H1-B Visa Fees: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा (H-1B Visa) के लिए नई शर्तें लागू कर दी हैं। जिसके तहत इस वीजा को हासिल करने के लिए कंपनियों को हर साल 1 लाख डॉलर ( करीब 90 लाख रुपये) फीस देनी होगी। यह फैसला भारतीय इंजीनियरों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि भारत से सबसे ज्यादा संख्या में लोग वीजा पर अमेरिका जाते हैं। इस बीच मेटा और माइक्रोसॉफ्ट जैसी दिग्गज टेक कंपनियां अपने विदेशी कर्मचारियों से अमेरिका न छोड़ने और वापस लौटने की अपील की है।
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मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मेटा और माइक्रोसॉफ्ट ने अपने H1-B वीजा होल्डर्स कर्मचारियों को 14 दिन तक अमेरिका से बाहर न जाने की बात कही है। इसके अलावा, अमेरिका से बाहर रह रहे सभी कर्मचारियों को 24 घंटे के भीतर वापस लौटने के लिए ईमेल भेजा गया है। मार्क जुकरबर्ग की कंपनी मेटा ने H1-B वीजा और H4 वीजा होल्डर्स को 24 घंटे के भीतर अमेरिका वापस आने के लिए कहा है। माइक्रोसॉफ्ट ने कहा है कि कंपनी के H1-B वीजा होल्डर्स लोग 14 दिन तक देश से बाहर न जाएं, वरना उन्हें वापस लौटने में परेशानी हो सकती है।
रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में सबसे अधिक H1-B वीजा होल्डर्स कर्मचारियों वाली कंपनी अमेजन ने सभी कर्मचारियों को नोटिस जारी की है। नोटिस में कहा गया है कि अगर आपके पास H1-B वीजा है, तो अभी के लिए अमेरिका में ही रहें। बता दें कि अमेरिका में एच-1बी वीजा की शुरुआत 1990 में हुई थी, जिससे देश के कम कर्मचारी वाले क्षेत्रों में उच्च-शिक्षित और विशेषज्ञ विदेशी पेशेवरों को काम पर रख सके। H-1B वीजा को कोई विदेशी नागरिक हासिल खुद हासिल नहीं कर सकता। अमेरिकी कंपनियां खुद अपनी सरकार को आवेदन भेजकर कहती हैं कि उन्हें स्किल वाले कर्मचारियों की जरूरत है।
अमेरिकी कंपनियां खुद सारे कागज भरती है और सरकार को फीस देती हैं। अब तक H-1B वीजा की फीस बहुत कम थी, इसलिए कई बड़ी आईटी कंपनियां और कंसल्टेंसी फर्म हजारों-लाखों आवेदन भेजती थीं और अमेरिका में एंट्री-लेवल नौकरियां विदेशी इंजीनियरों से भर जाती थीं। लेकिन, ट्रंप प्रशासन की ओर से इसकी फीस को बढ़ाए जाने के बाद भारत समेत अन्य देशों के इंजीनियरों की उम्मीदों को बड़ा झटका लग सकता है।