आज भारत कोरोना से पूर्ण रूप से ग्रस्त है जिस कारणवश भारत आंशिक लॉक-डाउन के दौर से गुजर रहा है, तो कुछ राज्य ने पूर्ण लॉक-डाउन भी घोषित कर रखा है | ऐसे में सार्वजनिक स्थलों पर होने वाले धार्मिक आयोजनों पर भी रोक लगी है। इसी लॉकडाउन के दौरान इस बार परशुराम जयंती का आयोजन किया जाएगा ।वैशाख शुक्ल द्वितीया को परशुराम जयंती है, जो इस बार 14 मई को पुरे भारत में मनाया जायेगा।
पिछले वर्ष लॉक डाउन में दूरदर्शन ने अपने सबसे चर्चित शो रामायण का पुनः प्रसारण किया था जिसने हमारी यादे ताजा कर दी थी। और सीता स्वंवर एवं परशुराम धनुष भंग और लक्ष्मण के तीखे संवाद तो हमारे मस्तिष्क पटल पे छप गए थे । आज हम उसी अध्याय में कुछ सन्दर्भ जोड़ना चाहते है। तो चलिए जानते है परशुराम के जीवन के कुछ रोचक तथ्य :-
परशुरामकी कथाएं रामायण, महाभारत एवं कुछ पुराणोंमें पाई जाती हैं । पूर्वके अवतारोंके समान इनके नामका स्वतंत्र पुराण नहीं है ।
अग्रतः चतुरो वेदाः पृष्ठतः सशरं धनुः ।
इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि ।।
अर्थ : चार वेद मौखिक हैं अर्थात् पूर्ण ज्ञान है एवं पीठपर धनुष्य-बाण है अर्थात् शौर्यहै । अर्थात् यहां ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज, दोनों हैं । जो कोई इनका विरोध करेगा, उसेशाप देकर अथवा बाणसे परशुराम पराजित करेंगे । ऐसी उनकी विशेषता है ।
मूर्ति : भीमकाय देह, मस्तकपर जटाभार, कंधेपर धनुष्य एवं हाथमें परशु, ऐसी होती हैपरशुरामकी मूर्ति ।
पूजाविधि: परशुराम श्रीविष्णुके अवतार हैं, इसलिए उन्हें उपास्य देवता मानकर पूजाजाता है । वैशाख शुक्ल तृतीयाकी परशुराम जयंती एक व्रत और उत्सवके तौरपर मनाईजाती है ।
परशुराम जी की जन्म कथा: वैशाख मास शुक्ल पक्ष की तृतीया यानी अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान परशुराम का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाती है। भगवान परशुराम विष्णु भगवान के छठे अवतार हैं। माना जाता है कि कलयुग में आज भी ऐसे आठ चिरंजीव देवता और महापुरुष हैं जो जीवित हैं। इन्हीं आठ चिरंजीवियों में से एक भगवान परशुराम भी हैं। भगवान शिव के परमभक्त परशुराम न्याय के देवता हैं, इन्होंने 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया था।अर्थ : चार वेद मौखिक हैं अर्थात् पूर्ण ज्ञान है एवं पीठपर धनुष्य-बाण है अर्थात् शौर्यहै । अर्थात् यहां ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज, दोनों हैं । जो कोई इनका विरोध करेगा, उसेशाप देकर अथवा बाणसे परशुराम पराजित करेंगे ।
इस कारण से कहलाए परशुराम: पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ। यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को एक बालक का जन्म हुआ था। वह भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण करने के कारण वह परशुराम कहलाए।
गणेश जी को बनाया एकदंत : यही नहीं इनके क्रोध से भगवान गणेश भी नहीं बच पाये थे। परशुराम ने अपने फरसे से वार कर भगवान गणेश के एक दांत को तोड़ दिया था जिसके कारण से भगवान गणेश एकदंत कहलाए जाते हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन जो कुछ दान किया जाता है वह अक्षय रहता है यानी इस दिन किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता है। सतयुग का प्रारंभ अक्षय तृतीया से ही माना जाता है।