मथुरा, वृंदावन, बृज के कण कण में कृष्ण बसे हैं। यहां दूर दूर से कान्हा के भक्त आकर उनके प्रेम और भक्ति में डूब जाते हैं। यहां का चप्पा चप्पा भगवान कृष्ण के किस्सों और कहानियों से पटा पड़ा है। कृष्ण की लीला में रमा हुआ है। इन सब के बीच एक यहां एक मंदिर है इमलीतला मंदिर यह एक ऐसा मंदिर है जिसके लिए कहा जाता है कि यहां का पेड़ श्रापित है।
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इसके पीछे कहा जाता है कि इस पेड़ को राधा रानी ने श्राप दिया था। इमलीतला मंदिरश्री यमुनाजी तट पर स्थित एक बहुत पवित्र मंदिर है। इमलीतला मंदिर से कई कई कहानियां और मान्याताएं जुड़ी है, लेकिन सबसे फेमस कहानी चैतन्य महाप्रभु के बारे में सुनने को मिलती है। एक वेबसाइट पर प्रकाशित लेख के अनुसार उन्होंने इस फेमस इमली के पड़े के नीचे बैठकर श्री कृष्ण नाम का जाप किया था। इस मंदिर में ढ़ेरों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते है।
इस मंदिर के चारों तरफ की दीवारों पर इमलीतला घाट की कहानियों को प्रदर्शित करती हुई कलाकृतियां बनी हुई है। मान्यताओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि एक बार श्री राधा जी रास के बीच में गायब हो गई। तब श्री कृष्ण इस पवित्र इमली के पेड़ के नीचे बैठकर अलगाव की दुखद भावना में लीन हो गए और इस दौरान उन्होंने श्री राधा के मधुर नाम का जाप किया था। वृन्दावन के इमलीतला मंदिर की यही दिव्यता इसे अत्यंत आकर्षक बनाती है। ऐसा भी माना जाता है कि चैतन्य महाप्रभु सहित श्री राधा-गोपीनाथ जी और निताई गौर आज भी इमलीतला मंदिर में निवास करते हैं।
इमलीतला मंदिर वृंदावन के जुगल घाट के पास स्थित है। कहते हैं यह स्थान 5500 साल से भी अधिक पुराना है। इस मंदिर के अंदर एक इमली का पेड़ मौजूद है जिससे कई मान्यताएं जुड़ी हैं। ऐसा कहा जाता है कि द्वापर युग में यह इमली से भरा रहता था। एक बार राधारानी यमुना स्नान श्रृंगार करने के बाद इस पेड़ के नीचे से जा रही थीं। उसी समय इस पेड़ से एक पकी इमली गिरी जिस पर राधारानी का पैर पड़ा और वो फिसल कर गिर पड़ी जिससे उनका श्रृंगार खराब हो गया।
इस पेड़ का पकी इमली से राधारानी के चरणों की आलता खुद ही धुल गई और उनका श्रृंगार बिगड़ गया। श्रृंगार बिगड़ जाने से वे क्रोधित हुई। इसके बाद राधारानी ने इस इमली के वृक्ष को श्राप दे दिया। इस श्राप के कारण तब से अभी तक ब्रज भूमि के इस पेड़ पर लगी इमली नहीं पकती हैं।
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कार्तिक पूर्णिमा में भगवान श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने वृंदावन धाम में पधार इस वृक्ष के नीचे बैठकर संकीर्तन किया। तब इस वृक्ष की एक शाखा किटम गड़ के राजा राठौर के महल के ऊपर फैल गई थी, जिसे राजा ने कटवा दिया था। तब उस डाल से लगातार तीन दिनों तक खून निकलता रहा। बाद में इसी की बगल में एक और प्रतीकात्मक इमली का पेड़ लगा दिया गया था।