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जीवनशैली में बदलाव कर बचा सकते हैं पर्यावरण : प्रो. प्रभा शंकर शुक्ल

By संतोष सिंह 
Updated Date

लखनऊ। जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रभाव कृषि पर पड़ेगा। खाद्यान्न का उत्पादन कम हो जाएगा। साल 2050 तक हालत ये होगी कि यदि जनसंख्या अनुपात में खाद्यान्न का उत्पादन नहीं हुआ तो स्थिति भयावह हो जाएगी। इसलिए अभी से इस दिशा में सोचने और कदम उठाने की जरूरत है। पर्यावरण बचाने में हमारी जीवनशैली की महत्वपूर्ण भूमिका है, उसमें बदलाव कर हम बहुत कुछ बदल सकते हैं।

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उक्त बातें नॉर्थ इस्टर्न हिल विश्वविद्यालय शिलांग के कुलपति प्रो. प्रभा शंकर शुक्ल ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला पर्यावरण के प्रति चेतना एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण के समापन पर बतौर मुख्य वक्ता कही। इस दौरान उन्होंने जलवायु परिवर्तन एवं कृषि विषय पर बोलते हुए जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों की चर्चा करने के साथ इसके समाधान के प्रयास की बात कही। कहा कि कृषि जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा और गरीबी का सीधा संबंध है। भारत ही नहीं पूरे विश्व की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है। जबकि पृथ्वी से जंगल घटते जा रहे हैं। कारखानों से निकलने वाला प्रदूषण वायुमंडल को दूषित कर रहा है।

परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हो रहा है। कहीं जमकर बारिश हो रही है तो कहीं सूखा पड़ जा रहा है। जिसका असर कृषि पर पड़ रहा है। खाद्यान्न उत्पादन कम हो जा रहा है, जो कहीं न कहीं मनुष्य के लिए खतरनाक है। उन्होंने कहा कि जब तक हम अपना नजरिया नहीं बदलेंगे तब तक स्थिति में सुधार ला पाना संभव नहीं है। हमें कृषि उत्पादन में बदलाव की जरूरत है। जिससे कि भविष्य की चुनौतियों का सामना किया जा सके। बताया कि बिना पर्यावरण संतुलन के जलवायु परिवर्तन को नहीं रोका जा सकता। समाधान बताते हुए कहा कि इसके लिए जरूरी है कि हम अपनी जीवनशैली में बदलाव लाएं।

पर्यावरण के अनुकूल रहें। साथ ही पर्यावरण संतुलन के लिए पौधरोपण को सबसे जरूरी बताया। कहा कि बिना पेड़ों के हम अपनी पृथ्वी को सुरक्षित नहीं रख सकते। अध्यक्षता प्रो. सुरेंद्र सिंह ने की। अध्यक्षता करते हुए एकेटीयू के कुलपति प्रो. प्रदीप कुमार मिश्र ने कहा कि पर्यावरण संकट से निपटने के लिए नजरिया बदलना होगा। कहा कि नई शिक्षा नीति से निश्चित ही पर्यावरण के प्रति चेतना आएगी। साथ ही कहा कि यदि भारत को विश्वगुरू बनना है तो पंचशील को अपनाना होगा। इसमें शिक्षा छात्र केंद्रित हो, परिवार स्त्री केंद्रित हो, ज्ञान आधारित समाज हो और नवाचार की सोच को अपनाना होगा।

वहीं, प्रो. बीएन मिश्र ने जैव प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण पर विस्तार से जानकारी दी। कहा कि जब हम पर्यावरण की बात करते हैं तो सिर्फ जंगल, पहाड़, नदी तक ही रह जाते हैं, जबकि इसके संतुलन में सूक्ष्म जीवों को बड़ा योगदान है। बताया कि कोई भी पेड़ सूक्ष्म जीवों की सहायता से विकास करता है जिससे कि हमें ऑक्सीजन मिल पाता है। लेकिन पिछले कुछ सालों में हमने पश्चिमी जीवनशैली का ऐसा अनुकरण किया कि पृथ्वी की साइकल क्षमता को प्रभावित कर दिया। हमारी उपभोक्तावादी मानसिकता ने पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाया है।

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उन्होंने न केवल पर्यावरण संकट पर बात की बल्कि उसके समाधान और विकल्पों को भी बताया। कहा कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में लेदर उद्योग भी है। ऐसे में यदि जानवरों के चमड़े की जगह फल-फूल और सब्जियों से लेदर बनाया जा सकता है। इसी तरह उन्होंने थ्री डी फूड प्रिंटिंग और मांस के लिए जानवरों को काटने की बजाय स्टेम सेल से मांस बनाने का विकल्प सुझाया। कहा कि पर्यावरण को एक सीमित दायरे में न देखा जाए। क्योंकि ऐसा ताना बाना है कि इसके परिवर्तन का असर मानव जाति पर पड़ेगा।

अध्यक्षता जेएनयू की डॉ. उषा मीणा ने किया जबकि संचालन सुबोध ने किया। इसके पहले कार्यक्रम की शुरूआत मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन से हुई। इस मौके पर दो दिन की कार्यशाला और आगामी कार्यक्रम पर न्यास के सचिव संजय स्वामी ने चर्चा की। इस मौके पर डॉ. वृषभ प्रसाद जैन, प्रो. एचके पालीवाल राजकुमार देवल, विजय कुमार गोस्वामी, डॉ. इंदु चूड़न, गगन शर्मा सहित अन्य लोग मौजूद रहे।

 

 

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