Nag Panchami 2025: आज सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी के रूप में मनाया जा रहा है। इस दिन लोग नाग देवता की पूजा करते हैं, जिन्हें भगवान शिव ने अपने गले में धारण कर रखा है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, नाग देवता धरती के रक्षक हैं। उनकी ऊर्जा के रूप में पूजा की जाती है। जो लोग नाग पंचमी के दिन सच्चे मन से नाग देवता को याद करके पूजा करते हैं। उनके जीवन में खुशहाली हमेशा बनी रहती है।
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मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन सांपों की पूजा करने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं और बुराई व सांपों के भय का नाश होता है। इस दिन महिलाएं अपने परिवार की भलाई के लिए नाग देवता की पूजा भी करती हैं। नाग पंचमी के दिन नाग देवता की उपासना के साथ भगवान शिव की पूजा और उनका रुद्राभिषेक करना बहुत ही शुभ माना जाता है। वहीं, मध्य-प्रदेश में स्थित महाकाल नगरी उज्जैन के नागचंद्रेश्वर मंदिर को इसी परंपरा का प्रतीक माना जाता है। यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन यानी नाग पंचमी को ही खुलता है।
सिर्फ नाग पंचमी के दिन ही क्यों खुलता है नागचंद्रेश्वर मंदिर?
नागचंद्रेश्वर मंदिर को साल में एक बार खोले जाने को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि सर्पराज तक्षक ने भगवान शिव को खुश करने के लिए घोर तपस्या की थी। तक्षक की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें अमरता का वरदान दिया था, लेकिन भगवान से अमरता का वरदान मिलने के बाद भी राजा तक्षक खुश नहीं थे। तक्षक ने भगवान से कहा कि वो हमेशा उनके सानिध्य में ही रहना चाहते हैं। इसलिए, उन्हें महाकाल वन में ही रहने दिया जाए। भगवान शिव ने तक्षक को महाकाल वन में रहने की अनुमति देते हुए आशीर्वाद भी दिया कि उन्हें एकांत में विघ्न ना हो, इसलिए साल में सिर्फ एक बार ही यानी नाग पंचमी के दिन ही इस मंदिर को खोला जाएगा।
श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थापित है, जिसे नागराज तक्षक का निवास कहते हैं। इस मंदिर में नागचंद्रेश्वर के दर्शन के बाद ही व्यक्ति किसी भी तरह के सर्प दोष से मुक्त हो जाता है। मंदिर के कपाट खोलने के साथ ही त्रिकाल पूजा का भी विधान है। यानी तीन अलग अलग समय की जाने वाली पूजा। जिसमें पहली पूजा मध्य रात्रि 12 बजे पट खुलने के बाद महानिर्वाणी अखाड़े द्वारा की जाती है. दूसरी पूजा नाग पंचमी के दिन दोपहर 12 बजे प्रशासन के अधिकारियों द्वारा की जाती है। वहीं, तीसरी पूजा शाम साढ़े सात बजे भगवान महाकाल की संध्या आरती के बाद मंदिर समिति की ओर से महाकाल मंदिर के पुरोहित पुजारी करते हैं। फिर रात बारह बजे आरती के बाद मंदिर के पट फिर से एक साल के लिए बंद कर दिए जाते हैं।