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Toxic Cough Syrup Scandal : UPSTF की जांच में बड़ा खुलासा, फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र से लिया ड्रग लाइसेंस, अब ड्रग इंस्पेक्टरों पर गिरेगी गाज

By संतोष सिंह 
Updated Date

लखनऊ। यूपी एसटीएफ (UP STF) की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे जहरीला कफ सिरप कांड (Toxic Cough Syrup Scandal) के अवैध कारोबार से जुड़ा बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आ रहा है। गिरोह ने ड्रग लाइसेंस (DL) हासिल करने के लिए अमित सिंह टाटा, बर्खास्त सिपाही आलोक प्रताप सिंह ने फर्जी अनुभव प्रमाण पत्रों का सहारा लेते हुए वाराणसी में दो साल एक मेडिकल स्टोर पर काम करने का दावा किया गया, जबकि जांच में खुलासा हुआ है कि आरोपित वहां कभी गए ही नहीं। इसके अलावा दूसरा धनबाद में छह महीने काम करने का रेकॉर्ड दिखाया गया, लेकिन जांच में पता चला कि वह सिर्फ दो दिन ही वहां मौजूद थे। कागजों में किया गया यही फर्जीवाड़ा आरोपितों के लिए बड़ी मुसीबत बनने जा रहा है।

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एसटीएफ (STF) के जांच अधिकारी ने बताया कि जिस व्यक्ति के नाम पर इग लाइसेंस जारी होता है। उसका दुकान पर बैठना और बिल पर मालिक के हस्ताक्षर होना अनिवार्य होता है। मालिक की गैरमौजूदगी में सिग्नेटरी का नाम दर्ज होता है, लेकिन इस नेटवर्क ने फर्जी सिग्नेचर कर करोड़ों रुपये का कारोबार किया। जांच में पता चला है कि कई लाइसेंस गांव के लोगों के नाम पर बनवाए गए, जबकि संचालन गिरोह के पास था। पहले यह काम म्यूल्स के जरिए होता था, लेकिन वर्ष 2024 में आरोपित अमित सिंह टाटा व बर्खास्त सिपाही आलोक प्रताप सिंह ने अपने नाम से कंपनी बनाई। धनबाद जाकर लाइसेंस लिया और फोटो खिंचवाकर दस्तावेज पूरे किए। धनबाद का पता भी फर्जी निकला, जो पश्चिम बंगाल की सीमा के नजदीक है।

नौकरों को बनाया सुपर स्टॉकिस्ट

शुभम जायसवाल ने वाराणसी और धनबाद में आलोक और अमित ‘टाटा’ को स्टॉकिस्ट बनाया। शैली और विभोर राणा सुपर स्टॉकिस्ट के रूप में सामने आए। शुभम जायसवाल ने अपनी फर्म से अपने ही लोगों को सिरप बेचा। वर्ष 2022 में विभोर के जेल जाने के बाद उत्तराखंड में उसके नौकरों के नाम पर सुपर स्टॉकिस्ट बनाए गए। इन स्टॉकिस्टों ने किसी रिटेलर को माल नहीं बेचा, बल्कि अपने नेटवर्क में ही सिरप की आपूर्ति की। उत्तराखंड के 65 स्टॉकिस्टों से माल नई दिल्ली के अभिषेक शर्मा ने खरीदा और अलग-अलग शहरों में बिक्री का फर्जी रेकॉर्ड तैयार किया। यह बिक्री सिर्फ कागजों पर दिखाई गई। शुभम के कई परिवारीजनों के नाम पर भी इग लाइसेंस बनवाए गए और करोड़ों के बिलों में पर फजी हस्ताक्षर किए गए। एसटीएफ के में मुकदमे में किसी आरोपित को स्टे नहीं मिला है। जांच एजेंसियां अब इस पूरे नेटवर्क की परतें खोलने में जुटी हैं। यह खुलासा बताता है कि किस तरह फर्जी दस्तावेजों के जरिए ड्रग लाइसेंस हासिल कर करोड़ों का अवैध कारोबार किया गया और नेटवर्क ने कानूनी खामियों का फायदा उठाकर पूरे सिस्टम को चकमा दिया।

एसटीएफ ने मांगा जीएसटी से ब्योरा

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यूपी एसटीएफ (UP STF) ने आरोपितों की घेराबंदी के लिए जीएसटी से आरोपितों की फर्मों, उनके द्वारा जिन फर्मों से व्यापार किया गया उनका ब्योरा और उनकी फर्मों से जुड़े बैंक खातों का ब्योरा मांगा है। इस मामले में अब तक गिरफ्तार हुए, छह आरोपितों अमित सिंह टाटा, बर्खास्त सिपाही आलोक प्रताप सिंह, राणा ब्रदर्स विद्धू और सचिन त्यागी की छह दिसंबर को जमानत के लिए सुनवाई है। आरोपितों की जमानत के खिलाफ एसटीएफ कड़ी घेराबंदी कर रही है।

एफएसडीए के सहायक आयुक्तों और ड्रग इंस्पेक्टरों पर कसेगा शिकंजा

प्रतिबंधित कोडीनयुक्त कफ सिरप की करने के लिए एनआईए की टीमों ने यूपी के आ तस्करी में कई गिरफ्तारी के बाद अब खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (FSDA) विभाग के सहायक आयुक्तों और ड्रग इंस्पेक्टरों पर शिकंजा कसने की तैयारी है। जांच के दौरान कई फर्मों के सिर्फ कागजों पर संचालित होने का खुलासा होने से सहायक आयुक्तों और ड्रग इंस्पेक्टरों की भूमिका संदेह के घेरे में है। कारण लाइसेंस जारी करने से पहले पते का भौतिक सत्यापन करना अनिवार्य होने के बावजूद फर्जीवाड़ा हुआ है। ऐसे में बीते छह वर्षों में बनारस में तैनात रहे दोनों रैंक के अधिकारियों की जांच शुरू हो गई है। सूत्रों के मुताबिक बनार में वर्ष 2019 से अब तक अलग-अलग अवधि में तीन सहायक आयुक्त और पांच ड्रग इंस्पेक्टर के तैनात रहे हैं। इसी अवधि में थोक दवा के 89 लाइसेंस जारी किए गए। कफ सिरप तस्करी के सरगना शुभम जायसवाल पिता भोला प्रसाद की रांची स्थित फर्म शौली ट्रेडर्स से जिन फर्मों को सप्लाई की गई, उनके लाइसेंस पर दर्ज पते पर कहीं झोपड़ी तो कहीं जनरल स्टोर की दुकान मिली। सूत्रों के मुताबिक बोगस फर्मों को किन सहायक आयुक्त और ड्रग इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट पर लाइसेंस जारी किए गए, यह तय कर जल्द कार्रवाई की जाएगी।

जहरीला कफ सिरप कांड का मुख्य सूत्राधार विकास सिंह उर्फ ‘नरवे अब भी फरार

यूपी एसटीएफ (UP STF) ने कोडीन युक्त खासी करने वाले अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय गिरोह पर शिकंजा कसने के बावजूद नेटवर्क की एक अहम कड़ी माना जाने वाला व्यक्ति अब तक पकड़ से बाहर है। यह शख्स है विकास सिंह उर्फ ‘नरवे, जिसे जांच एजेंसिया पूरे नेटवर्क का ऑर्गनाइजेशनल यानी जोड़ने वाला अहम सूत्राधार बता रही है। जाच से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, गिरोह के हर बड़े आरोपित ने कुरुलाछ में विकास सिंह का नाम लिया है। इनमें जौनपुर निवासी अमित कुमार सिंह उर्फ अमित ‘टाटा, चंदौली का बर्खास्त सिस्याही आलोक प्रताप सिंह और करार सरगना शुभम जायसवाल का पिता भोला नाथा जायसवाल शामिल है। पूछताछ में खुलासा हुआ कि शुभम जायसवाल से इनकी कड़ी विकास सिंह के जरिए जुड़ी थी। विकास आजमगढ़ के नरवे गांव का निवासी बताया जा रहा है। शुभम जायसवाल के परिवार से पूछताछ में भी उसका नाम सामने आया। सूत्रों के अनुसार, विकास सिंह सप्लायर, फाइनेंसर और ट्रांसपोर्टर को जोड़ने का काम करता था। उसने ही कई तस्करों को मिलवाया और दवा की अवैध खरीद-बिक्री की चेन को मजबूत किया। हालाकि, अब तक एसटीएफ को विकास सिंह की किसी फर्म के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। एसटीएफ को उम्मीद है कि बी फर्मों को खंगालने के दौरान नेटवर्क से जुड़े अन्य लोगों के नाम सामने आएंगे।

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