भारत के मेट्रो शहरों में ईयरफोन, ईयरबड या हेडफोन का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है। आपने मेट्रो, ट्रेन, पार्क या कहीं भी सार्वजनिक जगहों पर लोगों को देखा होगा कि वे कान में ईयरफोन लगाकर आसपास के माहौल से पूरी तरह बेखबर हो जाते हैं। कई बार उनके आसपास कुछ घट रहा होता है लेकिन उसकी आवाज उनके कानों तक नहीं पहुंचती।
नई दिल्ली। भारत के मेट्रो शहरों में ईयरफोन, ईयरबड या हेडफोन का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है। आपने मेट्रो, ट्रेन, पार्क या कहीं भी सार्वजनिक जगहों पर लोगों को देखा होगा कि वे कान में ईयरफोन लगाकर आसपास के माहौल से पूरी तरह बेखबर हो जाते हैं। कई बार उनके आसपास कुछ घट रहा होता है लेकिन उसकी आवाज उनके कानों तक नहीं पहुंचती।
ये तो ईयरफोन, ईयरबड्स या अन्य लिसनिंग डिवाइसों के कारण होता है, लेकिन सोचिए कि आने वाले समय में अगर लोग सच में बहरे हो गए तो? लोग एक साथ बैठे हों लेकिन एक दूसरे की बातें ही न सुन पा रहे हों तो क्या होगा? यह सोचकर भले ही आपको डर लग रहा हो लेकिन यह सच होने जा रहा है। यह दावा विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में किया गया है। आने वाले समय में दुनियाभर में 100 करोड़ से ज्यादा लोग बहरे हो सकते हैं और इसके पीछे भी कोई महामारी नहीं, बल्कि लोगों का एक शौक जिम्मेदार होगा।
डब्ल्यूएचओ (WHO) की मेक लिसनिंग सेफ गाइडलाइंस (Make Listening Safe Guidelines) में एक अनुमान जताया गया है कि 2050 तक दुनियाभर में 100 करोड़ से ज्यादा युवा बहरे हो सकते हैं। इन युवाओं की उम्र भी 12 से 35 साल के बीच में होगी। गाइडलाइंस कहती हैं कि ऐसा हमारे सुनने की खराब आदतों की वजह से होगा।
ये शौक पड़ रहा भारी
गाइडलाइंस में बताया गया है कि फिलहाल 12 से 35 साल के लगभग 50 करोड़ लोग विभिन्न कारणों से न सुन पाने या बहरेपन की समस्या से जूझ रहे हैं। इनमें से 25 फीसदी वे हैं जो अपने निजी डिवाइसों जैसे ईयरफोन, ईयरबड, हेडफोन पर ज्यादा तेज साउंड में लगातार कुछ न कुछ सुनते रहने के आदी हो चुके हैं। जबकि 50 फीसदी के आसपास वे हैं जो लंबे समय तक मनोरंजन की जगहों पर बजने वाले तेज म्यूजिक, क्लब, डिस्कोथेक, सिनेमा, फिटनेस क्लासेज, बार या अन्य सार्वजनिक जगहों पर बजने वाले तेज साउंड के संपर्क में रहते हैं। ऐसे में लाउड म्यूजिक सुनने का शौक या ईयर डिवाइसें ज्यादा इस्तेमाल करने का शौक आपको बहरा बना सकता है।
कितना होता है डिवाइसों का वॉल्यूम ?
आमतौर पर पर्सनल डिवाइसों में वॉल्यूम का स्तर 75 डेसीबल से 136 डेसीबल तक होता है। अलग-अलग देशों में इसका मेक्सिमम स्तर अलग भी हो सकता है। हालांकि यूजर्स को अपने डिवाइसेज का वॉल्यूम 75 डीबी से 105 डीबी के बीच में रखना चाहिए और इसे सीमित समय के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। इससे ऊपर जाने पर कान को खतरा है।
कितना वॉल्यूम होता है सेफ?
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज नई दिल्ली (All India Institute of Medical Sciences New Delhi) में ईएनटी के प्रोफेसर रहे डॉ. बीपी शर्मा (Dr. BP Sharma was a professor of ENT) कहते हैं कि डिवाइसों में आने वाला वॉल्यूम भी काफी ज्यादा होता है। सबसे सुरक्षित वॉल्यूम कानों के लिए 20 से 30 डेसीबल है। यह वह वॉल्यूम है जिसमें आमतौर पर दो लोग बैठकर शांति से बात करते हैं। लगातार इससे ज्यादा आवाज के संपर्क में रहने से कानों की सेंसरी सेल्स को नुकसान होने लगता है।
शोर से पैदा हुआ बहरापन नहीं होता ठीक
डॉ. शर्मा कहते हैं कि जो सबसे खराब चीज है। वह ये है कि डिवाइसों के इस्तेमाल से आया हुआ बहरापन कभी ठीक नहीं होता है। लगातार और लंबे समय तक तेज साउंड में रहने के चलते हाई फ्रीक्वेंसी की नर्व डैमेज हो जाती है। वह रिवर्सिबल नहीं होती। न उसकी कोई सर्जरी नहीं होती है और न ही कोई मेडिसिन होती है कि उससे नर्व को ठीक कर लिया जाए। इसलिए प्रिवेंशन ही बहरेपन से बचने का एक इलाज है।