नागपुर। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने संघ के 100 साल पूरा होने पर नागपुर में विजयदशमी उत्सव कार्यक्रम (Vijayadashami Celebration Program) को गुरुवार को संबोधित किया। संघ प्रमुख ने कहा कि प्रजातांत्रिक मार्गों से ही परिवर्तन आता है। हिंसा से ऊथल-पुथल आती है, लेकिन पूरी तरह से परिवर्तन नहीं हुआ। हाल के समय में विभिन्न देशों में कथित क्रांतियां हुईं, लेकिन कहीं कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हो सका। हमारे पड़ोसी देशों में हिंसक ऊथल-पुथल होना हमारे लिए चिंता का विषय है। हमारा पड़ोसी देशों के साथ आत्मीयता का संबंध है। इससे चिंता होती है।
पढ़ें :- 'हिंदू क्यों खत्म होंगे, और कैसे खत्म होंगे?' मोहन भागवत की टिप्पणी पर कांग्रेस ने उठाए सवाल
शताब्दी वर्ष श्री विजयादशमी उत्सव युगाब्द 5127 . #RSS100Years https://t.co/rflNunLSa5
— RSS (@RSSorg) October 2, 2025
मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा कि जब सरकार जनता से दूर रहती है और उनकी समस्याओं से काफी हद तक अनभिज्ञ रहती है और उनके हित में नीतियां नहीं बनाई जातीं, तो लोग सरकार के खिलाफ हो जाते हैं। लेकिन अपनी नाखुशी व्यक्त करने के लिए इस तरीके का इस्तेमाल करने से किसी को कोई लाभ नहीं होता। अगर हम अब तक की सभी राजनीतिक क्रांतियों का इतिहास देखें, तो उनमें से किसी ने भी अपना उद्देश्य कभी हासिल नहीं किया। सरकारों वाले राष्ट्रों में हुई सभी क्रांतियों ने अग्रिम राष्ट्रों को पूंजीवादी राष्ट्रों में बदल दिया है। हिंसक विरोध प्रदर्शनों से कोई उद्देश्य हासिल नहीं होता, बल्कि देश के बाहर बैठी शक्तियों को अपना खेल खेलने का मंच मिल जाता है।
पढ़ें :- मोहन भागवत बोले- अगर हिंदू नहीं रहेगा तो दुनिया नहीं रहेगी
मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा कि ‘आज पूरी दुनिया में अराजकता का माहौल है। ऐसे समय में पूरी दुनिया भारत की तरफ देखती है। आशा की किरण ये है कि देश की युवा पीढ़ी में अपने देश और संस्कृति के प्रति प्रेम बढ़ा है। समाज खुद को सक्षम महसूस करता है और सरकार की पहल से खुद ही समस्याओं का निदान करने की कोशिश कर रहा है। बुद्धिजीवियों में भी अपने देश की भलाई के लिए चिंतन बढ़ रहा है।’
मानव का भौतिक विकास के साथ ही नैतिक विकास जरूरी
उन्होंने कहा कि ‘मानव भौतिक विकास होता है, नैतिक विकास नहीं होता। आज अमेरिका को आदर्श माना जाता है और लोग चाहते हैं कि भारत, अमेरिका जैसा जीवन जिए,लेकिन जानकार मानते हैं कि उसके लिए और पांच पृथ्वियों की जरूरत होगी, तो वैसा विकास नहीं हो सकता। हमारी दृष्टि भौतिकता के साथ-साथ मानवता के विकास की भी है। हजारों वर्षों तक दुनिया में हमने इस दृष्टि से सुंदर, शांतिपूर्ण और मनुष्य और सृष्टि का सहयोगी जीवन प्रस्थापित किया था। आज फिर दुनिया भारत से अपेक्षा कर रही है और नियति यही चाहती है कि हम विश्व को फिर से ऐसा रास्ता दे।’
मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा कि ‘संघ अपनी दृष्टि और परंपरा से चलते हुए 100 साल पूरे कर चुका है। स्वयंसेवक और समाज के संकलित अनुभव संघ का चिंतन है। सारी दुनिया आगे चली गई है, हम भी आगे चले गए हैं। अब अगर हम तुरंत पीछे आएंगे तो गाड़ी उलट जाएगी। ऐसे में हमें धीरे-धीरे परिवर्तन करने होंगे और अपना खुद का विकास पथ बनाकर दुनिया के सामने रखेंगे तो सही विकास होगा। दुनिया को धर्म की दृष्टि देनी होगी। वो धर्म पूजा, खान-पान नहीं है, वो सभी को साथ लेकर चलने वाला और सभी का कल्याण करने वाला धर्म है। हमें विश्व को ये दृष्टि देनी होगी। लेकिन व्यवस्थाएं उसे नहीं बना सकतीं। व्यवस्थाएं मनुष्य बनाता है। वो जैसा है वैसी ही व्यवस्थाएं बनाएगा। जैसा समाज है, वैसी ही व्यवस्था चलेगी। इसलिए समाज के आचरण में बदलाव आना चाहिए।’
वैश्विक आर्थिक प्रणाली पर निर्भरता खत्म कर स्वदेशी और स्वावलंबी जीवन जीना पड़ेगा
पढ़ें :- 'राष्ट्रीय ध्वज पहली बार 'भगवा' रंग का होना तय किया गया था, लेकिन महात्मा गांधी ने...' RSS प्रमुख का तिरंगे बड़ा बयान
संघ प्रमुख ने कहा कि प्रचलित अर्थ प्रणाली के अनुसार, देश आर्थिक विकास कर रहा है। लेकिन प्रचलित अर्थ प्रणाली के कुछ दोष भी सामने आ रहे हैं। इस व्यवस्था में शोषण करने के लिए नया तंत्र खड़ा हो सकता है। पर्यावरण की हानि हो सकती है। हाल ही में अमेरिका ने जो टैरिफ नीति अपनाई, उसकी मार सभी पर पड़ रही है। ऐसे में हमें मौजूदा अर्थ प्रणाली पर पूरी तरह से निर्भर नहीं होना चाहिए। निर्भरता मजबूरी में न बदलनी चाहिए। इसलिए निर्भरता को मानते हुए इसको मजबूरी न बनाते हुए जीना है तो स्वदेशी और स्वावलंबी जीवन जीना पड़ेगा। साथ ही राजनयिक, आर्थिक संबंध भी दुनिया के साथ रखने पड़ेंगे, लेकिन उन पर पूरी तरह से निर्भरता नहीं रहेगी।
हिंदू राष्ट्र को लेकर बोले संघ प्रमुख
संघ प्रमुख ने कहा कि सभी विविधताओं के साथ हमें एक सूत्र में पिरोने वाली भारतीय राष्ट्रीयता है, हिंदू राष्ट्रीयता है। जिसे हिंदू शब्द से आपत्ति है,वह हिंदवी कहे, आर्य कहे। हमारा राष्ट्र राज्य पर आधारित कल्पना नहीं है। हमारी संस्कृति राष्ट्र बनाती है। देश आते जाते रहते हैं, राष्ट्र सदा विद्यमान होते हैं। हमने गुलामी झेली, आक्रमण झेले लेकिन इनके बावजूद सनातन, हम आज भी मौजूद हैं। वसुधैव कुटम्बकम की धारणा इसी समाज ने दी है। संघ, हिंदू समाज को संगठित करने का काम कर रहा है। एक बार समाज संगठित हो गया तो वह अपने बल पर सारे काम कर सकता है।’