Supreme court on Mumbai local blast case: बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल में मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया था। जिसके बाद महाराष्ट्र सरकार और आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने हाई-कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आरोपियों को बारी करने के फैसले पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्थगन आदेश से आरोपियों की जेल से रिहाई पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
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बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) ने अपनी याचिका में कहा कि एक आरोपी से आरडीएक्स (RDX) की बरामदगी को बेहद “तकनीकी आधार” पर खारिज किया गया कि जब्त विस्फोटकों को एलएसी सील से सील नहीं किया गया था। हाईकोर्ट ने आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ मामला साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है तथा यह विश्वास करना कठिन है कि आरोपियों ने यह अपराध किया है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) द्वारा हाईकोर्ट के 21 जुलाई के फैसले के खिलाफ राज्य की अपील पर तत्काल सुनवाई के अनुरोध किया था। जिस पर सीजेआई बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने मंगलवार को संज्ञान लिया और कहा कि गुरुवार को सुनवाई की जाएगी। महाराष्ट्र सरकार ने अपनी अपील में हाईकोर्ट के बरी करने के आदेश पर कई गंभीर आपत्तियां उठाई हैं।
राज्य सरकार की याचिका में कहा गया है कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) की धारा 23(2) के तहत उचित प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का पालन किया गया था, जिसमें अभियोजन पक्ष के गवाह संख्या 185 अनामी रॉय जैसे वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उचित मंजूरी भी शामिल है। साथ ही कहा गया कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य में कोई ठोस विरोधाभास न होने के बावजूद उच्च न्यायालय ने इन स्वीकृतियों की वैधता को नजरअंदाज कर दिया।
याचिका में हाईकोर्ट द्वारा एक आरोपी से 500 ग्राम आरडीएक्स की बरामदगी को इस आधार पर खारिज करने की आलोचना की गई है। याचिका में कहा गया है कि आरडीएक्स के अत्यधिक ज्वलनशील होने के कारण सुरक्षा कारणों से इसे सील नहीं किया गया था और बरामदगी की विधिवत मंजूरी दी गई थी तथा उसका दस्तावेजीकरण किया गया था।
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गौरतबल है कि 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में सात बम विस्फोट हुए थे, जिनमें 187 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 800 से अधिक घायल हुए थे। साल 2015 में विशेष एमसीओसीए कोर्ट ने इस मामले में 12 आरोपियों को दोषी ठहराया था, जिसमें पांच दोषियों को मृत्युदंड और सात को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, 21 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव और अभियोजन पक्ष की विफलता का हवाला देते हुए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया था।