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Video- इकरा हसन ने ‘वंदे मातरम्’ का भाव समझाते हुए मोदी सरकार को घेरा, ये सिर्फ गीत नहीं देश के जल, जंगल जमीन, हरियाली और निर्मल हवा की वंदना है …

By संतोष सिंह 
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नई दिल्ली। लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ (Vande Mataram) के 150 साल पूरे होने पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए यूपी की कैराना लोकसभा सीट (Kairana Lok Sabha Seat) से समाजवादी पार्टी की सांसद इकरा हसन (Samajwadi Party MP Iqra Hasan) ने अपनी बात रखी। इस दौरान उन्होंने वंदे मातरम् (Vande Mataram) का अर्थ समझाते हुए सरकार पर हमला बोला। कहा कि आज हमें गीत के भाव का समझना जरूरी है। उन्होंने कहा कि ये गीत देश की प्रकृति की वंदना करता है।

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क्या अब हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस और गुरू रविंद्रनाथ टैगोर के परामर्श की पर सवाल उठाएंगे?

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इकरा हसन ने वंदे मातरम् (Vande Mataram)  को लेकर मुस्लिमों कठघरे में खड़ा करने पर भी सवाल उठाए और कहा कि हम भारतीय मुसलमान इंडियन बाय च्वाइस हैं, बाय चांस नहीं। वंदे मातरम (Vande Mataram)  के किन छंदों का अपनाया जाए ये फैसला नेताजी सुभाष चंद्र बोस और गुरू रविंद्रनाथ टैगोर के परामर्श से हुआ था क्या अब हम उन महान नायकों की समझ पर सवाल उठाएंगे?

सपा सांसद ने समझाया ‘वंदे मातरम्’ का अर्थ

सपा सांसद इकरा हसन (SP MP Iqra Hasan) ने कहा कि उन महान हस्तियों में मातरम् के उन छंदों को अपनाया जिन्होंने देश के सभी वर्गों को एक सूत्र में पिरोने का काम किया। आज हमें इस गीत के भाव को समझना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि ये गीत देश के जल, जंगल जमीन, हरियाली और निर्मल हवा की वंदना को समर्पित है, ये भारत के जन-जन की मंगल कामना करता है कि भारत का हर नागरिक स्वस्थ रहे..सुरक्षित रहे और सम्मान के साथ जी सके। सुजलाम सुफलाम का अर्थ है ऐसा देश जहां पर्याप्त जल हो, जहां नदियां जिंदा हों बहती हों और जीवन देती हों, लेकिन अब यमुना का हाल देखिए।

दिल्ली प्रदूषण समिति 2025  रिपोर्ट :  यमुना का बीओडी स्तर 127 एमजी के स्तर पर पहुंच चुका है जबकि जीवित नदियों के लिए ये सिर्फ 3 एमजी प्रति लीटर होना चाहिए

दिल्ली प्रदूषण समिति 2025 (Delhi Pollution Control Board 2025) की रिपोर्ट बताती है कि यमुना के कई हिस्सों में बीओडी स्तर 127 एमजी के स्तर पर पहुंच चुका है जबकि जीवित नदियों के लिए ये सिर्फ 3 एमजी प्रति लीटर होना चाहिए। सपा सांसद इकरा हसन ने कहा कि ये सिर्फ नदी का संकट नहीं बल्कि किसान का संकट है। ‘नमामि गंगे’ के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च हो गए लेकिन सच्चाई ये है कि आज किसान मजबूरी में गंगा और यमुना के किनारे उसी जहरीले पानी में खेती कर रहा है, जब पानी जहर हो जाएगा तो सुफलाम कैसे होगा?

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बस संसद के बाहर  एक गहरी साँस लीजिए ये हवा नहीं ये ज़हर है जो आपके हमारे फेफड़ों में उतर रहा है

‘मलयज शीतलाम्’ में मलयज का अर्थ है मलय पर्वत से बहने वाली ठंडी सुगंधित हवा जो जीवन देती है बीमारी नहीं। क्या आज के भारत की हवा मलयज शीतलाम हैं। बस संसद के बाहर कदम रखिए एक गहरी साँस लीजिए ये हवा नहीं ये ज़हर है जो आपके हमारे फेफड़ों में उतर रहा है। हम वो देश हैं जो देश प्रकृति की वंदना तो करती है लेकिन उसकी प्रकृति की जंगल, हवा पेड़ को बचाने के वाले क़ानूनों को खुद ही खत्म कर रही है। अगर हम हवा को साफ नहीं कर पाए तो न सुजलाम बचेगा ना सुफलाम बचेगा। शस्य शामलाम का अर्थ है जहां जमीन उपजाऊ, खेत फसल से भरे हो किसान निराशा में न हो। आज किसान सिर्फ मौसम नहीं प्रदूषण, सिस्टम की नीतियों से मर रहा है।

यह गीत मां भारती के हर बेटे-बेटी का करता है सम्मान 

सपा सांसद ने कहा कि आज वंदे मातरम् को बुनियाद बनाकर राजनीति की जा रही है लेकिन, ज़मीन पूंजीपतियों को सौंपी जा रही है। आदिवासियों को उनके घरों से हटाया जा रहा है। ‘मातरम्’ में सिर्फ मातृभूमि की वंदना नहीं इस धरती की हर नारी, बेटी और महिला के सम्मान की बात करता है, लेकिन आंकड़े आप देखेंगे तो देश में हर साल महिलाओं पर अत्याचार बढ़ रहा है। यह गीत मां के हर रूप का सम्मान करता है, लेकिन आज देश में महिलाओं पर अत्याचार बढ़ रहे हैं। क्या हम वाकई ‘वंदे मातरम्’ को जी रहे हैं? यह गीत मां भारती के हर बेटे-बेटी का सम्मान करता है।

इकरा हसन का भाषण सोशल मीडिया पर लगातार कर रहा है ट्रेंड

वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर कैराना सांसद इकरा हसन ने संसद में विशेष संबोधन दिया। जैसे ही उन्होंने सदन में राष्ट्रगीत वंदे मातरम का शाब्दिक अर्थ समझाया, कई सदस्य हैरान रह गए। उनके भाषण की वीडियो तेजी से वायरल हो रही है। उनका यह भाषण सोशल मीडिया पर लगातार ट्रेंड कर रहा है, जहां लोग इसे ‘संतुलित’, ‘तथ्यात्मक’ और ‘शांतिपूर्ण संदेश’ वाला बताकर सराह रहे हैं। सांसद इकरा हसन द्वारा वंदे मातरम का अर्थ व संदर्भ समझाए जाने पर कई सदस्यों ने आश्चर्य व्यक्त किया है। उनके तार्किक और शांत अंदाज़ वाले भाषण की चर्चा सदन से लेकर सोशल मीडिया तक हो रही है।

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1998 की घटना का जिक्र करते हुए इकरा ने पूछा कि क्या पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी तुष्टिकरण कर रहे थे?

इकरा हसन (Iqra Hasan) ने अपने भाषण में बताया कि राष्ट्रगीत को लेकर कभी भी अनिवार्यता नहीं रखी गई, बल्कि इसे सम्मान और स्वैच्छिकता के साथ अपनाया गया। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Former Prime Minister Atal Bihari Vajpayee) का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने ‘राजधर्म’ का पालन करते हुए यह सुनिश्चित किया था कि वंदे मातरम किसी पर थोपा न जाए, बल्कि लोग इसे सम्मानपूर्वक गाएं। 1998 की घटना का जिक्र करते हुए इकरा ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय का उल्लेख किया, जब उत्तर प्रदेश में ‘वंदे मातरम्’ और ‘सरस्वती वंदना’ को स्कूलों में अनिवार्य करने का आदेश आया था। विरोध के बाद वाजपेयी ने इसे वापस लिया। उन्होंने पूछा कि क्या वाजपेयी जी तुष्टिकरण कर रहे थे?

मुस्लिम समुदाय को बार-बार कठघरे में खींचने पर सवाल उठाए, कहा कि हम भारतीय मुसलमान ‘इंडियन बाय च्वाइस’ हैं, ‘बाय चांस’ नहीं

इकरा हसन (Iqra Hasan) ने गीत के भाव को समझाते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधा और मुस्लिम समुदाय को बार-बार कठघरे में खींचने पर सवाल उठाए। हम भारतीय मुसलमान ‘इंडियन बाय च्वाइस’ हैं, ‘बाय चांस’ नहीं। हमें बार-बार ‘वंदे मातरम्’ पर ट्रायल क्यों दिया जाता है? यह विभाजन का हथियार नहीं, एकता का प्रतीक है।  उन्होंने अल्लामा इकबाल की “सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा” और “हम बुलबुले हैं इसकी, ये हिंदुस्तां हमारा” पढ़ीं, जो सदन में तालियों की गड़गड़ाहट लेकर आईं।
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