खाड़ी के दो सबसे शक्तिशाली देश – सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात यानी UAE के बीच इस महीने तनाव बढ़ता जा रहा है . मंगलवार शाम संयुक्त अरब अमीरात UAE ने एक घोषणा की है, जिसके बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि शायद तनाव थम जाए . इसके बावजूद दोनों देशों की जियोपॉलिटिकल महत्वाकांक्षा में टकराव खुलकर सामने आए. यूएई के रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है कि वह यमन से अपनी बची सैन्य मौजूदगी भी ख़त्म कर देगा. यूएई के रक्षा मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, ”हम 2015 से अरब गठबंधन का हिस्सा बने हुए हैं और यमन में वैध सरकार का समर्थन करते रहे हैं. यूएई की सेना ने साल 2019 में यूं तो यमन में अपने मुख्य सैन्य अभियानों को पूरा कर लिया था और वापस लौट आई थी. वहीं कुछ सैनिकों को चरमपंथी ताक़तों पर लगाम रखने के लिए वहीं छोड़ दिया गया था. लेकिन मौजूदा घटनाक्रमों को देखते हुए रक्षा मंत्रालय बाक़ी बचे सैनिकों को भी वापस बुलाने की मांग कर रहा है. ”
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UAE के इस बयान से पहले अरब ने यमन की प्रेसिडेंशियल लीडरशिप काउंसिल के हवाले से कहा था कि यूएई चौबीस घंटे के भीतर यमन से अपनी सभी सेनाओं को वापस बुलाए और वहां के किसी भी गुट को सैन्य और आर्थिक सहयोग देना बंद कर दे. जिसके बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में यूएई ने इन आरोपों की कड़ी निंदा की थी. यूएई का कहना था कि उसने यमन के किसी भी गुट को कभी भी सऊदी अरब के ख़िलाफ़ सैन्य कार्रवाई के लिए नहीं उकसाया. बयान में कहा गया, ”यूएई सऊदी अरब की सुरक्षा और स्थिरता के प्रति प्रतिबद्ध है और देश की संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा का पूरा सम्मान करता है. लेकिन मकुल्ला के बंदरगाह पर हथियारों की कोई खेप नहीं उतारी जा रही थी. जो वाहन वहां उतारे गए वह किसी यमनी गुट के लिए नहीं बल्कि यमन में काम कर रही यूएई सेना के इस्तेमाल के लिए थी.
इसके बारे में सऊदी अरब के साथ उच्च स्तर पर बातचीत हो चुकी थी, इसके बावजूद उन्होंने हमला किया, जो कि बहुत चौंकाने वाला था.दोनों देशों के रिश्ते पुराने और मजबूत हैं. हमारा मक़सद हमेशा से यमन में वैध सरकार की मदद करना और आतंकवाद से लड़ना था. इस मामले को ज़िम्मेदारी से सुलझाने की ज़रूरत है ताकि क्षेत्र में शांति बनी रहे और यमन का संकट जल्द ख़त्म हो
हालिया तनाव की शुरुआत
बीते मंगलवार सऊदी अरब ने यमन के बंदरगाह शहर मुकल्ला पर हवाई हमला किया. सऊदी अरब ने कहा कि ये हमले इसलिए किए गए क्योंकि यूएई की मदद से इस बंदरगाह पर ‘सदर्न ट्रांज़िशनल काउंसिल’ (एसटीसी) के लिए हथियारों की खेप पहुंचाई जा रही थी. ‘सदर्न ट्रांज़िशनल काउंसिल’ को यूएई समर्थित समूह माना जाता है और यह समूह दक्षिणी यमन को एक अलग देश बनाने की मांग करता है. इस समूह ने दिसंबर के शुरुआती हफ़्तों में यमन के दक्षिण-पूर्वी इलाक़े के महत्वपूर्ण शहरों जैसे हद्रमौत, अल-मह्रा और तेल भंडारों पर क़ब्ज़ा कर लिया था. सऊदी विदेश मंत्रालय का दावा है कि एसटीसी ने यह संयुक्त अरब अमीरात के इशारे और दबाव में किया. बयान में कहा गया है कि ये इलाक़े रणनीतिक रूप से अहम हैं और यहां अस्थिरता पैदा होना न सिर्फ़ सऊदी अरब की सुरक्षा, बल्कि यमन की एकता और पूरे क्षेत्र की स्थिरता के लिए भी गंभीर ख़तरा है. लेकिन यह एसटीसी है क्या और सऊदी अरब इसे अपनी सुरक्षा के लिए ख़तरा क्यों मानता है?
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