नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) पर रोक लगा दी है। इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलौत (Ashok Gehlot) ने गुरुवार को एक्स पोस्ट पर लिखा कि इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) को असंवैधानिक ठहराने का सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का फैसला ऐतिहासिक एवं स्वागतयोग्य है। इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) ने भ्रष्टाचार को बढ़ाने का काम किया। इसने राजनीतिक चंदे की पारदर्शिता को खत्म किया और सत्ताधारी पार्टी भाजपा को सीधे लाभ पहुंचाया। मैंने बार-बार कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) आजाद भारत के सबसे बड़े घोटालों में से एक है। आज सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले ने यह साबित कर दिया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) एनडीए सरकार का एक बड़ा घोटाला है।
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यह फैसला देर से आया पर देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए बेहद ही जरूरी फैसला है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का धन्यवाद। अशोक गहलौत (Ashok Gehlot) ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड देश का बहुत बड़ा स्कैंडल है।
इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक ठहराने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक एवं स्वागतयोग्य है। इलेक्टोरल बॉन्ड ने भ्रष्टाचार को बढ़ाने का काम किया। इसने राजनीतिक चंदे की पारदर्शिता को खत्म किया और सत्ताधारी पार्टी भाजपा को सीधे लाभ पहुंचाया। मैंने बार-बार कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड आजाद… https://t.co/usCbyT7b5g
— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) February 15, 2024
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चुनावी बॉन्ड योजना (Electoral Bonds Scheme) की वैधता के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) आज फैसला सुना दिया है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इसे असंवैधानिक बताया और सरकार को किसी अन्य विकल्प पर विचार करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना (Electoral Bonds Scheme) की आलोचना करते हुए कहा कि राजनीतिक पार्टियों को हो रही फंडिंग की जानकारी मिलना बेहद जरूरी है। इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) सूचना के अधिकार का उल्लंघन (Violation of Right to Information) है।
सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई बैंक से मांगी पूरी जानकारी
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) , जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मामले पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। हालांकि पीठ में दो अलग विचार रहे, लेकिन पीठ ने सर्वसम्मति से चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) पर रोक लगाने का फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने फैसले में एसबीआई बैंक (SBI Bank) को 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) की पूरी जानकाकरी देने का आदेश दिया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने पिछले साल दो नवंबर को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सुनाया गया।
चुनावी बॉन्ड योजना (Electoral Bonds Scheme) के अनुसार, चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) भारत के किसी भी नागरिक या देश में स्थापित ईकाई द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) खरीद सकता है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 (ए) के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल और लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनावों में कम से कम एक प्रतिशत वोट पाने वाले दल चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) प्राप्त कर सकते हैं। बॉन्ड को किसी पात्र राजनीतिक दल द्वारा अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जा सकता है।
पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने की सुनवाई
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कोर्ट ने मामले में 31 अक्तूबर से नियमित सुनवाई शुरू की थी। मामले की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने की। इसमें न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। इस दौरान पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से दलीलें दी गईं। कोर्ट ने सभी पक्षों को गंभीरता से सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।
क्या है योजना?
इस योजना को सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया गया था। इसके मुताबिक, चुनावी बॉण्ड (Electoral Bonds) को भारत के किसी भी नागरिक या देश में स्थापित इकाई की ओर से खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉण्ड (Electoral Bonds) खरीद सकता है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत ऐसे राजनीतिक दल चुनावी बॉण्ड (Electoral Bonds) के पात्र हैं। शर्त बस यही है कि उन्हें लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों। चुनावी बॉण्ड (Electoral Bonds) को किसी पात्र राजनीतिक दल द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जाएगा।