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तिरुपति लड्डू विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, कहा- लैब रिपोर्ट में प्रथम दृष्टया यह नहीं दिखा कि अशुद्ध घी का इस्तेमाल हुआ

By Abhimanyu 
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Supreme Court on Tirupati Laddu controversy: तिरुपति मंदिर में प्रसाद में कथित जानवरों की चर्बी मिलाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस भूषण आर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ सुनवाई चल रही है। इस मामले में कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू फटकार लगाई है। जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि जब आप संवैधानिक पद पर होते हैं, तो आपसे यह उम्मीद की जाती है कि देवताओं को राजनीति से दूर रखा जाएगा। पीठ ने मौखिक रूप से यह भी कहा कि लैब रिपोर्ट में प्रथम दृष्टया संकेत मिलता है कि यह खारिज किए गए घी के सैंपल थे, जिनकी जांच की गई थी।

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दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वानथन की पीठ तिरुपति लड्डू विवाद से जुड़ी 5 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इनके याचिकाकर्ताओं में वाई. वी सुब्बा रेड्डी, विक्रम संपत, दुष्यंत श्रीधर, डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी और सुरेश चव्हाण के शामिल थे। मामले में केंद्र सरकार की ओर से साॅलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखा। जबकि आंध्रप्रदेश सरकार की ओर से सिद्धर्थ लूथरा और मुकुल रोहतगी मौजूद थे। इस दौरान पीठ के समक्ष सुब्रमण्यन स्वामी के वकील ने कहा कि निर्माण सामग्री बिना जांच के रसोई घर में जा रही थी. जांच से खुलासा हुआ. इसके सुपरविजन के लिए सिस्टम को जिम्मेदार होना चाहिए क्योंकि ये देवता का प्रसाद होता हैस जनता और श्रद्धालुओं के लिए वो परम पवित्र है।

कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, “याचिका पूरी दुनिया में रहने वाले करोड़ों लोगों की भावनाओं से जुड़ी है। आंध्र प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से बयान दिया कि पिछले शासन के दौरान तिरुपति के लड्डू बनाने के लिए जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया जा रहा था। हालांकि, कुछ प्रेस रिपोर्ट्स में यह भी दिखाया गया कि तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने भी बयान दिया कि इस तरह के मिलावटी घी का इस्तेमाल कभी नहीं किया गया। याचिकाओं में स्वतंत्र जांच और धार्मिक ट्रस्टों के मामलों और विशेष रूप से प्रसाद के निर्माण को विनियमित करने के लिए निर्देश सहित विभिन्न प्रार्थनाएं शामिल हैं।”

जस्टिस विश्वनाथन ने रोहतगी से पूछा, “लैब रिपोर्ट में कुछ अस्वीकरण हैं। यह स्पष्ट नहीं है। यह प्रथम दृष्टया संकेत दे रहा है कि यह अस्वीकृत घी था, जिसकी जांच की गई थी। यदि आपने स्वयं जांच का आदेश दिया है, तो प्रेस में जाने की क्या आवश्यकता थी।” जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, “यह रिपोर्ट प्रथम दृष्टया संकेत देती है कि यह वह सामग्री नहीं है जिसका उपयोग लड्डू बनाने में किया गया था।” जस्टिस गवई ने राज्य से पूछा, “जब आपने SIT के माध्यम से जांच का आदेश दिया तो प्रेस में जाने की क्या आवश्यकता थी?”

सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने कहा, “जब आप संवैधानिक पद पर होते हैं तो हम उम्मीद करते हैं कि देवताओं को राजनेताओं से दूर रखा जाएगा।” जस्टिस विश्वनाथन ने पूछा, “आपको जुलाई में रिपोर्ट मिलती है। 18 सितंबर को आप सार्वजनिक होते हैं। जब तक आप निश्चित नहीं हैं, आपने सार्वजनिक रूप से कैसे बात की?” जस्टिस गवई ने पूछा, “क्या उस घी का इस्तेमाल लड्डू बनाने में किया गया था?” TTD के एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने कहा, “हमने जांच के आदेश दिए हैं।” जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, “जब कोई आपकी तरह रिपोर्ट देता है तो क्या समझदारी यह नहीं है कि आप दूसरी राय लें? सबसे पहले, इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इस घी का इस्तेमाल किया गया था। कोई दूसरी राय नहीं है।”

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कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से केंद्र सरकार से निर्देश मांगने को कहा कि क्या केंद्रीय जांच की आवश्यकता है और मामले को गुरुवार के लिए टाल दिया।

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