होलिका दहन एक आसुरी की चिता का दहन है। होलिका एक असुर थी। होलिका दहन उसकी चिता को भस्मीकृत करने की परंपरा है।
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यह सनातन हिंदू शास्त्रीय विधान के अनुसार किसी भी उपजाऊ अन्न क्षेत्र, खलिहान अथवा किसी मानव आबादी के मध्य कदापि नहीं जलाई जानी चाहिए। शास्त्रों में इसका निषेध है। विष्णु पुराण सहित अनेक ग्रंथों में होलिका के आसुरी दहन का उल्लेख है। इसीलिए जब किसी बिना मानव आबादी वाले बंजर स्थल पर इसका दहन हो जाता है उसके दूसरे दिन रंग और गुलाल से मनुष्य होली खेलता है। किसी घर, आंगन, मानव आबादी के बीच इसका दहन अत्यंत अशुभ होता है। यह सनातन शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार मानव समाज के लिए कष्टकारी और अमंगल करने वाला होता है।
इसीलिए गांवों में भी प्रत्येक गांव के बंजर डीह के निकट आबादी से बहुत दूर ही होलिका दहन किया जाता है। खेत, खलिहान और बगीचे में इसे करना मना है क्योंकि वहां की उपज मनुष्य प्राप्त करता है। शहरों में इसे चौराहे या सड़क आदि पर किया जाता है जहां कोई स्थाई निवास नहीं करता।
मानव आबादी के परिसरों में नहीं जलाई जाती कोई चिता
होलिका की चिता किसी भी प्रकार से मानव निवास वाले परिसर या गांव के अंदर नहीं जलाई जाती। यह शुद्ध रूप से एक चिता है इसलिए काशी जी में इसे श्मशान में ही खेलने की प्राचीन परंपरा है।
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होलिका दहन प्रत्येक सनातन हिंदू के लिए महत्वपूर्ण है। होलिका दहन से आठ दिन पूर्व से ही होलाष्टक लग जाता है। इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते। होलाष्टक का समापन होलिका को चिता पर जला देने के बाद ही रंग गुलाल की खुशी के साथ होता है।
होलाष्टक का सही अर्थ
वैदिक पंचांग में कुछ दिन, काल व योग को अशुभ माना गया है जिसमें से एक होलाष्टक भी है और इसे अशुभ माना जाता है। होलाष्टक होली से 8 दिन पहले शुरू हो जाता है। होलाष्टक शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है होली के आठ दिन। यानि होली के त्योहार में केवल 8 दिन बाकी रह जाते हैं और इस दौरान होलिका दहन की तैयारियां शुरू हो जाती हैं।
होलाष्टक को क्यों मानते हैं अशुभ?
होलाष्टक को अशुभ मुहूर्त माना गया है और इस दौरान शुभ कार्य करने की मनाही होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह उग्र स्वभाव में आ जाते हैं और जब ग्रह उग्र होते हैं तो कोई भी शुभ कार्य सफल नहीं होता। क्योंकि शुभ कार्य में ग्रहों को शुभ स्थिति देखी जाती है तभी वह सफल होता है। इसलिए होलाष्टक को अशुभ माना जाता है और इस दौरान 8 दिनों तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव में होते हैं। इसलिए पूर्णिमा के बाद यानि होलिका दहन के बाद ही शुभ कार्य किए जाते हैं।
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होलिका दहन से दूर रहना चाहिए इन लोगों को
नवविवाहित महिलाएं:
मान्यता है कि नवविवाहित महिलाओं को पहली होली के दौरान होलिका दहन नहीं देखना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इससे उनके सुख-सौभाग्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
मासिक धर्म वाली महिलाएं:
मासिक धर्म को अशुद्ध माना जाता है। इसलिए, मासिक धर्म वाली महिलाओं को होलिका दहन से दूर रहना चाहिए।
गर्भवती महिलाएं:
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गर्भवती महिलाओं को नकारात्मक ऊर्जा से बचाना चाहिए। होलिका दहन के दौरान नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ जाता है। इसलिए, गर्भवती महिलाओं को होलिका दहन नहीं देखना चाहिए।
शिशु:
शिशुओं को भी नकारात्मक ऊर्जा से बचाना चाहिए। इसलिए, उन्हें भी होलिका दहन नहीं देखना चाहिए।
कमजोर स्वास्थ्य वाले लोग:
कमजोर स्वास्थ्य वाले लोगों को भी होलिका दहन से दूर रहना चाहिए। धुएं और भीड़भाड़ उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है।
जिनकी हाल ही में सर्जरी हुई हो:
जिनकी हाल ही में सर्जरी हुई हो, उन्हें भी होलिका दहन से दूर रहना चाहिए। धुएं और भीड़भाड़ उनके घावों को संक्रमित कर सकती है।
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जिनकी कुंडली में दोष हो:
जिनकी कुंडली में दोष हो, उन्हें होलिका दहन देखने से पहले ज्योतिषी से सलाह लेनी चाहिए।
होलिका दहन के दौरान न देखने के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों कारण हैं। धार्मिक कारणों से, नकारात्मक ऊर्जा से बचना माना जाता है। वैज्ञानिक कारणों से, धुएं और भीड़भाड़ से स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।असुर होलिका को भस्मीभूत कर के अमंगल का नाश कीजिए। रंग और गुलाल से जीवन में रंग भरिए। समाज को शुद्ध कीजिए।
लेख : संजय तिवारी