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Hindenburg Research Report को लेकर बढ़ा सिसासी पारा, जयराम रमेश ने जांच के लिए जेपीसी गठन की उठाई मांग

By शिव मौर्या 
Updated Date

Hindenburg Research Report: हिंडनबर्ग रिसर्च की हालिया रिपोर्ट को लेकर अब सियासी सरगर्मी बढ़ने लगी है। विपक्षी दलों ने इसको लेकर केंद्र सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। कांग्रेस नेता जयराम रामेश ने अब इसको लेकर सरकार को घेरा है। उन्होंने कहा कि, अडानी महाघोटाले की व्यापक जांच के लिए एक जेपीसी का गठन करके ही सुलझाया जा सकता है।

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जयराम रमेश ने कहा कि, अडानी महाघोटाले की जांच करने में SEBI की आश्चर्यजनक अनिच्छा लंबे समय से सबके सामने है। सुप्रीम कोर्ट की एक्सपर्ट कमेटी ने इसका विशेष रूप से संज्ञान लिया था। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि SEBI ने 2018 में विदेशी फंड्स के अंतिम लाभकारी (यानी वास्तविक स्वामित्व) से संबंधित रिपोर्टिंग की आवश्यकताओं को कमज़ोर कर दिया था और 2019 में इसे पूरी तरह से हटा दिया था। कमेटी के अनुसार ऐसा होने से प्रतिभूति बाज़ार नियामक के हाथ इस हद तक बंध गए कि “उसे गलत कार्यों का संदेह तो है, लेकिन उसे संबंधित विनियमों में विभिन्न शर्तों का अनुपालन भी दिखाई देता है… यहीं वह विरोधाभास है जिसके कारण SEBI इस मामले में किसी नतीजे तक नहीं पहुंचा है।

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उन्होंने आगे कहा कि, जनता के दबाव में, अडानी मामले में काफी नुक़सान हो जाने के बाद, SEBI बोर्ड ने 28 जून 2023 को सख़्त रिपोर्टिंग नियम फिर से लागू किए। इसने 25 अगस्त 2023 को एक्सपर्ट कमेटी को बताया कि वह 13 संदिग्ध लेन-देन की जांच कर रहा है, फिर भी जांच का कभी कोई नतीजा नहीं निकला। हिंडनबर्ग रिसर्च के कल के खुलासे से पता चलता है कि SEBI की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति ने उन्हीं बरमूडा और मॉरीशस स्थित ऑफ़शोर फंड में निवेश किया था, जिसमें विनोद अडानी और उनके क़रीबी सहयोगियों चांग चुंग-लिंग और नासिर अली शाहबान अहली ने बिजली उपकरणों के ओवर-इनवॉइसिंग से अर्जित धन का निवेश किया था।

जयराम रमेश ने आगे कहा कि, ऐसा माना जाता है कि इन फंड्स का इस्तेमाल SEBI के नियमों का उल्लंघन करते हुए अडानी ग्रुप की कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने के लिए भी किया गया था। यह बेहद चौंकाने वाली बात है कि बुच की इन्हीं फंड्स में वित्तीय हिस्सेदारी थी। यह माधबी पुरी बुच के SEBI चेयरपर्सन बनने के तुरंत बाद 2022 में गौतम अडानी की उनके साथ लगातार दो बैठकों को लेकर नए सवाल खड़े करता है। याद रखें कि उस समय SEBI कथित तौर पर अडानी के लेन-देन की जांच कर रहा था। सरकार को अडानी की SEBI जांच में सभी हितों के टकराव को ख़त्म करने के लिए तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। तथ्य यह है कि देश के सर्वोच्च अधिकारियों की जो कथित मिलीभगत दिख रही है, उसे अडानी महाघोटाले की व्यापक जांच के लिए एक जेपीसी का गठन करके ही सुलझाया जा सकता है।

 

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