों में हर हर महादेव की गूंजती ध्वनि,सड़कों पर कंधें पर गंगाजल उठाए कांवरिये इस बात का उद्घोष करते हैं ​कि भोले नाथ् का महीना सावन चल रहा है।

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सावन भारत भूभाग के पूर्वांचल में बहुत ही बेसब्री से इंतजार किया जाता है। सावन में गाने वाले गीत को कजरी कहा जाता है स्त्री पुरुष युवक युवतियां सभी इन दिनों में कजरी की धुन में थिरकते रहते हैं। गुनगुनाते रहते हैं हरे रामा, रे हारी। नागपंचमी, रक्षाबंधन के त्यौहार में महिलाएं खासकर लड़कियां कजरी गुनगुनाने लगती हैं। यह वर्षा ऋतु का लोकगीत है। कजरी पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध लोकगीत है।

कजरी की उत्पत्ति मिर्जापुर में मानी जाती है। मिर्जापुर पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा के किनारे बसा जिला है। इसे सावन के महीने में गाया जाता है। यह अर्ध-शास्त्रीय गायन की विधा के रूप में भी विकसित हुआ है और इसके गायन में बनारस घराने की ख़ास दखल है। स्त्रियों द्वारा समूह में गाए जाने वाली कजरी को ढुनमुनिया कजरी कहते है। विंध्य क्षेत्र में गाई जाने वाली मिर्जापुरी कजरी में सखी-सहेलियों, भाभी-ननद के आपसी रिश्तों की मिठास और खटास के साथ सावन की मस्ती का रंग घुला होता है।

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