नई दिल्ली। लोन मोरेटोरियम मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की लोन मोरेटोरियम पॉलिसी पर दखल देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि छोटे कर्जदारों का चक्रवृद्धि ब्याज सरकार पहले ही खारिज कर चुकी है। ऐसी स्थिति में इससे ज्यादा राहत देने के लिए कोर्ट आदेश नहीं दे सकता है।
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कोर्ट ने कहा कि हम सरकार के आर्थिक सलाहकार नहीं हैं। कोरोना महामारी के दौरान सरकार को कम टैक्स मिले हैं। इसलिए ब्याज को पूरी तरह से माफ नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने मोरेटोरियम की अवधि बढ़ाने से इनकार कर दिया, लेकिन कहा कि मोरिटोरिम के दौरान अवधि के लिए कोई चक्रवृद्धि ब्याज नहीं लिया जाएगा।
यानी चक्रवृद्धि ब्याज या दंड ब्याज उधारकर्ताओं से नहीं लिया जाएगा। कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर किसी बैंक ने ब्याज वसूला है तो उसे वापस करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आर्थिक नीति क्या हो, राहत पैकेज क्या हो ये सरकार और केंद्रीय बैंक परामर्श के बाद तय करेंगे।
जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की बेंच ने यह फैसला सुनाया है। गौरतलब है कि, मोरेटोरियम अवधि के ईएमआई के भुगतान को लेकर कई सवाल उठे हैं। सुप्रीम कोर्ट में ब्याज पर ब्याज का मामला पहुंचा।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में कहा कि वह मोरेटोरियम अवधि (मार्च से अगस्त तक) के दौरान ब्याज पर ब्याज को माफ करने के लिए तैयार हो गई है। सरकार के सूत्रों ने ब्याज की माफी की लागत करीब 6,500 करोड़ रुपये आंकी थी।
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