Chhath Puja 2025 : छठ का महापर्व बिहार समेत पूरे देश में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। आस्था के इस महापर्व पर शुद्धता और पवित्रता के साथ भगवान सूर्य नारायण की पूजा का विधान है। सूर्य देव को जीवन, ऊर्जा और आरोग्य का स्रोत माना गया है। छठ पूजा की सामग्री में फल, फूल, अनाज, सहित तमाम चीजों के साथ ही बांस के दउरा और सूप का भी इस्तेमाल किया जाता है। छठ का यह लोक अनुष्ठान सौर मंडल में पृथ्वी की प्रकृति साधना का तप माना जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। खरना प्रसाद के बाद से छठ व्रती 36 घंटों का निर्जला उपवास शुरू करेंगे। इस महापर्व के पीछे कई धार्मिक कथाएं प्रचलित हैं। इस महापर्व के माध्यम से जीवन , आरोग्य और इसके विराट स्वरूप को जाना जा सकता है।
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वंश वृद्धि और समृद्धि का प्रतीक है बांस
छठ पूजा में शुद्धता और पवित्रता दोनों का विशेष महत्व होता है। बांस से बने सूप और दउरा को शुद्ध और सात्विक माना जाता है, इसलिए पूजा में इसका उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही छठ पूजा प्रकृति और सूर्य उपासना का प्रतीक है। लोक आस्था का प्रतीक चार दिवसीय पर्व ‘छठ पूजा’ में सूर्य भगवान और छठी मइया की पूजा की जाती है। इसलिए पूजा में भी वही चीजे इस्तेमाल होती हैं, जो सीधे प्रकृति से जुड़ी होती हैं। सूप और दउरा भी प्रकृति से जुड़े हैं।
समृद्धि और मनोकामनाओं की पूर्ति
सनातन धर्म में मान्यतानुसार बांस को वंश वृद्धि से भी जोड़ा जाता है। छठव्रती बांस की वृद्धि के समान सूर्य नारायण से वंश की भी वृद्धि की कामना करते हैं। छठ पूजा में दउरा और सूप का उपयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि यह वंश वृद्धि और समृद्धि का प्रतीक है। छठव्रती महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु, परिवार की समृद्धि और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यह कठोर व्रत रखती हैं।