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फरार कुलपति विनय पाठक की बड़ी मुसीबत बन सकता है ये अहम साक्ष्य, STF ने CBI को सौंपा

By संतोष सिंह 
Updated Date

लखनऊ। छत्रपति शाहू जी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय (Chhatrapati Shahu Ji Maharaj Kanpur University) के फरार कुलपति विनय पाठक (Vice Chancellor Vinay Pathak)  के खिलाफ आगरा यूनिवर्सिटी (Agra University) के कुलपति रहते हुए ऐसा काम किया गया, जो सीबीआई (CBI) जांच में उनके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन सकता है। यह काम विश्वविद्यालय की परीक्षाओं से जुड़ा बताया जा रहा है। इसमें परीक्षाओं से जुड़ा टेंडर जारी होने से पहले ही एक कंपनी ने टेंडर से जुड़े अपने कागजात तैयार करवा लिए थे। यह कंपनी पाठक के करीबी अजय मिश्रा की थी। एसटीएफ (STF )  को इस गड़बड़ी से जुड़े कई अहम साक्ष्य जांच के दौरान हाथ लगे थे। एसटीएफ (STF ) ने उन्हें सीबीआई (CBI) को सौंप दिया है। इस काम की धनराशि लाखों में है, लेकिन यह जांच का एक अहम साक्ष्य है।

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 मैनुअली मूल्यांकन में  सिर्फ 20 से 30 फीसदी पास थे, डिजिटल मूल्यांकन में 80 से 90 फीसदी तक अभ्यर्थी हो गए पास 

आगरा यूनिवर्सिटी (Agra University)  ने मेडिकल एग्जाम से जुड़ी कापियों को डिजिटली चेक करने के लिए यूपी डेस्को यूपी इलेक्ट्रॉनिक्स के जरिए टेंडर जारी किया था। चूंकि इसमें यूपीडेस्को (UPDESCO) में पैनल्ड कंपनियों को काम मिलता है। अजय की कंपनी यहां पैनल्ड थी। उसके साथ दो और कंपनियों ने काम के लिए आवेदन किया, लेकिन काम अजय की कंपनी को मिला। पहले 20 से 30 फीसदी ही पास थे, फिर जांच में खुलासा हुआ कि 80 से 90 फीसदी बढ़कर हो गए । मिली जानकारी के अनुसार पहले जब कॉपियां मैनुअली जांची गईं तो कुल अभ्यर्थियों में से सिर्फ 20 से 30 फीसदी तक ही पास थे। लेकिन जब कॉपियों का डिजिटल मूल्यांकन (Digital Assessment)हुआ तो 80 से 90 फीसदी तक अभ्यर्थी पास हो गए। इससे मूल्यांकन की प्रक्रिया पर ही सवाल उठने लगे।

अजय मिश्रा की कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए परीक्षाओं में डिजिटल स्कैनिंग शुरू करवाया

एसटीएफ (STF ) की पड़ताल में यह भी सामने आया है कि कुलपति विनय पाठक (Vice Chancellor Vinay Pathak)  ने अपने करीबी अजय मिश्रा की कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए परीक्षाओं में डिजिटल स्कैनिंग शुरू करवाई थी। इसमें केंद्रों पर बड़े-बड़े स्कैनर लगाकर कापियों की स्कैनिंग की जाती थी। साफ्ट कॉपी में चेंज होने के बाद इन्हें कोड अलॉट कर दिए जाते थे। परीक्षकों को कोड के जरिए कॉपी ऑनलाइन अलॉट होती थीं और वे उन्हें ऑनलाइन ही कॉपियां चेक कर देते थे।

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