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‘भ्रामक विज्ञापन बंद करें…हर उत्पाद पर लगेगा 1 करोड़ का जुर्माना’ , सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को लगाई फटकार

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों के खिलाफ भ्रामक दावे और विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पतंजलि आयुर्वेद को फटकार लगाई है। भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के तरफ से दायर याचिका पर विचार करते हुए जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने योगगुरु  बाबा रामदेव द्वारा सह-स्थापित कंपनी को कड़ी चेतावनी जारी की है।

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कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पतंजलि आयुर्वेद के ऐसे सभी झूठे और भ्रामक विज्ञापनों को तुरंत बंद करना होगा। इसका उल्लंघन को कोर्ट गंभीरता से लेगा और जुर्माना लगाने पर भी विचार करेगा। न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने मौखिक रूप से कहा कि प्रत्येक उत्पाद पर 1 करोड़ रुपये जुर्माना भी लगाएगा। विज्ञापन में झूठा दावा किया जाता है कि यह एक विशेष बीमारी को “ठीक” कर सकता है। इसके बाद कोर्ट ने निर्देश दिया कि पतंजलि आयुर्वेद भविष्य में ऐसा कोई विज्ञापन प्रकाशित नहीं करेगा और यह भी सुनिश्चित करेगा कि प्रेस में उसके द्वारा आकस्मिक बयान न दिए जाएं।

पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह इस मुद्दे को “एलोपैथी बनाम आयुर्वेद” की बहस नहीं बनाना चाहती बल्कि भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों की समस्या का वास्तविक समाधान ढूंढना चाहती है। यह कहते हुए कि वह इस मुद्दे की गंभीरता से जांच कर रही है, पीठ ने भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा कि केंद्र सरकार को समस्या से निपटने के लिए एक व्यवहार्य समाधान ढूंढना होगा। सरकार से विचार-विमर्श के बाद उपयुक्त सिफारिशें पेश करने को कहा गया। इस मामले पर अगली सुनवाई 5 फरवरी 2024 को होगी।

बता दें कि पिछले साल आईएमए की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए कोर्ट ने एलोपैथी जैसी आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों के खिलाफ बयान देने के लिए बाबा रामदेव की खिंचाई की थी। जानें “बाबा रामदेव को क्या हुआ? वह अपनी प्रणाली को लोकप्रिय बना सकते हैं, लेकिन उन्हें अन्य प्रणालियों की आलोचना क्यों करनी चाहिए? हम सभी उनका सम्मान करते हैं, उन्होंने योग को लोकप्रिय बनाया, लेकिन उन्हें अन्य प्रणालियों की आलोचना नहीं करनी चाहिए।

आईएमए ने एलोपैथी और चिकित्सा की आधुनिक प्रणाली के बारे में “गलत सूचना के निरंतर, व्यवस्थित और बेरोकटोक प्रसार” पर चिंता जताते हुए रिट याचिका दायर की गई थी। याचिका में दावा किया गया है कि पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन एलोपैथी की निंदा करते हैं और कुछ बीमारियों के इलाज के बारे में झूठे दावे करते हैं। याचिका में 10 जुलाई, 2022 को प्रकाशित आधे पेज के विज्ञापन का हवाला दिया गया, जिसका शीर्षक था “एलोपैथी द्वारा फैलाई गई गलतफहमियां: फार्मा और मेडिकल उद्योग द्वारा फैलाई गई गलतफहमियों से खुद को और देश को बचाएं।” आईएमए का तर्क है कि जबकि प्रत्येक वाणिज्यिक इकाई को अपने उत्पादों को बढ़ावा देने का अधिकार है, पतंजलि द्वारा किए गए असत्यापित दावे ड्रग्स और अन्य जादुई उपचार अधिनियम, 1954 और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 जैसे कानूनों का सीधा उल्लंघन हैं।

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इसके अतिरिक्त, याचिका पिछले उदाहरणों पर प्रकाश डालती है जहां पतंजलि से जुड़े स्वामी रामदेव ने विवादास्पद बयान दिए थे, जिसमें एलोपैथी को “बेवकूफ और दिवालिया विज्ञान” कहना और सीओवीआईडी ​​​​की दूसरी लहर के दौरान एलोपैथिक दवाओं के कारण लोगों की मौत के बारे में निराधार दावे करना शामिल था। कोविड-19 महामारी  IMA ने पतंजलि पर COVID-19 टीकों के बारे में झूठी अफवाहें फैलाने और टीके को लेकर झिझक पैदा करने का आरोप लगाया है। याचिका में स्वामी रामदेव द्वारा दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर की तलाश कर रहे नागरिकों का कथित उपहास और उपहास का भी हवाला दिया गया है। याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि आयुष मंत्रालय द्वारा आयुष दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों की निगरानी के लिए भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने के बावजूद, पतंजलि ने कानून के प्रति कथित उपेक्षा जारी रखी है और जनादेश का उल्लंघन किया है।

आपको बता दें क‍ि 9 अक्‍टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने योगगुरु और पतंजलि के संस्थापक बाबा रामदेव की रिट याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उन्होंने कोविड-19 के एलोपैथिक उपचार के खिलाफ विवादास्पद टिप्पणियों को लेकर कई राज्यों में उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक एफआईआर से सुरक्षा की मांग की गई। बाबा रामदेव की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि उनकी टिप्पणियां भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) या किसी अन्य अधिनियम के तहत किसी अपराध के दायरे में नहीं आतीं।

यह कहते हुए कि रामदेव ने अगले दिन अपनी टिप्पणियां वापस ले लीं, दवे ने आगे कहा कि रामदेव ने चिकित्सा के एक विशेष रूप में विश्‍वास नहीं कर सकते। इससे चिकित्सा के इस रूप का अभ्यास करने वाले डॉक्टरों को भी ठेस पहुंच सकती है, लेकिन कोई अपराध नहीं बनता है। न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने केंद्र, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए), बिहार और छत्तीसगढ़ सरकारों को नोटिस जारी किया और मामले में उनकी प्रतिक्रिया मांगी है। रामदेव की याचिका में उनके खिलाफ सभी प्राथमिकियों को एक साथ जोड़ने और उन्हें दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की गई है। उन्होंने अपने खिलाफ दायर कई मामलों की कार्यवाही पर रोक लगाने और दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा देने का भी अनुरोध किया।

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