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दिवाली में बस के किराए में भारी लूट, अब तो हवाई चप्पल वाले भी नहीं चढ़ पा रहे हैं बस में : कांग्रेस

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। दीपावली का त्योहार ऐसा है, जिसे लोग अपने घरवालों के साथ सेलिब्रेट करने के लिए दूर-दराज नौकरी कर रहे लोग अपने-अपने घरों को पहुंचते हैं। हालांकि घर पहुंचते-पहुंचते ही उनकी जेब ढीली हो जाती है। लोगों के सामने भी मजबूरी रहती है कि उनको भी अपनों के साथ दिवाली का त्योहार मनाना होता है तो वह भी जिस रेट पर टिकट मिलता है, उसी रेट पर बुक कर घर की ओर निकल पड़ते हैं।

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इसी खबर को संज्ञान में लेते हुए कांग्रेस पार्टी ने अपने अधिकारिक एक्स पोस्ट पर पीएम मोदी का फोटो और किराए की लिस्ट शेयर कर लिखा कि दिवाली में बस के किराए में भारी लूट, हवाई चप्पल वाले बस में नहीं चढ़ पा रहे हैं।

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लखनऊ का किराया 6 हजार रुपए

दिवाली के मौके पर प्राइवेट बसों के टिकट की कीमत आसमान छू रही है। अगर आप बस से दिल्ली से लखनऊ जाना चाहते हैं तो किराया जानकर आपके होश उड़ जाएंगे। जो स्लीपर बस का लखनऊ तक का टिकट आम दिनों में 600 रुपए में मिलता है, वही दिवाली के मौके पर 6000 का हो गया है। वहीं सिटिंग टिकट की कीमत 3200 रुपए पहुंच गई। ये हाल केवल दिल्ली ये लखनऊ रूट पर नहीं है, बल्कि गोरखपुर, बलिया, प्रयागराज वा यूपी-बिहार जाने वाली अधिकतर प्राइवेट बसों का यही हाल है।

जानें अन्य शहरों का कितना किराया

दिल्ली से कानपुर का किराया 700 से बढ़कर 3500 हो गया है। दिल्ली से वाराणसी का किराया 5770 रुपए, दिल्ली से गोरखपुर का किराया 7304 और प्रयागराज का 7350 तक पहुंच गया है। बुकिंग वेबसाइट्स और ट्रैवल एजेंसियों के अनुसार, 18, 19, 21 और 22 अक्टूबर को अधिकांश बसें पहले से ही फुल हैं। लोगों ने हफ्तों पहले टिकट बुक कर लिए हैं, जबकि अब लास्ट-मिनट बुकिंग करने वालों को दोगुना-तीन गुना किराया देना पड़ रहा है।

क्या बोले यात्री?

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वहीं दिवाली के मौके पर घर जाने वाले यात्रियों का कहना है कि घर से दूर हम काम करने आए हैं। यही त्योहार है, जिस पर छुट्टी मिलती है। घर पहुंचकर अपनों के साथ दिवाली मनाते हैं। घर पर सभी इकट्ठा होते हैं। साल भर में एक बार ये मौका आता है। इसी मौके का फायदा प्राइवेट बस वाले उठाते हैं।

यात्रियों का कहना है कि ट्रेनों में महीनों पहले टिकट फुल हो जाता है। अगर सोचो की त्योहार पर ट्रेन से चले जाओ तो पैर रखने का तक जगह नहीं मिलती। फिर बस ही अंतिम सहारा बचती है। मजबूरी में इतनी महंगे दाम पर टिकट खरीद कर जाना पड़ता है। सरकारी बसों का टाइम टेबल फिक्स नहीं होता, कब जाएगी या नहीं जाएगी?

 

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