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झारखंड बना देश का रोल मॉडल, कोयला खनन कंपनियों के छोड़े गए पानी से भरे गड्ढे बने मछली पालन केन्द्र

By Sudha 
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झारखंड। प्रदेश सरकार ​इन दिनों झारखंड के विकास में अपना ध्यान फोकस कर रही है। प्रदेश के तरक्की के लिये नये—नये विचार अपना रही है। इन दिनों झारखंड देश का रोल मॉडल बन कर उभर रहा है। बताते चले कि झारखंड में कोयला खनन कंपनियां का खनन करते वक्त छोड़े गए पानी से भरे गड्ढे अब आफ़त का काम नहीं बल्कि लाभकारी साबित हो रहे हैं। मजे कि बात यह है कि यहां इन पानी से भरे गड्ढे अब मछली पालन फार्म में बदले जा रहे हैं। यानि कि प्रदेश विकास कर रहा है। वहीं यह पहल विस्थापित समुदायों को आजीविका प्रदान कर रही है और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रोटीन की कमी को भी दूर कर रही है। फिलहाल पूरे झारखंड में ऐसे लगभग 1,741 कोयला गड्ढे मौजूद हैं और ​कुछ गड्ढे तो 1980 के समय के हैं। जानकारी के हिसाब से कानूनी तौर पर कोयला खनन कंपनियों को इन गड्ढों का वैज्ञानिक तरीके से यूज करना जरूरी है।

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बताते चले कि रामगढ़ जिले में 22 एकड़ के आरा कोयला गड्ढे में काम कर रही कुजू फिशरमेन कोऑपरेटिव सोसाइटी इस बदलाव की एक सफल कहानी बनकर उभरी है। सोसाइटी के सचिव शशिकांत महतो ने 2010 में बिना किसी उचित बुनियादी ढांचे के यह पहल शुरू की थी। बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, महतो कहते हैं कि मैंने पानी से भरे आरा कोयला गड्ढे में बिना किसी पिंजरे के मछली पालन शुरू किया। मैंने बस मछली का बीज डाला और एक अच्छी उपज मिली। उनकी पहली बड़ी पकड़ 15 किलो की कतला मछली थी, जिसने उन्हें एक सरकारी मेले में पहला पुरस्कार और 5 हजार रुपये की पुरस्कार राशि के साथ-साथ चार मछली पकड़ने के पिंजरे भी दिलाए। शुरू होने के बाद से इस उद्यम का पैमाना काफी बढ़ गया है। 2012 तक महतो ने 6x4x5 मीटर के चार पिंजरे स्थापित कर लिए थे और 6 से 7 टन मछली का उत्पादन किया था। इस काम की क्षमता को पहचानते हुए, महतो और रामगढ़ निवासियों ने कुजू फिशरमेन कोऑपरेटिव सोसाइटी का गठन किया। इस सामूहिक पहल ने उन्हें केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं तक पहुंचने में योग्य बनाया, जिसमें राष्ट्रीय प्रोटीन सप्लीमेंट मिशन और डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन ट्रस्ट से पैसा प्राप्त करना शामिल था।

मिली सरकारी हेल्प
इस समय रामगढ की सोसाइटी के 68 सदस्य सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड के तहत आने वाले 22 एकड़ के आरा कोयला गड्ढे में 126 पिंजरों का संचालन करते हैं। पिंजरों का पूरा 4 करोड़ रुपये का बुनियादी ढांचा 100 प्रतिशत सरकारी सब्सिडी के माध्यम से वित्त पोषित किया गया था।

कोयला कंपनी से एनओसी जरूरी
महतो के अनुसार, हमने खनन परियोजना के लिए अपनी जमीन दी। हम कोयला कंपनी से उचित एनओसी के बिना छोड़े गए कोयला खदान के गड्ढों में मछली पालन शुरू नहीं कर सकते। इसके लिये कोयला कंपनी से एनओसी होना जरुरी माना गया है। बताते चले कि मछजी पालन में कोई समस्या ने होने पाये जिसके लिय जिला कलेक्टर ने राज्य सरकार के समर्थन से आवश्यक मंजूरी जारी की है।

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